Tuesday 7 April 2015

ईरान का महाशक्तियों के साथ परमाणु समझौता

पिछले करीब 13 साल से तनाव का कारण बने परमाणु मुद्दे पर ईरान और पश्चिम की बड़ी शक्तियों के बीच समझौता होने से दुनिया ने राहत महसूस की है। 2002 में ईरान के नातान्ज परमाणु संयंत्र में यूरेनियम की स्वीकृत सीमा से अधिक संवर्द्धित करने की सूचना लीक होने पर यह विवाद शुरू हुआ था। इस दौरान स्विटजरलैंड में आठ दिनों तक चली बातचीत के बाद ईरान के विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम पर समझौते की रूपरेखा को लेकर सहमति बन गई है। ईरान परमाणु वार्ता करीब-करीब कामयाब अंजाम तक पहुंच गई। पी5 प्लस वन के सदस्य देशों एवं ईरान के बीच अंतिम सहमति बन गई है। सदस्य देशों के विदेश मंत्री रविवार से स्विटजरलैंड के सुलाने शहर में इकट्ठा हुए। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी देशोंöअमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और इंग्लैंड के अतिरिक्त जर्मनी वार्ता के एक पक्ष है, जबकि दूसरा पक्ष स्वयं ईरान है। कई दिनों की जद्दोजहद के बाद ईरान और अमेरिका के साथ-साथ विश्व की अन्य पांच शक्तियों ने इसकी घोषणा की। परमाणु कार्यक्रम को लेकर व्यापक समझौता तैयार करने की समय सीमा 30 जून है। संभावित समझौते में जहां ईरान के परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने पर जोर रहेगा वहीं बदले में तेहरान पर लगे अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों में ढील दी जाएगी। ईरान अगले 10 साल में चरणबद्ध तरीके से 19 हजार सेंट्रीफ्यूग को घटाकर 10 हजार फिर 6104, फिर 5060 पर ले आएगा यानि दो-तिहाई घटाए जाएंगे सेंट्रीफ्यूग। ईरानी सेंट्रीफ्यूग केवल 3.67 प्रतिशत तक यूरेनियम का एनरिच करेंगे, जो बिजली उत्पादन के लिए जरूरी होता है। वर्तमान क्षमता से ईरान एक परमाणु बम के लायक यूरेनियम तीन से चार महीने में तैयार कर सकता था, लेकिन समझौते के बाद यह समय एक साल तक खिंचेगा। इसे 10 साल तक बरकरार रखना होगा। इस्तेमाल न होने वाले सेंट्रीफ्यूगों को अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) की देखरेख में रखा जाएगा। ईरान के सभी न्यूक्लियर सेंटर्स का आईएईए नियमित रूप से निरीक्षण करेगा। सभी संयंत्र अगले 25 वर्षों तक आईएईए की निगरानी में रहेंगे। बदले में अमेरिका और यूरोपीय संघों द्वारा लागू आर्थिक और तेल प्रतिबंधों को धीरे-धीरे चरणबद्ध ढंग से समाप्त किया जाएगा लेकिन यदि ईरान शर्तों का उल्लंघन करता है तो उस पर दोबारा प्रतिबंध थोपा जा सकेगा। प्रतिबंध हटने से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ईरान अपने तेल को बड़े पैमाने पर बेच सकेगा। यदि शर्तों के मुताबिक ईरान सभी परमाणु प्रतिबद्धताओं को पूरा करता है और आईएईए इसकी पुष्टि करता है तो उस पर लागू परमाणु संबंधी प्रतिबंध समाप्त हो जाएंगे। उसके खिलाफ अतीत में लागू संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा प्रस्तावों को समाप्त कर दिया जाएगा। अमेरिका ने पिछले एक दशक से ईरान के परमाणु कार्यक्रमों के खिलाफ हमले तक की धमकी दे डाली थी। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के कार्यकाल में हालात बहुत तनावपूर्ण हो गए थे। बुश ने तो ईरान पर हमले तक की तैयारी कर ली थी। बराक ओबामा के कार्यकाल में हालात में सुधार आया और वार्ता की स्थिति बनी। ईरान भी सहमति के लिए कुछ लचीला हुआ है और पश्चिमी देश भी सहमति के बिन्दु पर आने के  लिए अपने रुख में बदलाव करने पर काफी कुछ राजी हुए। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि यह समझौता ठीक से लागू हुआ तो वह सारे रास्ते कट जाएंगे, जिनसे ईरान परमाणु हथियार बनाने की मंजिल तक पहुंच सकता है। बहरहाल अभी भी समझौते की सफलता को लेकर आशंका है तो उसकी वजह अमेरिका और ईरान में विपक्ष का इसे अस्वीकार कर देना है। रिपब्लिकन पार्टी ने कहा है कि इसे लागू करने के विधायी उपायों को वह अमेरिकी कांग्रेस (संसद) में पारित नहीं होने देगी। उधर ईरान के विपक्षी नेताओं ने सरकार पर देश की परमाणु संप्रभुता का समर्पण करने का आरोप लगाया है। दोनों पक्षों के शीर्ष नेताओं को इसके लिए जन समर्थन हासिल करना होगा। हम उम्मीद करते हैं कि दोनों देशों में अंतत विवेक की जीत होगी। शांतिपूर्ण समाधान ईरान और पश्चिमी देशों के हित में तो है ही शेष दुनिया भी राहत की सांस लेगी।

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