Sunday, 19 April 2015

क्या राहुल गांधी पार्टी को इस संकट के दौर से उभार सकते हैं?

आत्मचिन्तन करने छुट्टी पर गए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी 56 दिन बाद गुरुवार को लौट आए। संसद के बजट सत्र से पहले ही कांग्रेस उपाध्यक्ष छुट्टी लेकर विदेश चले गए थे। सुबह 11.15 बजे राहुल बैंकाक से थाई एयरवेज की फ्लाइट लेकर दिल्ली पहुंचे। एयरपोर्ट से वह सीधे सरकारी आवास पहुंचे जहां कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी पहले ही मौजूद थीं। हालांकि इस दौरान उन्होंने मीडिया से कोई बातचीत नहीं की। लम्बे समय से राहुल समर्थक बेसब्री से इंतजार कर रहे थे उनके लौटने का, कमान संभालने का। लेकिन दूसरी तरफ कांग्रेस में ऐसे नेताओं की तादाद लगातार बढ़ती दिख रही है जिनमें से कुछ इशारों में, तो कुछ खुलकर राहुल की क्षमताओं पर सवाल उठा रहे हैं। इस फेहरिस्त में ताजा नाम दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का जुड़ गया है। शीला जी ने राहुल गांधी के नेतृत्व क्षमता पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि सोनिया गांधी को ही पार्टी का नेतृत्व जारी रखना चाहिए। हाल ही में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने भी इस तरह के आरोप लगाए थे। यह दोनों ही गांधी परिवार के बेहद करीबी माने जाते हैं। शीला दीक्षित ने सोनिया की तारीफ करते हुए कहा कि वह जिम्मेदारियों से नहीं भागतीं। पार्टी अपनी सत्ता में दोबारा वापसी के लिए उन्हीं पर निर्भर कर सकती है। शीला के बेटे पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने भी कुछ दिन पहले राहुल के खिलाफ बयान दिया था। संदीप दीक्षित ने कहा था कि राहुल काबिल हैं लेकिन सोनिया बैस्ट हैं। शीला के शब्द भले ही शालीन हों किन्तु उनका भाव उतना ही तल्ख है जितना राजस्थान, कर्नाटक और गुजरात के उन कांग्रेसियों का था, जो लोकसभा चुनाव की करारी शिकस्त के  बाद राहुल के नेतृत्व पर सवाल उठाकर पार्टी से बाहर का रास्ता देख चुके हैं। शीला की  बात का भी लब्बोलुआब यही है कि लोकतंत्र में नेतृत्व की कसौटी चुनाव में पार्टी को विजय दिलाना ही है। इस मोर्चे पर राहुल का योगदान किसी से छिपा नहीं है। लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक हार के सदमे से  जूझ रही पार्टी के लिए यह ऐसा अवसर था जब वह संसद से लेकर सड़क तक मोदी सरकार को घेर सकती थी। मगर राहुल के अचानक परिदृश्य से गायब हो जाने के कारण पार्टी की सारी योजना पर पानी फिर गया। उनकी कमी पूरी करने के लिए सोनिया गांधी को मैदान में कूदना पड़ा। उन्होंने भूमि अधिग्रहण बिल पर विपक्ष को एकजुट किया। उत्तर भारत में रबी की फसल पर वज्रपात के रूप में बरसी तूफानी बारिश और ओलावृष्टि से पीड़ित राज्यों का दौरा कर पीड़ितों को सांत्वना देने का काम भी सोनिया को ही करना पड़ा। अनेक वरिष्ठ कांग्रेसियों का वर्ग सोनिया को पार्टी अध्यक्ष बनाए रखने का पक्षधर है। उनके अनुसार पार्टी इतिहास के कठिन दौर से गुजर रही है। ऐसे में सोनिया जैसी सुलझी नेता ही पार्टी को संकट से उभार सकती हैं। राहुल में अनुभव की कमी एवं पलायन की प्रवृत्ति है, इसलिए उनके हाथों में पार्टी की बागडोर देना ठीक नहीं होगा। फिलहाल राहुल के समर्थकों की उम्मीद 19 अप्रैल को होने वाले पार्टी के कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति पर टिकी है। मोदी को राहुल टक्कर दे पाएंगे इसमें संदेह है।

-अनिल नरेन्द्र

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