Wednesday, 15 April 2015

यमन युद्ध में पाकिस्तान का तटस्थ रहने का सही फैसला

सउदी अरब और उसके सहयोगी यमन में ईरान समर्थक शिया विद्रोहियों पर हवाई हमले कर रहे हैं। बेशक हवाई हमले हो रहे हैं पर हुथी लड़ाकों ने यमन के ज्यादातर हिस्सों पर कब्जा कर लिया है। दो सप्ताह हो गए हैं लेकिन सउदी अरब नेतृत्व वाला गठबंधन हुथी विद्रोहियों के नियंत्रण वाले क्षेत्र को मुक्त कराने में असफल रहा है। विद्रोहियों का प्रभाव बढ़ता ही चला जा रहा है और इनके बढ़ते प्रभाव के कारण राष्ट्रपति आबेद रब्बू मंसूर हादी को देश छोड़कर भागना पड़ा है। इस मामले में तेहरान और विद्रोही दोनों इंकार करते हैं कि ईरान उन्हें हथियार दे रहा है। हुथियों और पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह के वफादारों सहित अन्य सहयोगियों पर लगातार हो रहे हमले भी विद्रोहियों को अदन की ओर बढ़ने से नहीं रोक पा रहे हैं। इस बीच सउदी अरब ने पाकिस्तान से सैन्य मदद मांगी है और अपने सैनिकों को यमन में लड़ने के लिए अनुरोध किया है। सउदी अरब ने पाकिस्तान से कहा था कि वह यमन में हुथी विद्रोहियों के खिलाफ 10 देशों की ओर से चलाए जा रहे अभियान के लिए सैनिक, विमान और युद्धपोत मुहैया कराए। पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने इस अनुरोध पर पाक सांसदों व पाक सेना की सलाह मांगी थी। बीते सोमवार को संसद का संयुक्त सत्र बुलाया गया था और यमन के हालात एवं सउदी अरब के आग्रह पर चार दिनों तक चर्चा चली। इसके बाद शुक्रवार को सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया। प्रस्ताव में कहा गया कि पाकिस्तान को इस संघर्ष में तटस्थता बरतनी चाहिए ताकि वह इस संकट को खत्म करने में अतिसक्रिय राजनयिक भूमिका निभा सके। संसद में पारित हुए प्रस्ताव का मतलब है कि पाकिस्तान अब यमन के भीतर युद्ध का हिस्सा नहीं बनेगा। प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि पाकिस्तान को सउदी अरब की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए रियाद के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहना चाहिए। इसमें सउदी अरब के प्रति पूरा समर्थन व्यक्त किया गया। पाकिस्तान को तटस्थ रखने के लिए पड़ोसी ईरान ने अपने विदेश मंत्री मोहम्मद जव्वाद जरीफ को इस्लामाबाद भेजा। जरीफ ने नवाज शरीफ, थलसेना प्रमुख जनरल रहील शरीफ से मुलाकात की। जरीफ ऐसे समय में पाकिस्तान की यात्रा पर आए जब देश की संसद सैनिक लड़ाकू विमान अथवा जंगी जहाज मुहैया कराने के सउदी अरब के अनुरोध पर विचार कर रही थी। पाकिस्तान बुरी तरह फंस गया, इधर कुआं तो उधर खाई। सउदी अरब से उसे अरबों डॉलर प्रति वर्ष मिलते हैं, उसे वह किसी हालत में नाराज नहीं कर सकता, दूसरी ओर ईरान उसका पड़ोसी है उसे भी नाराज नहीं करना चाहता। इसलिए पाकिस्तान ने बीच का रास्ता अपनाया है और तटस्थ रहने का फैसला किया है। हम समझते हैं कि यह सही भी है। पाकिस्तान को अपने सैनिक यमन में नहीं भेजने चाहिए क्योंकि न तो इन्हें वहां के जमीनी हालात का पता है और न ही उसे इस गृहयुद्ध का हिस्सा बनना चाहिए। हां, एक और रास्ता हो सकता है कि वह लश्कर--तैयबा व अन्य जेहादी संगठनों को यमन में सउदी गठबंधन के साथ लड़ने को भेज सकता है।

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