Friday, 24 April 2015

गजेंद्र की आत्महत्या ने दिखा दिया कि किसान कितना हताश है

धरने और प्रदर्शनों के लिए देशभर में विख्यात जंतर-मंतर पर आम आदमी पार्टी (आप) की किसान रैली बुधवार को काला अध्याय लिख गई। ओलावृष्टि और बरसात से बर्बाद हुआ एक किसान रैली में मंच से महज कुछ कदम के फासले पर नीम के पेड़ पर फांसी पर लटक गया और मंच पर बैठे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत अन्य पार्टी के तमाम नेता उसे देखते रहे। दुखद यह है कि किसान की आत्महत्या के बाद भी रैली जारी रही, नेता भाषण देते रहे। केजरीवाल भी भाषण के दौरान किसानों से वादे करते रहे लेकिन उसे बचाने के लिए खुद अपना कदम आगे नहीं बढ़ाया। राजस्थान के दौसा का गजेंद्र सिंह कल्याणवत (41 वर्ष) किसान रैली में शामिल होने आया था। हजारों निगाहों के आगे एक बेबस आम आदमी ने पेड़ पर फंदे से लटक जिंदगी को अलविदा कह दिया और उसकी निप्राण आंखें सामने चल रही राजनीतिक रैली को निहारती रहीं। जहां आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल इस हादसे की जिम्मेदारी भी दिल्ली पुलिस और मोदी सरकार पर मढ़ते गरज रहे थे। राजस्थान के दौसा जिले का आभागा गजेंद्र सिंह भी खेतों में अपनी डूबी किस्मत का गम समेटे दिल्ली आया था लेकिन वापस लौटा उनका निर्जीव शरीर जिससे लिपट कर उसके तीन मासूम बच्चों की आंखों का बांध टूट गया होगा। सार्वजनिक स्थल पर ऐसी घटना चौंकाने वाली है। देशभर के किसानों के संकट के नाम पर बुलाई गई इस रैली में शायद एक अभागे किसान के लिए किसी के पास वक्त नहीं था। गजेंद्र बाकायदा अपने अंत की घोषणा करता हुआ भीड़ के बीच नीम के पेड़ पर चढ़ा और सिर की पगड़ी का फंदा डालकर लटक भी गया लेकिन मौजूद आम आदमी पार्टी की रैली के मिजाज पर इसका कोई असर नहीं दिखा। एक बड़ा सवाल यह है कि गजेंद्र की आत्महत्या के बाद भी आम आदमी पार्टी के नेताओं का भाषण जारी क्यों रहा? यह तो गैर जिम्मेदारी और संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। इस अभागे शख्स की मौत के बाद आम आदमी पार्टी के नेताओं ने जिस तरह के बेतुके बयान दिए उससे तो यही लगा कि वह भी दूसरी सियासी पार्टियों की तरह सियासी हथकंडे अपनाने लगी है। तमाम लोगों के सामने आत्महत्या की घटना जितनी विचलित करने वाली है उतनी ही शर्मसार करने वाली भी। क्योंकि उसके बहाने राजनीतिक दल एक-दूसरे को खलनायक साबित करने के गंदे खेल में जुट गए हैं। किसानों की खराब हालत के लिए किसी न किसी स्तर पर सभी दल जिम्मेदार हैं। आज जरूरत किसानों को यह  बताने की नहीं कि उनकी हालत खराब है बल्कि उन्हें यह भरोसा दिलाने की है कि वह धैर्य रखें, उनकी हरसंभव सहायता की जाएगी। निसंदेह यह तब होगा जब यह सियासी दल तू-तूöमैं-मैं करने की बजाय मिल बैठकर उन उपायों के बारे में सोचें जिनसे किसानों को फौरी और साथ ही दीर्घकालिक सहायता मिल सके। गजेंद्र सिंह ने अपनी कुर्बानी देकर सारी दुनिया को दिखा दिया कि आज भारत का किसान कितना हताश है। जरूरत इस बात की है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को किसान समस्या पर आपात चर्चा कर तत्काल रास्ता निकालने की है।

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