Saturday, 18 April 2015

महज आधे घंटे में कट जाती हैं चोरी की गाड़ियां

हाल के समय में वाहनों की चोरी बढ़ गई है। यही नहीं बल्कि कार चोर हाइटैक हो गए हैं। वह केवल पुरानी गाड़ियां नहीं चुराते हैं, अब उनके निशाने पर वह गाड़ियां भी हैं जो महंगी हैं और लोगों के बीच सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। इनमें एसयूवी (स्पेशल यूटिलिटी व्हीकल) और एमयूवी (मल्टी यूटिलिटी व्हीकल) सबसे ज्यादा हैं। हालांकि चोर उन वाहनों को चुराने से बचते हैं जो कि सैंट्रलाइज लॉक्ड सिस्टम से लैस हैं। पुलिस सूत्रों के मुताबिक वाहन चोर गाड़ी चुराने के बाद महज आधे घंटे में काट देते हैं और उसका एक-एक पुर्जा बेच देते हैं। असम से कांग्रेस के विधायक रूमी नाथ की गिरफ्तारी मामले में ऑटो चोर अनिल चौहान का नाम आया है और उसे पुलिस ने गिरफ्तार किया है। वाहन चोरों का व्यापार मांग और आपूर्ति के सिद्धांत पर काम करता है। जिस गाड़ी की सबसे ज्यादा मांग होती है उसी को सबसे ज्यादा चोरी किया जाता है। दिल्ली पुलिस के पिछले दो वर्षों में वाहन चोरी की घटना का विश्लेषण किया जाए तो पता चलता है कि 2013 में जहां 13895 वाहन चोरी हुए थे वहीं वर्ष 2014 में यह आंकड़ा बढ़कर 22223 हो गया था। पुलिस की वार्षिक कांफ्रेंस में भी बताया गया था कि वाहन चोरी का हिस्सा दिल्ली में कुल हुए अपराधों का 15 प्रतिशत है। इसकी एक वजह पार्किंग की कमी, सड़क किनारे गाड़ी खड़ी होना भी है। पुलिस सूत्रों की मानें तो पिछले एक साल में वाहन चोर फॉर्च्यूनर, होंडा सिटी, स्कार्पियो, वेनी आदि गाड़ियों की तलाश करते हैं। इस तरह की गाड़ी नहीं मिलने पर ही वह छोटी गाड़ियों पर हाथ डालने का प्रयास करते हैं। इनमें भी सेंट्रो, आई-10 और वैगनआर गाड़ी को वाहन चोर पहले निशाना बनाते हैं। पुलिस के मुताबिक दिल्ली में वाहन चोर मायापुरी में जाकर वाहन बेच रहे थे। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यूपी के मेरठ के कुछ इलाकों और जामा मस्जिद और पूर्वोत्तर के कई राज्यों में भी कारें बेचने का धंधा बढ़ा है। पूर्वोत्तर राज्यों में दिल्ली से गाड़ियां चोरी होकर जाती हैं, इनके कागजात भी बन जाते हैं और यहीं से इन्हें अन्य राज्यों के साथ-साथ पड़ोसी देश नेपाल और बांग्लादेश में बेचा जाता है। चौंकाने वाली बात यह है कि अगर राजधानी से कोई वाहन चोरी हो जाए तो पुलिस के पास ऐसा कोई तंत्र नहीं है कि चोरी हुए वाहन के बारे में पड़ोसी राज्यों को सूचित कर सके। अकसर वाहन चोर गाड़ी चुराकर निकलते हैं, वह कई राज्यों में सफर करते हुए वाहन को कबाड़ बाजार में जाकर बेच देते हैं। हैरानी की बात यह है कि राज्यों की सीमा पर भी इस तरह का कोई तंत्र काम नहीं करता कि अगर कोई चोरी का वाहन जा रहा है तो उसे पकड़ा जा सके। कई बार तो ऐसा होता है कि वाहन चोरी के मामले में पुलिस एफआईआर भी देरी से लिखती है। अगर एफआईआर को दूसरे राज्यों की पुलिस से समन्वय बैठाकर उनके कम्प्यूटर या मोबाइल से जोड़कर अलग सिस्टम लाया जाए तो चोरी की वारदातों पर लगाम लग सकती है। सफेद कार वालों के लिए चेतावनीöकार चोरी की सबसे ज्यादा वारदातें सफेद कारों की होती हैं।

-अनिल नरेन्द्र

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