Monday, 29 February 2016

संजय का जेल साथियों को अंतिम संदेश ः जुर्म से किसी का भला नहीं हुआ

करीब 42 महीने तक जेल की सजा काटने के बाद संजय दत्त 25 फरवरी को जेल से रिहा हो गए। गुरुवार सुबह 8.40 बजे यरवदा जेल से बाहर आते ही संजय ने धरती को प्रणाम किया और जेल में लगे तिरंगे को सैल्यूट किया। संजय दत्त की तिरंगे को सलामी फिल्मी सीन था। यह फिल्म उनके जीवन पर बन रही है और इसे बना रहे हैं राजकुमार हिरानी। जब संजय दत्त तिरंगे को सैल्यूट कर रहे थे, हिरानी वहीं मौजूद थे। जेल रेडियो के लिए बुधवार को आखिरी एपिसोड रिकार्ड किया गया था, जिसमें संजय ने कहाöगुड आफ्टरनून भाई लोग। अपुन जब तक कनैक्ट होंगे, तब तक मैं जा चुका होऊंगा। तुम लोगों के लिए यह लास्ट मैसेज छोड़कर जा रहा हूं। जुर्म करके किसी का भला नहीं हुआ। सच्चाई की राह पर चलना भाई लोग। मुंबई पहुंचकर संजय सिद्धि विनायक मंदिर गए, फिर मां नर्गिस की कब्र पहुंचे। बाद में प्रेस कांफ्रेंस कर पिता सुनील दत्त को याद किया। राजकुमार हिरानी उन्हें पूना से मुंबई चार्टर्ड प्लेन से लेकर आए। बेशक संजय दत्त अवैध हथियार रखने की सजा काटकर आखिर जेल से बाहर आ गए फिर भी विवादों से उनका पीछा अभी तक पूरी तरह नहीं छूटा। एक पत्रकार के जवाब में संजय को कहना पड़ा कि मैं टेरेरिस्ट नहीं हूं मैं तो आर्म्स एक्ट के तहत अंदर गया था। कहा यह भी गया कि पांच साल की सजा पूरी होने से डेढ़ साल पहले ही उन्हें क्यों छोड़ दिया? मगर कम लोग जानते हैं कि मौजूदा व्यवस्था में जेल प्रशासन का सजा में छूट देने का अधिकार एक जरूरत के रूप में स्वीकार किया गया है। जेल प्रशासन इस अधिकार का इस्तेमाल लगभग हर कैदी के मामले में पूरी उदारता से करता है। क्योंकि कैदियों के लिए अच्छे व्यवहार को आकर्षक बनाए रखने का इससे बेहतर तरीका कोई और नहीं है। सुनील दत्त और नर्गिस जैसे प्रतिष्ठित कलाकारों का इकलौता बेटा होने के बावजूद संजू का जीवन कड़वे अनुभवों से भरा रहा। बॉलीवुड में बतौर हीरो पहली फिल्म रॉकी रिलीज होते ही नर्गिस दुनिया से चली गईं। प्रोफेशनल कामयाबी और पर्सनल ट्रैजिडी का यह मेल संजय दत्त की जिन्दगी में लंबा चला। मां के गुजरने का गम उन्हें ड्रग्स की अंधेरी दुनिया में ले गया। वहां से निकलकर जिन्दगी को दोबारा पटरी पर लाने की कोशिश की, तो बॉलीवुड ने उनका भरपूर साथ दिया। निस्संदेह 1985 से 1993 तक के अपने कामयाब दौर में संजय दत्त ऐसे स्टार बन चुके थे जिनकी खराब फिल्में भी बॉक्स ऑफिस में हिट हो रही थीं। इसी माहौल में मुंबई बम ब्लास्ट से जुड़े केस सामने आए और संजय का जेल के भीतर-बाहर होने का सिलसिला शुरू हो गया। नतीजा यह हुआ कि बॉलीवुड एक झटके में चॉकलेट हीरो वाले दौर में चला गया। बहरहाल कठिन दौर को पीछे छोड़ संजय एक नई पारी शुरू करने वाले हैं। उम्मीद करें कि यह दौर उनके साथ-साथ फैंस के लिए भी रोमांचकारी सिद्ध होगा।

-अनिल नरेन्द्र

नौ फरवरी को जेएनयू में देश विरोधी नारे लगे ः खालिद

जेएनयू में देश विरोधी नारे और कार्यक्रम आयोजित करने के आरोप में दिल्ली पुलिस ने करीब पांच घंटे तक उमर खालिद और अनिर्बान से पूछताछ की है। पूछताछ के बाद ही इन दोनों को गिरफ्तार किया गया। सूत्रों की मानें तो उमर खालिद बिल्कुल टूट चुका था। उसने पुलिस के सामने यह बात मानी कि कार्यक्रम के दौरान उसने देश विरोधी नारे लगाए थे। दिल्ली पुलिस ने मंगलवार रात सरेंडर करने वाले देश विरोधी नारे लगाने के आरोप में उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य से लंबी पूछताछ की। इस पूछताछ में अहम खुलासे हुए। इन दोनों ने पुलिस को बताया कि नौ फरवरी की रात संसद के हमले के दोषी अफजल गुरु की बरसी पर जेएनयू में आयोजित सांस्कृतिक संध्या में करीब 15 छात्र-छात्राएं बाहर से भी शामिल हुए थे। इनमें छह छात्राएं व छात्र जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के थे। कुछ छात्रों की दोनों ने वीडियो देखकर पहचान कर ली है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि जिनकी पहचान कर ली गई है उन्हें आरोपी बनाकर जल्द ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा। दोनों आरोपियों ने देश विरोधी नारे लगाने की बात कबूल भी कर ली है अगर सूत्रों की मानें। यह भी पता करने की कोशिश की गई कि अफजल की बरसी मनाने का विचार उनके पास कहां से आया? अनिर्बान ने कबूल किया कि उसी ने कार्यक्रम के लिए बैनर-पोस्टर का इंतजाम किया था और छात्रों में इन्हें बंटवाया था। उमर के दोस्त रियाज से पूछताछ में पता चला कि उसने ही साउंड सिस्टम का इंतजाम किया था और कार्यक्रम के बारे में सोशल मीडिया पर सूचना लोड की थी। इसकी पुष्टि उमर और अनिर्बान ने कर दी है। पूछताछ में उन्होंने यह भी बताया कि छात्रा बन्ज्योत्सना लहेरी कार्यक्रम की आयोजक थी। पुलिस सूत्रों के मुताबिक जेएनयू कैंपस में नौ फरवरी को जो कार्यक्रम हुआ उसमें बाहरी देश का हाथ भी हो सकता है। खालिद से पूछताछ के दौरान यह पूछा कि कैंपस में कार्यक्रम को आयोजित करने के लिए किसने आर्थिक मदद की? लेकिन दोनों ने बताया कि अफजल को लेकर इस कार्यक्रम में किसी तरह की बाहरी आर्थिक मदद नहीं मिली और न ही पोस्टर्स यूनिवर्सिटी के लैब में बनाए गए। सवाल यह उठता है कि पुलिस के सामने दिए बयान को कोर्ट सबूत नहीं मानता। यह दोनों अदालत में अपने बयानों से जवाबों से मुकर सकते हैं। अब सारा दारोमदार दिल्ली पुलिस पर आ गया है। उन्हें अदालत में यह साबित करना होगा कि कन्हैया, उमर खालिद, अनिर्बान भट्टाचार्य व अन्य ने उस दिन देश विरोधी नारे लगाए थे।

Sunday, 28 February 2016

क्या सरकार अमीर मंदिरों को टैक्स के दायरे में लाएगी?

देशभर में अक्सर यह बड़ी चर्चा का विषय होता है कि भारत के मंदिरों के पास अथाह धन-दौलत है, लेकिन यह पैसा सरकार के काम नहीं आता है। सरकार ने अब इस पर अपनी निगाहें टेढ़ी कर दी हैं। सूत्रों पर भरोसा करें तो केंद्र सरकार देशभर के सभी धनाढ्य मंदिरों के साथ-साथ अन्य धार्मिक स्थलों को भी टैक्स के दायरे में लाने की कवायद में है। वास्तव में सरकार ट्रस्ट पर शिकंजा कसने की कोशिश में लगी है। अभी तक ट्रस्ट टैक्स के दायरे में नहीं आते। यही वजह है कि बहुत बड़ी धनराशि बेकार पड़ी रहती है। बताया जा रहा है कि इन पैसों को मेन-स्ट्रीम में लाने के लिए सरकार विचार कर रही है। सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों ही सचिवों के आठ समूह बनाए हैं। जिन्हें बड़े बदलाव के लिए सुझाव देने हैं। इनमें से कई सुझावों को बजट में भी शामिल किया जा सकता है। सचिवों के समूह ने धार्मिक स्थलों को भी इनकम टैक्स के दायरे में लाने का सुझाव दिया है। लिहाजा मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च पर भी इनकम टैक्स लगाया जा सकता है। गौरतलब है कि देशभर में दर्जनों मंदिर ऐसे हैं जिनके पास अकूत सम्पत्ति है, लेकिन इन पैसों का इस्तेमाल देश के विकास में नहीं हो पा रहा है। सचिवों के समूह ने सुझाव दिया है कि जिन ट्रस्टों के पास इन मंदिरों का अधिकार क्षेत्र है उनको भी टैक्स के दायरे में लाया जाए। ऐसे में अगर इस सिफारिश को मान लिया जाता है तो देश के तमाम बड़े मंदिरों के ट्रस्ट इसके दायरे में होंगे। बता दें कि एक आंकलन के अनुसार इस समय देश के 10 बड़े मंदिर यह हैंöपद्मनाभस्वामी मंदिर, तिरुपति बालाजी, शिरडी के साईं बाबा, वैष्णो देवी मंदिर, सिद्धि विनायक मंदिर, सोमनाथ मंदिर, श्री जगन्नाथ मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर, गुरुवयूर मंदिर, मीनाक्षी अम्मन मंदिर आदि ऐसे मंदिर हैं जिनके पास बेशुमार सम्पत्ति है। अगर सरकार इन मंदिरों से टैक्स लेने का फैसला करती है तो जाहिर है कि इन मंदिरों से जुड़े लोग इसका विरोध करेंगे और एक नया विवाद खड़ा हो सकता है। सरकार की अपनी मजबूरी है उसे पैसा चाहिए, खजाना खाली है, जहां से भी संभव हो सके पैसा जुटाने का प्रयास करेगी। वैसे अधिकतर मंदिर समाज उत्थान के लिए कई तरह की योजनाएं चला रहे हैं जिनमें स्कूल, कॉलेज, अस्पताल इत्यादि शामिल हैं।

-अनिल नरेन्द्र

स्मृति और अनुराग के सटीक भाषण से कांग्रेस-वाम दल ढेर

जेएनयू और हैदराबाद विश्वविद्यालय के मुद्दे पर सरकार को संसद में घेरने की विपक्षी रणनीति बुरी तरह ध्वस्त हो गई। मैं दो वक्ताओं का खास जिक्र करना चाहूंगा। मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी के भाषण का और सांसद अनुराग ठाकुर का। यूं तो मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की औपचारिक शिक्षा को लेकर सवाल भी उठते रहे हैं और मजाक भी बनते रहे हैं। मुझे यह मानने में संकोच नहीं कि जब प्रधानमंत्री ने मानव संसाधन मंत्रालय स्मृति ईरानी को दिया तो मुझे भी थोड़ा आश्चर्य जरूर हुआ था पर बुधवार और बृहस्पतिवार को जिस तरीके से, प्रभावी ढंग से स्मृति ने लोकसभा और फिर राज्यसभा में सरकारी पक्ष रखा उससे मुझे अपनी राय उनके बारे में बदलनी पड़ी है। बुधवार को स्मृति ईरानी ने अपनी वाक कला और तथ्यों से विपक्ष की बोलती बंद कर दी। वाम दल अलग-थलग हुए और कांग्रेस इतनी असहज हुई कि राहुल गांधी को तो लोकसभा से भागना पड़ा। स्मृति ईरानी ने इतना असहज कर दिया इन्हें (विपक्ष को) सरकार का जवाब सुने बिना ही पहले पांच-सात मिनट में वाकआउट करना पड़ा। एक दिन पहले ही प्रधानमंत्री ने पार्टी को निर्देश दिया था कि किसी मुद्दे पर तथ्यों के साथ पूरी तरह आक्रामक रहें। स्मृति ईरानी उस मानक पर पूरी तरह खरी उतरीं। जेएनयू के ही सुरक्षा अधिकारियों व अन्य की रिपोर्ट का हवाला देते हुए आक्रामकता के साथ न सिर्प चौंकाने वाले तथ्य रखे बल्कि वाकआउट कर रहे विपक्षी नेताओं को चुनौती भी दी कि वह हिम्मत दिखाएं और जवाब सुनें। उन्होंने लोकसभा व देश को बताया कि कन्हैया कुमार और उमर खालिद व कुछ अन्य छात्रों को खुद प्रशासन ने राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त पाया है। उमर खालिद ने आयोजन के लिए स्थल बुक कराया और वहीं राष्ट्र विरोधी नारे लगाए। पूरी तैयारी के साथ उतरीं स्मृति ईरानी इतनी भावुक हो गईं कि उन्होंने कहाöमैंने अपने कर्तव्य का निर्वाह किया है। इसके लिए माफी नहीं मांगूगी। उन्होंने याद दिलाया कि खुद इंदिरा गांधी सत्ता खो चुकी थीं लेकिन उनके पुत्र राजीव गांधी ने भारत की बर्बादी के नारों का कभी समर्थन नहीं किया। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के हैदराबाद विश्वविद्यालय तथा जेएनयू जाने का उल्लेख करते हुए स्मृति ने कहा कि क्या कांग्रेस अमेठी का बदला इस तरह की बेबुनियाद बातों से लेगी? राजीव गांधी कभी भी देश के टुकड़े करने वालों के साथ खड़े नहीं हुए लेकिन राहुल गांधी देश विरोधियों के साथ खड़े हैं। उन्होंने कांग्रेस को याद दिलाया कि जेएनयू में वीसी से लेकर छोटे से छोटे पदों पर नियुक्तियां यूपीए शासनकाल में हुईं। वामपंथियों को ललकारते हुए उन्होंने कोलकाता की एक सभा और उसके लिए छपे पम्पलेट तथा वहां की बातों का उल्लेख कर उनकी घृणित मनोवृत्तियों का पर्दाफाश किया। यह प्रसंग था श्री दुर्गा पूजा और मां दुर्गा तथा महिषासुर राक्षस का। इस प्रसंग में जो कुछ कहा गया वह इतना शर्मनाक है कि उसे पढ़कर भी सुनाना एक सभ्य नागरिक के लिए संभव नहीं है। लोग या तो स्मृति ईरानी के प्रशंसक होंगे या आलोचक। उनके आलोचक जहां उनके भाषण को ड्रामा करार देने से नहीं चूके, वहीं ऋषि कपूर जैसे विख्यात सिने स्टार उन्हें फीमेल अमिताभ करार दे दिया तो परेश रावल ने सुनामी। जबकि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके भाषण पर ट्विट किया और कहाöसत्यमेव जयते। अब बात करते हैं भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर की। कांग्रेस की भूमिका पर सवाल उठाते हुए अनुराग ठाकुर ने पूछा कि आपको साफ करना होगा कि आप किसके साथ हैं। आप संसद पर हमला करने वालों के साथ या संसद को बचाने वालों के साथ हैं? राहुल की विचित्र राजनीति के चक्कर में निचले सदन में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूरी कांग्रेस पार्टी के लिए बचाव करना मुश्किल हो रहा है। राष्ट्र विरोधी नारे लगाने वालों के साथ कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के खड़े होने पर भाजपा की ओर से चर्चा में शामिल अनुराग शुरू से ही आक्रामक मुद्रा में दिखे। उन्होंने कहा कि राहुल कैप्टन पवन कुमार के घर नहीं गए लेकिन जेएनयू में देश को तोड़ने वालों के पास पहुंच गए। इस बीच राहुल गांधी के सदन के बाहर जाने पर भी उन्होंने चुटकी ली। ठाकुर ने कहा कि अभी तो हमने सवाल पूछना शुरू ही किया अब इनका जवाब कौन देगा? अनुराग ने कहा कि डीएसयू के जिन छात्रों के साथ वे जेएनयू में खड़े थे, उनके बारे में संप्रग सरकार के दौरान गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह ने बताया था कि यह नक्सलियों का फ्रंट संगठन है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को तय करना है कि अफजल गुरु उनके लिए आतंकी है या शहीद? समस्या यह है कि जेएनयू के कुछ छात्र देश के टुकड़े-टुकड़े करने की बात कहते हैं और आप उनके साथ खड़े होते हैं। ठाकुर ने कहाöराहुल जी आप कौन-से टुकड़े पर राज करेंगे? रोहित वेमुला से लेकर जेएनयू तक हर मुद्दे पर सत्तापक्ष के वक्ताओं ने विपक्ष को पानी-पानी कर दिया। राजनीति के बड़े-बड़े दिग्गज न ही वाणी से और न ही तेवरों से स्मृति ईरानी और अनुराग ठाकुर को रोक सके। स्मृति ईरानी लोकसभा में धुआंधार बोलीं। तथ्यों और आंकड़ों के साथ हिन्दी और अंग्रेजी में पूरी सहजता से बोलते हुए उन्होंने तमाम विपक्ष को धो डाला। एक्टर ऋषि कपूर ने कहा कि स्मृति ईरानी ने लोकसभा में क्या भाषण दिया है। मैं यह तय नहीं कर पा रहा था कि आपको देखूं या इंडिया-बांग्लादेश के बीच टी-20 मैच।

Friday, 26 February 2016

पठानकोट के बाद अब पांपोर

सुरक्षाबलों ने जम्मू-कश्मीर के पांपोर में उद्यमिता विकास संस्थान (ईडीआई) के भवन में छिपे सभी आतंकियों को 48 घंटे तक लंबी चली मुठभेड़ के बाद सोमवार को मार गिराया। भवन में तीनों आतंकियों के शव बरामद कर लिए गए। रविवार को एक आतंकी को मार गिराया था। मुठभेड़ में हमारे दो बहादुर कैप्टन सहित पांच जवान शहीद हो गए। एक नागरिक की भी मौत हो गई। सभी आतंकी लश्कर--तैयबा के विदेशी आतंकी थे। पांपोर में हुआ यह आतंकी हमला महज 50 दिन पहले पठानकोट के एयरबेस पर हुए हमले से कमतर जरूर था, पर यह हमला सीमा पार से अंजाम दी जाने वाली आतंकी कार्रवाइयों की पुनरावृत्ति जैसा ही था। यह हमला और भयावह हो सकता था, यदि सेना के जवानों ने सीआरपीएफ के काफिले पर हमले के बाद ईडीआई पर आतंकियों के कब्जे से पहले ही वहां मौजूद सौ से अधिक छात्रों और शिक्षकों को हटा नहीं लिया होता। यही नहीं, ईडीआई की इमारत भी नेशनल हाइवे पर स्थित है, जहां आवाजाही बनी ही रहती है। 48 घंटे से भी अधिक समय तक चली इस कार्रवाई में देश ने दो युवा कैप्टन पवन कुमार और तुषार महाजन सहित पांच जवान खो दिए हैं। इस आतंकी हमले के लिए लश्कर--तैयबा की पीठ थपथपा कर प्रतिबंधित पाकिस्तानी जेहादी संगठन जमात-उद-दावा ने अपना असली चेहरा उजागर कर दिया है। ऐसी निन्दनीय वारदात के लिए जमात-उद-दावा के सोशल मीडिया प्रकोष्ठ के मुखिया ने ट्विट करके लश्कर--तैयबा को न केवल बधाई दी बल्कि भारतीय सेना पर कई और हमले करने की चेतावनी भी दे डाली। ऐसे हर हमले के बाद मार्मिक कहानियां सामने आती हैं, जिनसे पता चलता है कि आतंकवाद से निपटने में देश को कितनी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। इसके साथ ही हाल के दो हमलों को देखें तो एक खास पैटर्न पता चलता है। यह महज इत्तेफाक नहीं है कि जब-जब भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत की संभावनाएं दिखती हैं, सीमा पार से आतंकी कार्रवाई को अंजाम दिया जाता है। मसलन पांपोर में इस हमले को अंजाम तब दिया गया जब पाकिस्तान में अंतत पठानकोट हमले को लेकर एफआईआर दर्ज करने की खबरें आईं। उधर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने खुलासा किया है कि पठानकोट इंडियन एयरबेस पर आतंकी हमले से संबंधित एक मोबाइल फोन नम्बर का सुराग मिला है। यह नम्बर जैश--मोहम्मद के हैडक्वार्टर बहावलपुर का है। अजीज ने कहा कि पठानकोट हमले में दर्ज की गई एफआईआर तार्पिक और सकारात्मक कदम है। इससे दोषियों को न्याय के कठघरे में लाने में मदद मिलेगी। बेशक पाकिस्तानी सरकार ने पठानकोट हमले पर सहयोग का रुख दिखाया है मगर जब तक अजहर और सईद आजाद घूमेंगे हमले होते रहेंगे।
-अनिल नरेन्द्र
 
 

पलभर में खाक हो गई पीढ़ियों की कमाई

हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हुई उपद्रव की आग से हुए नुकसान की भरपायी में सालों लग जाएंगे। सूबे के लोगों ने भाईचारा ही नहीं खोया, रोजी-रोटी व मानवता भी खो डाली। जिस कारोबार को खड़ा करने में पीढ़ियां खप गईं, वो उन्माद के तूफान में तिनके की तरह उड़ गया। बचे हैं तो सिर्प बेबसी, लाचारी और नफरत। घृणा और नफरत उनके खिलाफ है जिन्होंने चमन को उजाड़ दिया, गुस्सा उन पर भी है जो उनकी बर्बादी को तमाशबीन होकर देखते रहे। सैकड़ों परिवारों की रोजी-रोटी का सहारा छिन गया। कल तक जो मालिक थे आज वो राख के ढेर पर बैठे अपनी बेबसी को कोस रहे हैं। भारतीय रेलवे के रिकार्ड के अनुसार एक दर्जन स्टेशनों को जला दिया गया, ट्रेन के तीन इंजन को बुरी तरह से आंदोलनकारियों ने क्षतिग्रस्त कर दिया। कई जगह रेलवे ट्रैक को क्षतिग्रस्त कर दिया गया। करोड़ों का नुकसान हो गया। ऐसा आंदोलन हमने पहले कभी नहीं देखा। हरियाणा का सोनीपत जब आरक्षण आंदोलन की आग में जल रहा था उसी दौरान सोमवार सुबह जीटी रोड पर मुरथल के पास कुछ महिलाओं से बदसलूकी की गई। ऐसी भी चर्चा है कि बदमाशों ने कुछ महिलाओं से दुष्कर्म भी किया। कहा जा रहा है कि बदमाशों ने गाड़ियों को रोककर उनमें आग लगा दी। जान बचाकर भाग रही महिलाओं के साथ बदसलूकी और दुराचार तक किया गया। दिल्ली के जल मंत्री कपिल मिश्रा मंगलवार को मुनक नहर की टूट-फूट का जायजा लेने गए थे। 150 फुट नहर का हिस्सा पूरा टूटा है। दिल्ली जल बोर्ड और हरियाणा की टीमों ने मिलकर भी युद्ध स्तर पर 24 घंटे काम किया तो भी कम से कम 15 दिन दुरुस्त करने में लगेंगे। इस दौरान दिल्लीवासी पानी को तरस रहे हैं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा है कि इस आंदोलन व उपद्रव के पीछे बड़ी साजिश है। उन्होंने साफ कहा कि प्रदेश में राजनीतिक पार्टी व संगठनों ने षड्यंत्र के तहत उपद्रव कराया है। जांच कराकर षड्यंत्र का जल्द ही खुलासा किया जाएगा और साजिश रचने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। हरियाणा को आग में जलाने वालों पर कार्रवाई की जाएगी। वहीं हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के राजनीतिक सलाहकार का ऑडियो क्लिप सामने आने के बाद सरकार के निशाने पर सबसे ज्यादा कांग्रेस है। ऑडियो क्लिप की जांच भी शुरू करा दी गई है। सीएम के अनुसार प्रदेश में 19 मौतें हुई हैं और 20 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है। उधर मुरारी लाल गुप्ता की जनहित याचिका पर जस्टिस एसके मित्तल और एमएस सिद्धू की बैंच ने महाधिवक्ता बीआर महाजन को रिपोर्ट देने को कहा है। कोर्ट ने कहाöसभी राजनीतिक दलों व नेताओं को जनकल्याण के बारे में सोचना चाहिए। हरियाणा को वही हरियाणा रहने दें जैसा कि उसे जाना जाता है। नहीं तो वह 50 वर्ष पीछे चला जाएगा।

Thursday, 25 February 2016

Hafiz Saeed trying to recruit some Indian journalists

Infuriated at the  failure in its nefarious designs so far, the Pak intelligence agency ISI has now changed its tactics. Now it is trying to reach the Indian youth, journalists and some other organizations. ISI is also using social media as a weapon. It is excreting poison against India through twitter and Facebook accounts of thumb impression Lashkar chief Hafiz Saeed. As per reports after failure in its nefarious designs so far, ISI is resorting to accounts like twitter, Facebook and YouTube to reach up to some organizations besides provoking the youth and trying to motivate  them with its jihadist propaganda. It is also reported that Hafiz Saeed has started to gather information about some journalists and anchors of Indian electronic channels so that they may be approached for making a mode for its propaganda. Background of these journalists and anchors is being screened and efforts are on to find out who are against Modi Government and often raise issues against Modi and his government. It is being watched that who is approachable amongst these. ISI has started to operate accounts of terrorist set up Lashkar chief Hafiz Saeed and uploading the material creating instability in India, provoking youths and jehadi thoughts there. Since the thumb impression Hafiz Saeed can’t speak-write any language other than his mother tongue, ISI has taken responsibility to operate his accounts such as twitter, Facebook and YouTube. As per sources India has so far closed down about two dozen such accounts of Hafiz. ISI has thereafter changing the tactics taken its command. As per sources Hafiz Saeed has a cyber cell, which is preparing a data bank of Indian journalists. It has details of mobile numbers, e-mail and twitter account of journalists. Besides a data bank of some student unions and some other organizations is also being prepared, so that their thoughts under the planned tactics by the name of Hafiz be uploaded on this account. If sources are to be believed Hafiz Saeed has contacted some Indian journalists through twitter some days ago. The satisfactory response on so called account of Hafiz has alerted the security agencies. Security agencies are about to contact those Indian journalists also who are linked with Lashkar chief Hafiz Saeed through twitter. It’s necessary to stop this dangerous tactics of ISI without any delay.

-        Anil Narendra

 

हाफिज सईद कुछ भारतीय पत्रकारों को टेस्ट करने के चक्कर में

अब तक भारत में अपने नापाक मंसूबों से सफल न होने से बौखलाई पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने अब अपनी रणनीति बदल ली है। अब उसका पयास है भारत के युवाओं, पत्रकारों व कुछ संगठनों तक अपनी पहुंच बनाने का। अब आईएसआई सोशल मीडिया को भी हथियार बना रही है। आईएसआई अंगूठा छाप लश्कर चीफ हाफिज सईद के ट्विटर और फेसबुक एकाउंट चलाकर भारत के खिलाफ जहर उगल रही है। सूत्रों के अनुसार अब तक भारत में अपने नापाक मंसूबों में असफल होने के बाद आईएसआई अपने जेहादी पोपेगेंडा के साथ युवाओं को भड़काने और उन तक पहुंच बनाने के अलावा कुछ संगठनों तक अपनी पहुंच बनाने के लिए ट्विटर, फेसबुक और यू-ट्यूब जैसे एकाउंट का सहारा ले रही है। यह भी खबर है कि हाफिज सईद ने भारतीय इलैक्ट्रॉनिक चैनलों के कुछ पत्रकारों व एंकरों के बारे में भी जानकारी लेना शुरू कर दी है ताकि उन्हें एपोच कर अपने पोपेगेंडा के लिए उन्हें माध्यम बनाया जाए। इन पत्रकारों व एंकरों का बैक ग्राउंड छाना जा रहा है और यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि जो मोदी सरकार के खिलाफ हैं और अक्सर मोदी और उनकी सरकार के खिलाफ मुद्दे उठाते रहते हैं। यह देखा जा रहा है कि इनमें से कौन-कौन एपोचेबल हो सकता है। आईएसआई ने आतंकी संगठन लश्कर के चीफ हाफिज सईद के एकाउंट चलाने और उस पर भारत में अस्थिरता पैदा करने, युवाओं को भड़काने और जेहादी बातों को अपलोड करना शुरू कर दिया है। चूंकि अगूंठा छाप हाफिज सईद को अपनी भाषा  के अलावा और कोई भी भाषा बोलनी-लिखनी नहीं आती, लिहाजा आईएसआई ने उसके ट्विटर, फेसबुक और यू-ट्यूब जैसे एकाउंट चलाने का जिम्मा ले लिया है। सूत्रों के अनुसार भारत ने अब तक हाफिज के इस तरह के करीब दो दर्जन एकाउंट बंद कराए हैं। इसके बाद आईएसआई ने भी रणनीति बदलते हुए कमान अपने हाथ में ले ली है। सूत्रों के अनुसार कहने को हाफिज सईद का साइबर सेल है, जो भारतीय पत्रकारों का एक डाटा बैंक तैयार कर रहा है। इनमें पत्रकारों के मोबाइल नंबर, -मेल और ट्विटर एकाउंट का लेखा-जोखा है। इसके अलावा कुछ छात्र संगठनों व कुछ अन्य संगठनों का भी डाटा बैंक तैयार किया जा रहा है, ताकि हाफिज के नाम पर सोची समझी रणनीति के तहत अपनी बातों को इस एकाउंट पर डाला जा सके। अगर सूत्रों की मानें तो कुछ दिन पहले हाफिज सईद ने कुछ भारतीय पत्रकारों से ट्विटर के माध्यम से संपर्क भी साधा था। हाफिज के तथाकथित एकाउंट पर आ रहे संतोषजनक जवाब ने सुरक्षा एजेंसियों को चौंका दिया है। सुरक्षा एजेंसी उन भारतीय पत्रकारों से भी संपर्क करने वाली है जो ट्विटर के माध्यम से लश्कर सरगना हाफिज सईद से जुड़े हैं। आईएसआई की इस खतरनाक रणनीति पर अविलंब रोक लगाना जरूरी है।

öअनिल नरेंद

उमर खालिद का आत्मसमर्पण सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है

देशद्रोह के आरोपी जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य ने अंतत मंगलवार देर रात दिल्ली पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। या यूं कहें कि वह आत्मसमर्पण करने पर मजबूर हो गए। मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट से राहत नहीं मिलने पर ये दोनों आधी रात में जेएनयू कैंपस से बाहर निकले और खुद को पुलिस के हवाले कर दिया। दोनों के खिलाफ वसंत पुंज थाने में मामला दर्ज है और उन्हें थाने के एसटीएफ कार्यालय में रखा गया। दोनों छात्रों को धारा 124 ए के तहत गिरफ्तार किया गया। अभी भी रामा नागा अनंत और आशुतोष ने समर्पण नहीं किया है। मैं समझता हूं कि दिल्ली पुलिस ने बड़ी शालीनता और सब्र से व्यवहार किया है और वह इन धर्मनिरपेक्षों की चाल में नहीं फंसी। यह तत्व चाहते थे कि पुलिस जेएनयू में घुसे और वह इसे एक नया मुद्दा बनाए। पर पुलिस ने संयम से काम लिया। हमें तो यह लगता है कि उमर खालिद और अन्य छात्रांs का अचानक सामने आना एक सोची-समझी रणनीति और तैयारी का हिस्सा है। कानूनी सलाह के साथ तैयारी की गई है। साथ ही संसद सत्र को ध्यान में रखा गया है। 9 फरवरी के बाद से लापता रहने के बाद उमर ठीक संसद सत्र से दो दिन पहले सामने आए। उन्हें संसद सत्र के दौरान गिरफ्तारी पर ज्यादा माइलेज मिलने की उम्मीद है। साथ ही लगता होगा कि सत्र चलने की वजह से सरकार दबाव में रहेगी। क्या उमर खालिद और गैंग जेएनयू में ही छिपे बैठे थे? क्या इनको छिपाने में जेएनयू के शिक्षकों की भी भूमिका थी? जिस तरह से दस दिनों की लुकाछिपी के बाद अचानक ये छात्र पकट हुए हैं वह संशय पैदा करता है कि कहीं ये छात्र कैंपस में ही किसी शिक्षक के यहां तो नहीं छिपे थे? जेएनयू छात्र संघ के संयुक्त सचिव सौरभ शर्मा की मानें तो सभी आरोपी पैंपस में ही छिपे थे। एवीबीपी ने जेएनयू के कुछ शिक्षकों पर आरोप लगाया है कि उनके संबंध अलगावादियों, माओवादियों और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से हैं। जेएनयू में एवीबीपी के पदाधिकारी आलोक ने सोमवार को परिसर में संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि 9 फरवरी की घटना के आरोपियों ने 21 फरवरी को एक बार फिर कैंपस में आवाज बुलंद की। यही नहीं देशद्रोह के आरोपी उमर खालिद ने जेएनयू के कुछ शिक्षकों का धन्यवाद भी ज्ञापित किया। हमें शक है कि इन्हीं शिक्षकों से उसे शह मिली है। उन्होंने कहा कि ऐसे शिक्षकों की जांच के लिए न्यायिक समिति बनाने की जरूरत है। चंद मुट्ठी भर लोग जेएनयू को बदनाम कर रहे हैं। यदि पुलिस जांच होगी तो साफ हो जाएगा कि पैंपस में कहां इन देशद्रोहियों को पनाह मिली। जेएनयू मामले में शनिवार और रविवार को उमर खालिद से जुड़ाव रखने वाले जेएनयू और डीयू के करीब 40 शिक्षकों से पूछताछ की गई। साथ ही 10 वरिष्ठ पत्रकारों से सवाल-जवाब किए गए। 30 अन्य शिक्षकों-छात्रों को पूछताछ के लिए नोटिस दिया गया है। जानकारी के अनुसार जिन शिक्षकों से पूछताछ की गई वे विभिन्न वामपंथी संगठनों से जुड़े हैं। जांच में शामिल पत्रकार स्वतंत्र लेखन का कार्य करते रहे हैं और वामपंथी आंदोलनों से किसी न किसी पकार से जुड़े रहे हैं। साथ ही जेएनयू के छात्र भी रहे हैं। फरारी से पहले उमर की मोबाइल फोन पर इन सभी से बात होती रही है। हालांकि पुलिस ने इन लोगों की संलिप्ता पर कुछ भी बोलने से इंकार किया है। लेकिन इन लोगों से उमर और उसके साथियों की जानकारी साझा करने को कहा गया है। पूछताछ में इन शिक्षकों ने उमर के ठिकाने के बारे में सूचना होने से इंकार किया। उमर खालिद को झूठा फंसाया जा रहा है या वह देशद्रोही हैं, अब सत्य सामने आ जाएगा। अदालत में सब कुछ पता चल जाएगा।

Wednesday, 24 February 2016

JNU a victim of vote-bank politics

The JNU dispute continuing for past several days has provided an opportunity to some political parties to consolidate their vote bank and to propagate their political agenda. Hence  are leaving no stone unturned for their political profit and loss over this issue, to humiliate each other, drawing lines between patriotism and treason. In fact it is the bitter truth that from the day Narendra Modi became the Prime Minister of India, the Congress party and a section of Muslims stood against him. Watching the last two years you may not find any issue when Congress and this minority have not opposed Modi. So far as leftists are concerned, the left parties finished almost in the almost entire world were in search of an opportunity to get back their lost base. They are being supported by some anchors and management of electronic channels. Each day they try to take on Modi and his government over any pretext. Today electronic channels have been divided into two camps. Some are opposing openly while others are supporting openly. In this political war, real issues are getting sidelined. What happened in the JNU on the ninth of February? On the ninth of February slogans like Pakistan Zindabad, Kashmir ki Azaadi tak,Hindustan kI Barbadi tak were raised in an assembly held at the JNU. When the students of the JNU along with the outsiders were shouting anti-national slogans Kanhaiya Kumar was also present in this assembly and slogan shouting. So it  is clear that the assembly was held and anti-national slogans were raised in that assembly. Now the question arises whether Kanhaiya raised the slogans or not? Should be he charged with treason or not? Police Commissioner of Delhi Bhim Sain Bassi has repeated many a times that the police have sufficient evidences against Kanhaiya which have been submitted in the court. It will only be adjudged by the fair and scientific investigation whether the video recording is genuine or not. To find this out, Delhi Police are undergoing forensic test of the anti-national slogan tapes and the voice of Kanhaiya Kumar. Claims for Anti-national slogans rised or not raised by Kanhaiya Kumar are being made in several videos viral on social media. Delhi Police claim that besides the video tape the police have 17 witnesses. They have registered their statements against Kanhaiya before the police. Most of them said that Kanhaiya was raising anti-national slogans. This was the part of the programme in which anti-national slogans were raised. Kanhaiya neither prevented the slogan shouting  nor did he walk out of the assembly. Most of the 17 witnesses are from the JNU. But these political parties aren’t in a mood to wait for the judgement of the court and are bent upon proving Kanhaiya innocent. We say that if Kanhaiya has not committed an act of treason and he has been charged forcefully then it is the court which will exonerate him of treason. Our fight is not with the JNU. It’s not so that the JNU is not a great institution yet it has come to the target just for the sake of a handful of students. If the JNU is in the limelight due to bad reasons today, the Government, the university administration and the students of the JNU all are responsible for it. Anti-national activities in the JNU has not occurred for the first time, but such activities continuously happen there on the pretext of freedom of expression. Slogans of dividing India were its peak. Had the action been taken against such activities earlier, we wouldn’t have to see this day. The slogan shouting in the JNU campus against Indira Gandhi in the eighties may be forgotten treating it as political protest, but it can’t be forgotten what happened to the brave soldiers fighting in the Kargil in the year 2000. After the Kargil war was over, an India-Pak Mushaira was organized in the JNU campus. Major KK Sharma and Major LK Sharma of the Army who fought in Kargil with Pakistan reached there to enjoy the mushaira. Both the heroes of Kargil opposed the anti-Indian shayari of a Pak Shayar. Over it the JNU students brutally beat both of them instead. They were admitted to the hospital in half dead condition. The issue was then taken up in the Parliament also and then Defence Minister George Fernandes went to hospital to see the injured majors. But no action was taken due to the protest of student union and teachers. The government also constituted an inquiry committee but was not allowed to enter the JNU. When the entire nation was mourning the death of 76 soldiers by Naxalites in Chhattisgarh in 2010, a party was being arranged in the JNU to celebrate it. Despite the reports published in the press the then UPA Government didn’t bother to take any action. The links of some JNU students with Naxalites were also found and JNU student Hem Mishra was also arrested in Garhchiroli. Police investigations have made it clear that Omar Khalid, the conspirator of organizing the programme for the destruction of India is also a member of DSU like Hem Mishra. Unfortunately some political parties are busy in trying to consolidate their vote banks and advance their political agenda instead of dispraising the activities of some JNU students and saving this great Institution.

Anil Narendra

रिंगिंग बेल्स का फ्रीडम 251 स्मार्ट फोन

सिर्प 251 रुपए में दुनिया का सबसे सस्ता स्मार्ट फोन देने का दावा कर शौहरत बटोरने वाली रिंगिंग बेल्स के लिए खतरे की घंटियां बजने लगी हैं। फ्रीडम 251 फोन के मामले में विवाद थमता नजर नहीं आ रहा। रिंगिंग बेल्स भले ही लाखों फोन बेचने का लक्ष्य तय करे, लेकिन अभी तक कंपनी ने स्मार्ट फोन बनाने के लिए उत्पाद शुल्क विभाग से अपना पंजीयन नम्बर तक नहीं लिया है। दरअसल किसी भी कंपनी को कोई भी उत्पादन शुरू करने के लिए उत्पाद शुल्क विभाग से पंजीयन नम्बर लेना अनिवार्य होता है। रिंगिंग बेल्स मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत फोन बनाने का ऐलान कर चुकी है। कंपनी का कहना है कि 10 अप्रैल से 30 जून के बीच वह 25 लाख फ्रीडम 251 की डिलीवरी करेगी। हालांकि गत शनिवार तक फ्रीडम 251 की पांच करोड़ से ज्यादा यूनिटों की बुकिंग की चर्चा थी लेकिन कंपनी सिर्प 25 लाख फोन देने की बात कर रही है। शनिवार को ही फोन की बुकिंग बंद कर दी है। फोन निर्माताओं के मुताबिक 30 जून तक 25 लाख फोन बनाने के लिए हर महीने रिंगिंग बेल्स को छह लाख से अधिक फोन बनाने होंगे। यानि कि एक मार्च से भी फोन का उत्पादन शुरू किया जाता है तो 30 जून तक प्रतिदिन 25000 फोन का निर्माण करना होगा। रिंगिंग बेल्स के स्मार्ट फोन की बुकिंग के दौरान कंपनी की तरफ से कोई भुगतान नहीं लिया गया है। कंपनी ने बुकिंग कराने वाले ग्राहकों को अगले 48 घंटे में भुगतान करने के बारे में जानकारी देने की बात कही है। फ्रीडम 251 फोन के मामले में बढ़ रहे विवाद को देखते हुए संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने जांच के आदेश दिए हैं। संचार मंत्री ने यह कदम भाजपा सांसद किरीट सोमैया के एक पत्र के जवाब में उठाया है। सोमैया के अलावा मोबाइल फोन निर्माता कंपनियों ने भी इस स्कीम को लेकर प्रसाद के पास शिकायत की थी। इसमें उन्होंने इतनी कम कीमत में स्मार्ट फोन देने का दावा करने वाली स्कीम पर संदेह जताया था। सोमैया ने सबसे सस्ते फोन का दावा करने वाली रिंगिंग बेल्स को लेकर सवाल उठाते हुए दूरसंचार और वित्त समेत कई मंत्रालयों से सम्पर्प साधा था। फ्रीडम 251 स्कीम के तहत अब तक करीब पांच करोड़ बुकिंग हो चुकी है। कंपनी ने अब अपनी वेबसाइट पर ऑनलाइन बुकिंग बंद करने का ऐलान कर दिया है। रिंगिंग बेल्स के एमडी मोहित गोयल ने हालांकि इस सस्ते फोन की लागत वसूलने का फॉर्मूला पुलिस को बताया है। कंपनी का दावा है कि उसे मेक इन इंडिया के तहत मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाने पर 30 प्रतिशत की सब्सिडी मिलेगी। साथ ही ई-कॉमर्स फर्म स्नैपडील के साथ समझौता कर लिया है। गोयल ने बताया कि फ्रीडम 251 स्कीम के तहत दिए जाने वाले फोन की लागत करीब साढ़े चौदह सौ रुपए है। पुलिस ने इन दावों पर भरोसा न करते हुए सभी कर्मचारियों का ब्यौरा तलब किया है। समय ही बताएगा कि यह हकीकत है या फंसाना?

-अनिल नरेन्द्र

भारत-नेपाल की सारी गलतफहमियां दूर हुईं

बीते पांच महीनों से मधेसी आंदोलन के चलते भारत से नेपाल के रिश्तों में आई खटास अब दूर हो गई है। अपनी पहली विदेश यात्रा पर भारत आए नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कहा कि दोनों देशों के बीच सारी गलतफहमियां दूर हो गई हैं। यह अच्छा हुआ कि भारत के दौरे पर आए नेपाल के प्रधानमंत्री ने खुले मन से यह स्वीकार कर लिया कि दोनों देशों के बीच जो गलतफहमी थी वह दूर हो गई है। यह इसलिए भी क्योंकि जो तल्खी स्वयं ओली और उनके मंत्रियों ने पिछले पांच महीनों में दिखाई थी, वह यात्रा के दौरान और समापन तक गायब रही। वैसे अच्छा होता कि यह काम और पहले हो जाता लेकिन कम से कम अब दोनों पक्षों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि दोस्ती की राह में आगे कोई मतभेद न आएं। भारत की नीति कभी न नेपाल विरोधी थी, न हो सकती है। भारत कभी नेपाल या वहां के लोगों को हेय दृष्टि से देख ही नहीं सकता किन्तु नेपाल के पहाड़ी इलाकों में जिस तरह भारत विरोधी भावनाएं समय-समय पर भड़काई जाती हैं, उनसे परंपरागत द्विपक्षीय संबंधों पर असर पड़ता है। जो संविधान नेपाल ने स्वीकार किया उसमें पूरे मधेस क्षेत्र के साथ अन्याय परिलक्षित होता है। ओली और उनके मंत्रियों ने व दूसरी पार्टी के नेताओं ने भी, उस अन्याय के कारण समझने के बजाय मधेसियों के स्वत स्फूर्त आंदोलन को भारत की साजिश करार दे दिया। आंदोलन के कारण भारत से आवश्यक सामग्री की आपूर्ति प्रभावित हुई, मधेसियों की नाकाबंदी से आई रुकावट को जानबूझ कर भारत की शरारत कहा गया। नरेंद्र मोदी के पुतले पूंके गए, भारतीय टीवी चैनल केबल से उतारे गए, भारतीय पिक्चरों का प्रदर्शन बंद हुआ, दूतावास पर हमले हुए। भारत ने पूरे प्रकरण में संयम दिखाया और एक शब्द भी नेपाल के खिलाफ नहीं बोला। भारत पहले दिन से यह कहता चला आ रहा है कि नेपाल के हित में ही उसका हित है और इसीलिए वह उसकी हरसंभव मदद करने को तैयार है। भारत की यह प्रतिबद्धता नेपाल के साथ हुई संधियों में दिखी भी। नेपाल के साथ जो नौ समझौते हुए वे एक तरह से उसकी ज्यादातर आकांक्षाओं की पूर्ति करने वाले हैं। ओली को भारत सरकार ने उतना सम्मान तो दिया ही जितना आमतौर पर किसी विदेशी नेता को दिया जाता है। उससे आगे बढ़कर प्रधानमंत्री मोदी ने नेपाल के साथ रोटी-बेटी यानि खून के रिश्ते की बात की। जो नौ समझौते हुए वे सब नेपाल की मांग के अनुकूल हैं। भूकंप पीड़ित क्षेत्रों के पुनर्निर्माण के लिए 25 करोड़ डॉलर यानि 1600 करोड़ देने के समझौते पर भारत ने सहर्ष हस्ताक्षर कर दिए। पारगमन और विदेशी व्यापार के लिए अतिरिक्त मार्ग देने पर भी हामी भरी। इन सबसे ओली और उनके साथियों को अहसास हुआ होगा कि उनसे एक बार फिर भारत को समझने में भूल हुई।

Tuesday, 23 February 2016

जेएनयू की बिसात पर रोटियां सेंकते सियासी दल

पिछले कई दिनों से जारी जेएनयू विवाद के लिए गुनहगार कौन-कौन हैं यह तो अब अदालतें ही तय करेंगी लेकिन सियासी दल बहरहाल इस मुद्दे को लेकर अपने सियासी फायदे नफे-नुकसान के लिए अपनी रोटियां सेंकने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रद्रोह के पाले खींचकर एक-दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। दरअसल कटु सत्य तो यह है कि जिस दिन से नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने उसी दिन से एक तरफ कांग्रेस पार्टी और मुस्लिमों का एक बड़ा वर्ग उनके खिलाफ हो गया। आप पिछले दो साल देख लें शायद ही कोई ऐसा मुद्दा हो जब कांग्रेस व इस अल्पसंख्यक वर्ग ने मोदी का विरोध नहीं किया हो। जहां तक वामपंथियों का सवाल है लगभग सारी दुनिया में सिमट चुके वामदलों को भी मौके की तलाश थी, जब वह अपनी खोई जमीन वापस हासिल कर सकें। इनकी मदद कर रहे हैं इलैक्ट्रॉनिक चैनल के कुछ एंकर व मैनेजमेंट। टीवी पर रोज यह किसी न किसी बहाने मोदी और उनकी सरकार को घेरने का प्रयास करते हैं। आज इलैक्ट्रॉनिक चैनल भी दो खेमों में बंट गए हैं। कुछ खुलकर विरोध कर रहे हैं तो कुछ खुलकर समर्थन। इस सियासी जंग में असल मुद्दे दब रहे हैं। जेएनयू में नौ फरवरी को क्या हुआ? नौ फरवरी को जेएनयू में एक सभा में पाकिस्तान जिन्दाबाद, कश्मीर की आजादी और भारत की बर्बादी तक जैसे नारे लगे। इस सभा में और नारेबाजी में बाहर से आए लोगों के साथ न सिर्प जेएनयू के छात्र-छात्राएं थीं बल्कि उस असैम्बली में कन्हैया कुमार भी मौजूद था। सो सभा तो हुई और उसमें राष्ट्र विरोधी नारे लगे यह तो तय है। अब सवाल उठता है कि कन्हैया ने नारे लगाए या नहीं? क्या उस पर देशद्रोह का केस होना चाहिए था या नहीं? दिल्ली पुलिस के कमिश्नर भीम सेन बस्सी ने कई बार दोहराया है कि पुलिस के पास कन्हैया के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं जो अदालत में पेश कर दिए गए हैं। वीडियो रिकार्डिंग सही है या नहीं निष्पक्ष और वैज्ञानिक जांच से ही तय हो पाएगा। इसका पता लगाने के लिए दिल्ली पुलिस भारत विरोधी नारों के टेप और कन्हैया कुमार की आवाज की फोरेंसिक जांच करा रही है। सोशल मीडिया पर वायरल अलग-अलग वीडियो में कन्हैया कुमार के राष्ट्र विरोधी नारे लगाने और नहीं लगाने के दावे किए जा रहे हैं। फोरेंसिक जांच से साफ हो पाएगा कि भारत विरोधी नारों में कन्हैया की आवाज थी या नहीं? दिल्ली पुलिस का दावा है कि वीडियो टेप के अलावा पुलिस के पास 17 गवाह हैं। उन्होंने पुलिस के सामने कन्हैया के खिलाफ बयान दर्ज कराए हैं। ज्यादातर ने कहा कि कन्हैया देश विरोधी नारे लगा रहा था। वह उस कार्यक्रम का हिस्सा था जिसमें देश विरोधी नारे लगे। कन्हैया ने न तो नारों को रोकने के लिए कहा और न ही सभा से हटा। 17 गवाहों में ज्यादातर जेएनयू के हैं। पर यह सियासी दल कोर्ट के फैसले का इंतजार नहीं करना चाहते और कन्हैया को बेकसूर साबित करने में लगे हुए हैं। हम कहते हैं कि अगर कन्हैया ने देशद्रोह नहीं किया और उन पर जबरन यह चार्ज लगाया गया है तो अदालतें हैं वह उसे राष्ट्रद्रोह से मुक्त कर देंगी। हमारी लड़ाई जेएनयू से नहीं है। जेएनयू ऐसा नहीं कि वह एक महान संस्थान नहीं पर मुट्ठीभर छात्रों की वजह से वह आज निशाने पर आ गया है। अगर आज जेएनयू गलत कारणों से सुर्खियों में है तो इसके लिए सरकार, यूनिवर्सिटी प्रशासन और जेएनयू के छात्र सभी जिम्मेदार हैं। राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के लिए जेएनयू में गिरफ्तारी भले ही पहली बार हुई हो, लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में ऐसी हरकतें वहां लगातार होती रही हैं। भारत के टुकड़े करने की नारेबाजी इसकी चरम परिणति थी। यदि पहले ही ऐसी गतिविधियों के खिलाफ कार्रवाई की जाती तो यह दिन न देखना पड़ता। 80 के दशक में जेएनयू कैम्पस में इंदिरा गांधी के खिलाफ नारेबाजी को सियासी विरोध मानकर भले भुला दिया जाए, लेकिन 2000 में कारगिल में लड़ने वाले वीर जवानों के साथ जो हुआ, उसे कतई भुलाया नहीं जा सकता है। कारगिल युद्ध खत्म होने के बाद ही जेएनयू कैम्पस में भारत-पाकिस्तान मुशायरा का आयोजन किया गया। मुशायरे का आनंद लेने के लिए कारगिल में पाकिस्तान के साथ लड़ने वाले सेना के मेजर केके शर्मा और मेजर एलके शर्मा भी पहुंच गए। एक पाकिस्तानी शायर की भारत विरोधी शायरी का कारगिल के दोनों हीरो ने विरोध किया। इस पर जेएनयू के छात्रों ने उल्टा उन दोनों की बुरी तरह पिटाई कर दी। अधमरी हालत में उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया। उस समय यह मुद्दा संसद में भी उठा और तत्कालीन रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडीस घायल मेजरों को देखने अस्पताल भी गए। लेकिन छात्र संघ और शिक्षकों के विरोध के कारण कोई कार्रवाई नहीं हो पाई। सरकार ने एक जांच कमेटी भी बनाई पर इसको जेएनयू में घुसने नहीं दिया। 2010 में पूरा देश जब छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के हाथों 76 जवानों के मारे जाने का शोक मना रहा था, तब जेएनयू में इसकी खुशी में पार्टी दी जा रही थी। अखबारों में इसकी खबर छपने के बावजूद तत्कालीन संप्रग सरकार ने कोई कार्रवाई की जरूरत नहीं समझी। इसके बाद जेएनयू के कुछ छात्रों के सीधे नक्सलियों के साथ संबंध भी मिले और गढ़चिरौली में जेएनयू छात्र हेम मिश्रा को गिरफ्तार भी किया गया। पुलिस की जांच से साफ हो गया है कि भारत की बर्बादी के लिए कार्यक्रम आयोजित करने की साजिश रचने वाला उमर खालिद भी हेम मिश्रा की तरह डीएसयू का सदस्य है। आज दुर्भाग्य है कि जेएनयू के कुछ छात्रों की गतिविधियों पर अंकुश लगाने की जगह कुछ सियासी दल अपनी रोटियां सेंकने में लगे हुए हैं।

-अनिल नरेन्द्र

Sunday, 21 February 2016

जंक फूड पैकेट पर स्वास्थ्य चेतावनी कितनी कारगर होगी?

पिज्जा, बर्गर, नूडल्स जैसे जंक फूड्स पर तंबाकू और सिगरेट की तरह ही सचित्र चेतावनी संदेश अंकित करने संबंधी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डाक्टरों के सुझाव का स्वागत होना चाहिए। एफएसएसआई को डाक्टरों के इस सुझाव पर जल्द से जल्द विचार करना चाहिए और इसे सख्ती से लागू करने की दिशा में कदम उठाने चाहिए। यह इसलिए भी जरूरी है कि फास्ट और जंक फूड खाने से कई तरह की बीमारियां हो रही हैं। उदाहरण के तौर पर बच्चों में बढ़ती डायबिटीज, ब्लड प्रैशर, फैटी लीवर आदि बीमारियां होती हैं, फिर भी बच्चे इनको खाने से परहेज नहीं करते और न ही उनके माता-पिता उन्हें रोकने का गंभीर प्रयास ही करते हैं। ऐसे में यह समझने की जरूरत है कि आखिर क्या वजह है कि इससे हो रहे नुकसान जानने के बाद भी इसका प्रचलन बढ़ रहा है? डाक्टर कहते हैं कि विगत कुछ वर्षों में खानपान में काफी बदलाव आया है। लोग घर की चीजें खाना कम पसंद करते हैं। विशेषकर बच्चे बाहर की चीजें खाना अधिक पसंद कर रहे हैं। यह देखा जा रहा है कि पिज्जा, बर्गर, चिप्स जैसे फास्ट फूड व जंक फूड अधिक खाना चाहते हैं। इसका एक असर फैटी लीवर के रूप में सामने आ रहा है। मोटापे के चलते बच्चों के घुटनों में दर्द व गुप्तांग का सामान्य विकास नहीं होने की परेशानी होती है। इनके इलाज के लिए पहुंचे 10 से 15 साल के बीच 220 बच्चों पर अध्ययन किया गया। इसमें पता चला कि 62.5 फीसद बच्चे फैटी लीवर से पीड़ित थे। इसके अलावा 20 फीसद बच्चों को ब्लड प्रैशर हो गया। 60 फीसद बच्चों में कोलेस्ट्राल की मात्रा अधिक थी। डायबिटीज बढ़ती ही जा रही है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां इन्हें बेचने के लिए विज्ञापनों पर करोड़ों खर्च कर रही हैं जो कि बच्चों और युवाओं को काफी प्रभावित करते हैं। बच्चों के लिए नई-नई स्कीमें पेश की जाती हैं। हालात ये हैं कि राजधानी में करीब छह फीसद किशोर इसकी चपेट में आ गए हैं। वहीं वयस्कों की बात करें तो करीब 25 फीसद इससे प्रभावित हैं। सिगरेट-शराब की तर्ज पर जंक व फास्ट फूड के पैकेट पर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक चेतावनी लिखने को लेकर एक ओर बड़ी और विदेशी कंपनियों में हड़कंप मच गया है वहीं दूसरी ओर इससे फायदे और नुकसान को लेकर विवाद भी शुरू हो गया है। लोगों का कहना है कि जब सिगरेट और शराब को लेकर तमाम तरह के प्रचार और चेतावनियां पैकेट पर लिखी होती हैं तो लोग उसे नहीं मानते तो क्या पिज्जा और बर्गर जैसे जंक फूड पर लिखी चेतावनी को कैसे मानेंगे। ऐसा नहीं है कि लोगों को नहीं पता कि इस प्रकार के फूड स्वास्थ्य के लिए अच्छे नहीं पर फिर भी स्वाद के लिए खाना पसंद करते हैं। पैकेट पर चेतावनी का कितना असर होगा, यह कहना मुश्किल है पर कोशिश तो करनी ही चाहिए।
-अनिल नरेन्द्र
��िल्मी कहानी?

सिरफिरे आशिक की एकतरफा प्यार की दास्तान

हाल ही में स्नैपडील की लीगल एग्जीक्यूटिव दीप्ति सरना का बहुचर्चित अपहरण कांड सामने आया। सोमवार को जब पुलिस ने इसकी परतें खोलीं तो जो कहानी सामने आई वह किसी रोमांचक फिल्म की पटकथा को मात देती नजर आई। इस कांड को हरियाणा के तीन लाख के इनामी बदमाश देवेन्द्र ने अंजाम दिया, जो 16 साल की उम्र में कत्ल के जर्म में जेल जा चुका है। जेल में उसने जर्मनी के तानाशाह हिटलर और अपनी कूरता के लिए कुख्यात मंगोल शासक चंगेज खान की जीवनी पढ़ी। यही नहीं, शाहरुख की फिल्म `डर' से वह काफी प्रभावित है, जिसमें नायक एकतरफा प्रेम में पागल रहता है। दीप्ति सरना से एकतरफा प्यार करने वाले देवेन्द्र ने उसकी निगाह में अपनी छवि हीरो की बनाकर उसके दिल में अपने लिए प्यार जगाने के लिए इस वारदात को अंजाम दिया, लेकिन उसकी यह योजना धरी की धरी रह गई और पुलिस ने मुख्य आरोपी समेत अपहरण कांड में शामिल पांच लोगों को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार किए जाने के बाद देवेन्द्र ने फिल्मी अंदाज में कहा, `मुझ पर पहले से इतने केस चल रहे हैं, एक मुकदमा मोहब्बत का भी सही।' एसएसपी धर्मेन्द्र ने बताया कि एक साल पहले जनवरी 2015 में देवेन्द्र ने दीप्ति को दिल्ली के राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर देखा और उसे पहली नजर में ही दीप्ति से प्यार हो गया। पहले ही दिन उसने मन में ठान लिया कि वह दीप्ति को हासिल करके रहेगा। इसके बाद उसने दीप्ति का पीछा करना शुरू किया। उसके मेट्रो स्टेशन आने के समय का देवेन्द्र ने रेकी कर पता लगा लिया और उसकी प्रतिदिन की गतिविधियों व पहनावा देखने के लिए मेट्रो स्टेशन आने लगा। पिछले एक साल में देवेन्द्र ने करीब 150 बार दीप्ति की रेकी की और उसके घर तक भी पहुंचा। इस एक साल में उसने कभी भी दीप्ति से बात करने की कोशिश नहीं की। घटना के दिन योजना के मुताबिक देवेन्द्र, प्रदीप व हामिद ऑटो में थे और मोहित, फहीम व माजिद स्विफ्ट कार में थे। दीप्ति 7.40 बजे वैशाली मेट्रो स्टेशन से बाहर निकली और देवेन्द्र के आगे वाले ऑटो को ओवरटेक किया और साहिबाबाद मंडी के पास दीप्ति वाले ऑटो का चक्का पंचर कर दिया। इस दौरान दीप्ति व उस पर बैठी एक और लड़की देवेन्द्र वाले ऑटो में आ गईं। इसके बाद बदमाश आगे बढ़े और ऑटो में बैठी दूसरी लड़की को चाकू की नोक पर मेरठ तिराहे पर उतार दिया और राजनगर एक्सटेंशन के पास दीप्ति को अगवा कर लिया। देवेन्द्र दीप्ति को अपने गांव कामी ले गया। वहां एक निर्माणाधीन मकान में रात व दिन रखा। उस दौरान देवेन्द्र ने दीप्ति का पूरा ख्याल रखा और खाने-पीने का सामान दिया। उसने यह सब दीप्ति के मन में प्यार जगाने के लिए अपने दोस्तों की बुराई की और साथ रहने को कहा। अगले दिन सुबह छह बजे दीप्ति को सोनीपत के पास छोड़ दिया। डाक्टरों का कहना है कि डर फिल्म में उस कैरेक्टर को साइकोपैथ से जोड़कर देखा जा सकता है। इसमें भी एक खास तरह की बीमारी होती है,जिसे इरोटोमेनिया कहते हैं। इस कंडीशन में उस शख्स को यह गलतफहमी हो जाती है कि सामने वाले को उससे प्यार हो गया है। फिर उसके साथ वह उसी तरह से व्यवहार करने की कोशिश करता है या उसे पाने के लिए कुछ भी कर जाता है। हालांकि यह भी जरूरी नहीं है कि इस तरह की मनोस्थिति वाले अपराधी ही हों, लेकिन कई मौकों पर उनमें सोचने या समझने की क्षमता काम नहीं करती और वे किसी तरह की गलती कर जाते हैं। ये लोग फिल्म देखकर भी प्रभावित होते हैं। है न फिल्मी कहानी?

Saturday, 20 February 2016

हाई कोर्ट जज ने सुप्रीम कोर्ट से ही जवाब मांग लिया!

भारतीय न्यायपालिका में सोमवार को कुछ ऐसा हुआ जो इससे पहले देश के न्यायिक इतिहास में कभी नहीं हुआ था। सोमवार की दोपहर सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के एक जज को किसी तरह के न्यायिक काम देने पर रोक लगा दी। लेकिन इसके कुछ देर बाद मद्रास हाई कोर्ट के इसी जज ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस से ही लिखित जवाब मांग लिया। सोमवार दोपहर को सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सीएस कर्नन को कोई भी न्यायिक काम नहीं देने का निर्देश दिया। दरअसल न्यायमूर्ति कर्नन का तबादला कलकत्ता हाई कोर्ट कर दिया गया है। लेकिन कर्नन ने इस स्थानांतरण के आदेश पर ही रोक लगा दी। इसके बाद जस्टिस कर्नन को कोई न्यायिक काम देने पर रोक लगा दी गई। मद्रास हाई कोर्ट के जज जस्टिस कर्नन यहीं तक नहीं रुके। उन्होंने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के उन दोनों जजों के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज करने की धमकी दी है। जिन्होंने जस्टिस कर्नन को कोई भी न्यायिक कार्य नहीं देने का निर्देश दिया था। अपनी न्यायिक शक्तियों का हवाला देते हुए जस्टिस कर्नन ने कहा कि वह स्वत संज्ञान लेते हुए चेन्नई के पुलिस कमिश्नर को सुप्रीम कोर्ट के दोनों न्यायाधीशों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का न्यायिक आदेश देंगे। उन्होंने एक बार फिर खुद को जातिगत भेदभाव का शिकार बताया। उधर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि जस्टिस कर्नन किसी मामले में स्वत संज्ञान लेकर आदेश नहीं दे सकते। जस्टिस कर्नन को न्यायिक या प्रशासनिक कामकाज देना या न देना मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पर निर्भर करेगा। वे चाहें तो उन्हें आगे कामकाज दें और चाहें तो न दें। यह पहला मौका नहीं है जब जस्टिस कर्नन विवादों में आए हैं। इससे पहले भी उन्होंने अपने ही हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के निचली अदालत में नियुक्ति को लेकर जारी आदेश पर स्वत संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू कर दी थी। गत वर्ष मई में सुप्रीम कोर्ट ने उस मामले में भी रोक लगाई थी। जस्टिस कर्नन ने अपने तबादला रोकने के आदेश में प्रधान न्यायाधीश को नोटिस देते हुए बाकायदा इसका जवाब मंगा है। यही नहीं, उन्होंने इस आदेश की प्रतिलिपि राम विलास पासवान, बसपा प्रमुख मायावती और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी भेजी है। मामला चूंकि अदालतों से संबंधित है इसलिए इस पर कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती। हां, भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में ऐसा किस्सा पहले नहीं घटित हुआ है।

-अनिल नरेन्द्र

कश्मीरी अलगाववादी व नक्सलियों का गठजोड़ जेएनयू पर हावी

जेएनयू में सिर्प राष्ट्र विरोधी नारे ही नहीं लगे। जेएनयू में क्या-क्या चल रहा है इससे धीरे-धीरे परदा उठना शुरू हो गया है। कई सालों से जेएनयू में कुछ छात्र देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं यह अब साफ होता जा रहा है। पिछले सात-आठ दिनों में की जांच से यह साफ हो गया है कि यह विवाद कश्मीरी अलगाववादियों और नक्सली गठजोड़ का नतीजा है। भारतीय सत्ता को उखाड़ फेंकने के सपने देखने वाले अलगाववादियों चाहे वह कश्मीर के हों या फिर उत्तर-पूर्व के हों उन्होंने नक्सलियों के साथ हाथ मिला लिए हैं। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार नक्सली लंबे समय से जेएनयू कैम्पस में सक्रिय हैं और इसके लिए उन्होंने डेमोकेटिक स्टूडेंट्स यूनियन (डीएसयू) के नाम से अपना छात्र संगठन भी बना रखा है। फिलहाल इस संगठन से कुल आठ-दस छात्र ही जुड़े हैं। पिछले साल गढ़चिरौली में गिरफ्तार हेम मिश्रा इसी डीएसयू से जुड़ा था। कुछ समय पूर्व छत्तीसगढ़ में जब 70 से ऊपर सीआरपीएफ के जवान नक्सलियों के हाथों मारे गए थे तो इस संगठन ने जेएनयू में जश्न मनाया था। डीएसयू के अलावा नक्सलियों ने कश्मीरी और पूर्वोत्तर के अलगाववादी गुटों के साथ हाथ मिलाकर कमेटी फॉर रिलीज ऑफ पॉलिटिकल प्रिजनर्स नाम से एक संगठन बना रखा है। इसका काम सरकार के खिलाफ दुप्रचार करना और जेलों में बंद नक्सली व अलगाववादी नेताओं की रिहाई के लिए माहौल बनाना है। इस बात की पुष्टि स्वयं गिरफ्तार छात्र संघ के नेता कन्हैया ने की है। कन्हैया ने बताया कि विवादित कार्यक्रम को सैयद उमर खालिद ने प्लान किया था। उसने बताया कि उमर कश्मीर में सक्रिय संगठनों का सहयोगी है। उसके पास कश्मीर के संदिग्ध युवक आते रहते हैं। नौ फरवरी को अफजल गुरु की फांसी की तीसरी बरसी जेएनयू में मनाने का प्लान उमर ने इन्हीं लोगों के साथ मिलकर तैयार किया था। कन्हैया ने बताया कि कार्यक्रम के दौरान भारत के टुकड़े करने और अफजल गुरु की शहादत के नारे उमर और कश्मीर से आए उसके साथियों ने लगाए थे। कुछ साल पहले तक कोई नक्सली नेता ही इस कमेटी का प्रमुख होता था, लेकिन बाद में एसएआर गिलानी को इसका प्रमुख बना दिया गया। एसएआर गिलानी की अगुवाई में दिल्ली के प्रेस क्लब में आयोजित देश विरोधी कार्यक्रम में भी अलग-अलग विश्वविद्यालयों व संगठनों के छात्रों की भूमिका सामने आई है। प्रेस क्लब के लिंक भी जेएनयू कांड से मिल रहे हैं। पुलिस ने कोर्ट में खुलासा किया कि देश विरोधी ताकतें भारत के प्रमुख विश्वविद्यालयों के कुछ छात्र ग्रुप्स के जरिये बड़ी सजिश रच रहे हैं, इसलिए ऐसे मामलों की छानबीन की आवश्यकता है। नौ फरवरी के यह विवादित विरोध प्रदर्शन जेएनयू परिसर स्थित साबरमती ढाबा के पास हुआ था। वहां से बरामद पोस्टर में कश्मीर के सन्दर्भ में लिखा है... एक देश जहां डाक घर ही नहीं है। सत्ता के खिलाफ लोगों का संघर्ष असल में याद्दाश्त का संघर्ष है कि वह इसे भूल न जाए। इसी पोस्टर के पीछे छपा है, ब्राह्मणवाद की सामूहिक चेतना के खिलाफ, अफजल गुरु और मकबूल भट्ट की न्यायिक हत्या के खिलाफ व कश्मीर के लोगों द्वारा किए जा रहे संघर्ष और अपने लिए फैसला करने के उनके लोकतांत्रिक अधिकारों के समर्थन में शामिल होने के लिए आमंत्रित करते हैं। दिल्ली पुलिस द्वारा की गई एफआईआर में उमर खालिद के नेतृत्व में लगे नारों का भी जिक्र किया गया है। डीएसयू को आधिकारिक तौर पर सीपीआई (माओवादी) का संगठन माना जाता है। 2014 को तत्कालीन गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि डीएसयू सीपीआई (माओवादी) से जुड़ा संगठन है। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार जेएनयू और प्रेस क्लब में अफजल गुरु की शहादत के रूप में मनाने का फैसला इन्हीं लोगों का था और भारत विरोधी नारे भी इन्होंने लगाए थे। नौ फरवरी के इस कार्यक्रम में एक कश्मीर संबंधी फिल्म दिखाने का कार्यक्रम भी था पर ऐसा नहीं हो सका। जाहिर है कि राष्ट्रद्रोह के पीछे कश्मीरी अलगाववादी तत्व और सक्रिय कुछ नक्सलियों का गठजोड़ है।

Friday, 19 February 2016

उपचुनाव ने संदेश भी दिया और सबक भी, समझना जरूरी है

आमतौर पर लोकसभा या विधानसभा के उपचुनावों के नतीजों से देश की सियासत पर कोई खास असर नहीं पड़ता, मगर इनके जरिये मतदाताओं के मूड का संकेत जरूर मिलता है। यही बात 13 फरवरी को आठ राज्यों के विधानसभा उपचुनावों को लेकर की जा सकती है, जिनके नतीजे विभिन्न दलों के लिए मिलेजुले रहे हैं। यदि इन नतीजों को राज्यवार देखें तो इनमें कुछ ऐसे संदेश जरूर छिपे हैं जिनमें यह देखा जा सकता है कि हवा किस ओर बह रही है। बिहार में जनता ने करीब दो महीने पहले प्रचंड जीत दिलाने वाले जद (यू) राजद गठबंधन को खारिज कर दिया तो उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी की हालत खराब कर दी। हां, भाजपा के लिए संतोष की बात यह रही कि मध्यप्रदेश के मैहर विधानसभा में पार्टी ने जीत का परचम लहराया। इस जीत ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का रक्तचाप जरूर बेहतर किया होगा। अगर हम बिहार की बात करें तो जद (यू) राजग गठबंधन रालोसपा उम्मीदवार की जीत भले ही सहानुभूति वोट से मिली जीत कहें, लेकिन कुछ महीने के शासन को अगर आधार मानें तो यह जीत उससे आगे की कहानी बयां करती है। इस ओर नीतीश कुमार और लालू प्रसाद दोनों को ध्यान देने की जरूरत है। शायद ऐसा ही कुछ उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के लिए भी है। नाजुक वक्त में सामान्य संदेश भी आशंका जता देते हैं। सबको सीखने का संकेत देते हैं। ऐसा ही कुछ उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव में देखने को मिल रहा है। तीन सीटों पर दोबारा चुनाव हुए। तीनों ही सीटों पर पूर्व  में सपा का कब्जा था। यूं तो उपचुनाव में हार के बहुत मायने नहीं होते हैं और इससे यह भी जाहिर नहीं होता कि अगले विधानसभा चुनाव में ऊंट किस करवट बैठेगा। फिर भी ताजा नतीजों से कई संकेत निकल रहे हैं। अगर मुजफ्फरनगर में भाजपा उम्मीदवार जीता है तो इसका मतलब है कि बहुसंख्यक वोट सपा के खिलाफ है। देवबंद से कांग्रेस के उम्मीदवार की जीत यह संकेत देती है कि मुस्लिम मतदाताओं ने पूरी तरह सपा का समर्थन नहीं किया। अगर किया होता तो पश्चिम की दोनों सीटें उसके पास होतीं। बसपा की गैर मौजूदगी का फायदा सपा उठाने में नाकाम रही। खास बात यह है कि उपचुनाव जीतने के लिए सपा ने ऐड़ी चोटी का जोर लगाया था। दूसरी ओर पंजाब में जहां कुछ महीने बाद ही विधानसभा चुनाव होने हैं, खंडूर साहिब विधानसभा सीट से सत्तारूढ़ अकाली दल के उम्मीदवार ने रिकार्ड जीत दर्ज की है। मगर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों ही इस चुनाव में मैदान में नहीं थे। दक्षिण राज्य कर्नाटक में एक बार फिर कमल को खिलखिलाने का मौका हाथ लगा है। शिवसेना ने महाराष्ट्र में पालफट सीट पर जीत दर्ज कर अपना दबदबा बरकरार रखा है। कुल मिलाकर एनडीए इन परिणामों से प्रसन्न होगी। जैसा मैंने कहा कि उपचुनाव ने संदेश भी दिया और सबक भी।

-अनिल नरेन्द्र

भारत का किसान बदहाल व परेशान

भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है। भारत के घरेलू उत्पाद में कृषि और उससे संबंधित क्षेत्रों का योगदान 2007-08, 2008-09 और 2010-11 के दौरान क्रमश 17.8, 17.1 और 14.5 प्रतिशत रहा। भारतीय कृषि उत्पादन अभी भी मानसून पर निर्भर करता है क्योंकि लगभग 55.7 प्रतिशत कृषि वर्षा पर निर्भर है। भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.87 करोड़ हेक्टेयर है जिसमें से 14.03 करोड़ हेक्टेयर में कृषि की जाती है। इस दृष्टि से भारत के किसान को देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। आज किसान खेतीबाड़ी छोड़ने पर मजबूर हो रहा है। घाटे का सौदा होने के कारण हर रोज ढाई हजार किसान खेतीबाड़ी छोड़ रहे हैं। और तो और देश में अभी किसानों की कोई एक परिभाषा भी नहीं है। वित्तीय योजनाओं में, राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो और पुलिस की नजर में किसान की अलग-अलग परिभाषाएं हैं। ऐसे में किसान हितों से जुड़े लोग सवाल उठा रहे हैं कि कुछ ही समय बाद पेश होने वाले आम बजट में गांव, खेती और किसान को बचाने के लिए माननीय वित्तमंत्री क्या पहल करेंगे? उतार-चढ़ाव के बीच कृषि विकास दर रफ्तार नहीं पकड़ रही है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2012-13 में कृषि विकास दर 1.2 प्रतिशत थी जो 2013-14 में बढ़कर 3.7 हो गई और 2014-15 में फिर घटकर 1.1 प्रतिशत पर आ गई। पिछले कई वर्षों में बुवाई के रकबे में 18 प्रतिशत की कमी आई है। विशेषज्ञों के अनुसार कई रिपोर्टों को ध्यान से देखने पर कृषि क्षेत्र की बदहाली का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले दो दशकों में भारी संख्या में किसान आत्महत्या कर चुके हैं। अधिकतर आत्महत्याओं का कारण कर्ज है, जिसे चुकाने में किसान असमर्थ हैं, जबकि 2007 से 2012 के बीच करीब 3.2 करोड़ गांव वाले जिसमें काफी किसान हैं, शहरों की ओर पलायन कर गए हैं। इनमें से काफी लोग अपनी जमीन और घर-बार बेचकर शहरों में आ गए हैं। गांव से पलायन करने के बाद किसानों और खेतिहर मजदूरों की स्थिति यह है कि कोई हुनर न होने के कारण उनमें से ज्यादातर को निर्माण क्षेत्र में मजदूरी या दिहाड़ी करनी पड़ती है। 2011 की जनगणना के अनुसार हर रोज ढाई हजार किसान खेती छोड़ रहे हैं। भारी संख्या में गांव से लोगों का पलायन हो रहा है जिसमें से ज्यादातर किसान हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के पिछले पांच वर्षों के आंकड़ों के मुताबिक सन 2009 में 17 हजार, 2010 में 15 हजार, 2011 में 14 हजार, 2012 में 13 हजार और 2013 में 11 हजार से अधिक किसानों ने खेतीबाड़ी से जुड़ी तमाम दुश्वारियों समेत अन्य कारणों से आत्महत्या की राह चुन ली। किसानों के लिए संकट की बात यह है कि पूरी दुनिया में अनाज के भाव कम हुए हैं। अगर उत्पादन घटेगा तो किसानों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ेगा और यह किसान की समस्याओं को और बढ़ा सकता है, बुंदेलखंड विकास आंदोलन के आशीष सागर ने कहा कि खेतिहर किसान का खर्च बढ़ा है लेकिन किसानों की आमदनी कम हुई है जिससे किसान आर्थिक तंगहाली के दुष्चक्र में पड़ गया है। किसानों की आय राष्ट्रीय औसत से काफी कम है। ऐसे में भी किसान सरकार से किसी वेतनमान की मांग नहीं कर रहा है बल्कि वह तो अपनी फसलों के लिए उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य मांग रहा है ताकि देश के लोगों के साथ अपने पेट को भी ठीक से भर सके। इस गंभीर विषय पर समय रहते केंद्र और राज्य सरकारों को संजीदा होना होगा और इन पर व्यावहारिक रणनीति बनानी होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले दशकों में खाद्यान्न जरूरतों में वृद्धि के चलते वैकल्पिक खाद्य वस्तुएं, मसलन डेयरी उत्पादों, मत्स्य व पोल्ट्री उत्पादों के विकल्पों पर भी ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि खेती के समानांतर रोजगार के नए विकल्पों की जरूरत महसूस की जा रही है।

Thursday, 18 February 2016

सीरिया में अगर सऊदी ने सैनिक भेजे तो छिड़ सकता है विश्व युद्ध

सऊदी अरब सीरिया में जल्द मैदानी जंग की तैयारी कर रहा है। हाल ही में जारी रिपोर्ट्स की मानें तो सऊदी अरब सीरियन बॉर्डर से लगे तुर्की के इनकिट लिंक एयरबेस पर अपने फाइटर जेट्स और सैनिकों को भेज रहा है। तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत काबुसोगल ने भी इसकी पुष्टि की है। सीरिया में जमीनी जंग के लिए सैनिक भेजने के सऊदी अरब, तुर्की के इरादों पर रूस भड़क उठा है। जर्मनी पहुंचे रूस के प्रधानमंत्री दमित्री मेदवदेव ने गत शुक्रवार को धमकी दी कि ऐसा करने से धरती पर एक और विश्व युद्ध छिड़ सकता है। दरअसल ऐसी संभावना जताई जा रही है कि सीरिया में जमीनी फौज भेजने की सऊदी अरब और तुर्की की पहल के बाद अमेरिका भी इसमें शामिल हो सकता है। राष्ट्रपति बशर अल असद के नेतृत्व वाली सीरियाई फौजों के अलेप्पो में बढ़त बनाने से चिढ़े सऊदी अरब और तुर्की ने यह रुख दिखाया है। अलेप्पो के आधे हिस्से पर आईएस, अल नुसरा फ्रंट, अहरार अल शाम जैसे कई विद्रोहियों का कब्जा है। सऊदी अरब, तुर्की सीरिया में असद विरोधी विद्रोही गुटों की गुपचुप मदद कर रहे हैं। दूसरी ओर रूस असद के समर्थन में खड़ा है। सीरिया पर वार्ता के लिए म्यूनिख पहुंचे रूसी पीएम ने आगाह किया कि जमीनी फौज उतारने का कोई भी प्रयास स्थायी युद्ध की ओर ले जाएगा। सबको पता है कि अफगानिस्तान और लीबिया में क्या हुआ। सभी पक्षों को मेज पर बैठकर हल निकालना चाहिए। रूसी हवाई हमलों की मदद से कुर्द विद्रोहियों ने तुर्की-सीरिया सीमा पर हवाई ठिकाने पर कब्जा कर लिया है। मेदवदेव ने कहा कि अमेरिका और उसके अरब सहयोगियों को अच्छे तरीके से सोचना चाहिए कि क्या वह स्थायी युद्ध चाहते हैं? क्या उन्हें लगता है कि वे इतनी जल्दी जीत जाएंगे? दूसरी ओर ब्रिटेन के विदेश मंत्री फिलिप हेलमंड ने कहा कि समझौता तभी सफल होगा जब रूसी नरमपंथी विद्रोही गुटों पर बमबारी बंद होगी। तुर्की ने भी कहा है कि रूस नागरिकों पर हमले करना बंद करे। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के उपप्रवक्ता मार्प टोनर ने भी कहा कि गत महीनों में असद प्रशासन के प्रति रूसी समर्थन और हाल में अलेप्पो की घेराबंदी ने संघर्ष और तेज कर दिया है। संघर्ष विराम कराने के लिए विश्व की प्रमुख शक्तियों के बीच सीरिया में हालांकि एक हफ्ते में युद्ध विराम पर सहमति और विद्रोहियों के कब्जे वाले इलाकों में मानवीय मदद पहुंचाने की एक योजना पर गत शुक्रवार को म्यूनिख में सहमति तो बनी पर नाटो संगठन के उग्र बयानों से ऐसा होना फिलहाल मुश्किल ही लगता है। अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी और रूसी विदेश मंत्री मेदवदेव समेत 17 देशों के प्रतिनिधि म्यूनिख में हुई इस वार्ता में शामिल हुए। दूसरी ओर संघर्ष विराम के लिए बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय दबाव के बीच सा]िरया के राष्ट्रपति बशर अल असद ने पूरे देश (सीरिया) पर अपना नियंत्रण बहाल करने का संकल्प दोहराया है। साथ ही उन्होंने युद्ध खत्म करने के लिए बातचीत करने के साथ-साथ आतंकवाद से लड़ाई जारी रखने की भी प्रतिबद्धता जताई। असद ने एक साक्षात्कार में कहा कि उनकी सरकार का लक्ष्य पूरे देश पर वापस अधिकार हासिल करना है। फ्रांस के प्रधानमंत्री मैनुअल वाल्स का मानना है कि यूरोप में अभी आईएस और बड़े आतंकी हमले कर सकता है। आतंकी संगठन आईएस के बारे में एक और खतरनाक जानकारी सामने आई है। अमेरिका खुफिया संगठन सीआईए के निदेशक जॉन ब्रेनन ने एक न्यूज चैनल से साक्षात्कार में रहस्योद्घाटन किया कि आईएस ने रासायनिक हथियार बना लिए हैं और कुछ मोर्चों पर इनका इस्तेमाल भी किया है। उनके अनुसार आईएस ने क्लोरिन और मस्टर्ड गैस बना ली है। इराक और सीरिया के युद्ध मोर्चों से जो सूचनाएं मिली हैं उनसे पता चलता है कि आईएस ने वहां कुछ मौकों पर रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल भी किया है।

-अनिल नरेन्द्र

बिहार में सत्ताधारी विधायकों ने उड़ाई कानून की धज्जियां

इस बार बिहार में लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल और नीतीश कुमार के जनता दल (एकी) का गठबंधन भारी बहुमत से सत्ता में आया तो कई लोगों ने आशंकाएं जताईं कि राज्य में कहीं फिर से लालू यादव सरकार के समय का माहौल न बन जाए, कहीं फिर से बिहार में जंगल राज न लौट आए। मगर सत्ता में आते ही माहौल वैसा ही बनता जा रहा है। भोजपुर में गत शुक्रवार को हथियारों से लैस अपराधियों ने भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष विशेश्वर ओझा को गोलियों से भून दिया। उनकी घटनास्थल पर ही मौत हो गई। हमले में बक्सर जिले के मुखिया समेत भाजपा नेता के गाड़ी का चालक घायल हो गया। भाजपा नेता को 10 से 11 गोलियां लगीं। एक सप्ताह के भीतर तीन हत्याओं ने बिहार की कानून व्यवस्था को एक बार फिर कठघरे में खड़ा कर दिया है। शुक्रवार शाम को आरा के शाहपुर थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सोनवर्षा बाजार में विशेश्वर ओझा अपनी गाड़ी से उतरकर लोगों से उनकी समस्याएं सुन रहे थे। इसी दौरान अचानक डेढ़ दर्जन से ज्यादा अज्ञात हथियारों से लैस अपराधियों ने उन पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। विशेश्वर ओझा गत बिहार विधानसभा चुनाव में शाहपुर से भाजपा प्रत्याशी थे। विशेश्वर ओझा की हत्या के विरोध में पार्टी नेताओं का शाहबाद बंद रविवार को पूरी तरह से सफल रहा। हत्या के विरोध में जगह-जगह प्रदर्शन किए गए। पार्टी कार्यकर्ताओं ने जंगल राज की वापसी और नीतीश कुमार मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए रेलवे ट्रैक जाम कर दिया। सूबे में बढ़ रहीं आपराधिक घटनाओं एवं प्रशासनिक विफलताओं का हवाला देते हुए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के नेताओं ने रविवार को राज्यपाल रामनाथ कोबिंद को ज्ञापन सौंपकर उनसे हस्तक्षेप करने का आग्रह किया। राजग के 21 नेताओं ने एक साथ मिलकर हाल फिलहाल में हुईं हत्याओं व जघन्य अपराधों का विस्तृत विवरण देकर सूबे में राष्ट्रपति शासन लागू करने का आग्रह किया। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष मंगल पांडे ने कहा कि प्रदेश में कानून नाम की कोई चीज नहीं रह गई है। प्रदेश में अराजक स्थिति पैदा हो गई है। बिहार में आए दिन हत्या की घटनाओं से जनता में दहशत है। अराजक स्थिति को रोकने के लिए राज्यपाल से बिहार के मुख्यमंत्री और पुलिस महानिदेशक को निर्देश देने का आग्रह किया गया। पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि सत्ताधारी दल के विधायकों में अपराध की दुनिया में एक-दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ मची है। जद (यू) के विधायक चलती ट्रेन में महिला यात्री के साथ छेड़छाड़ करते हैं तो कांग्रेस के विधायक लड़की का अपहरण कर लेते हैं। गठबंधन का बड़ा भाई होने के नाते राजद विधायक दो कदम आगे बढ़कर नाबालिग लड़की से बलात्कार कर सबसे आगे निकल जाते हैं।

Wednesday, 17 February 2016

Rahul Gandhi supports traitor students?

JNU dispute is rising on. Now the fight has travelled from campus to Court. On Monday Kanhaiya, arrested on the charges of treason was to be presented in the Patiala House Courts. In view of this many student leaders, teachers and JNU supporters went and sat in the court of the concerned Magistrate even during the lunch break. Sources said that some people started to send out the JNU students sitting there by checking their IDs. Scrambling and slogans shouting started thereafter. Some media persons were also trapped in this scrambling. Some of them were injured too. Police Commissioner of Delhi BS Bassi citing the incident as scrambling said that nobody has been seriously injured. Coercion was from both sides. Police have lodged two FIRs against unknown persons. Media has published a photograph in which BJP MLA OP Sharma is seen beating a CPI worker. OP Sharma claimed that he was attacked by some persons raising slogans of Pakistan Zindabad. Justifying the arrest of Kanhaiya, Police Commissioner Bassi has said that Kanhaiya was raising the anti-national slogan. Meanwhile the court has extended the police remand of Kanhaiya till Wednesday. When Bassi was asked about anti-Indian slogans raising by ABVP students he said that so far as I am informed, ABVP students were raising slogans against anti-national slogans. In this entire case we are deeply sad and surprised that Congress Vice President Rahul Gandhi reached JNU campus and started supporting the students accused of treason. Had he forgotten that their own government had hanged Afzal Guru? Congressmen themselves are also troubled due to Rahul’s inexplicable statement and attitude. Congressmen are unable to understand that how Rahul supported traitors by reaching JNU suddenly. Common Congress workers engaged in rebuilding Congress at ground level are trouble now. But since the matter is related to the high command no one dares to speak it openly. On condition of anonymity a senior Congress leader of Delhi said that the nation and especially the common men of Delhi and the country will not understand the strategy behind Rahul Gandhi’s statement yet they’ll treat Rahul Gandhi supporter of traitors instead. There is furore in Social media also over this statement given in favour of traitors by Rahul Gandhi. People want to know what Rahul Gandhi intended to say through this statement. Who inspired him to go there to deliver lecture and support the traitors? Be it known that Rahul reached JNU suddenly on Saturday evening. Reaching there, he said that the people suppressing the voice of the Institute are anti-nationals. Speaking scathing attack on Modi Government for the arrest of JNU student Rahul Gandhi indirectly compared it with Hitler’s regime and accused the NDA of suppressing the voice of the students and asked the students not to allow bullying. Be it known that student union leader Kanhaiya was arrested on Friday on the charges of treason for supporting Afzal Guru in JNU campus. He has been charged with treason. Five other accused Anant Prakash, Rama Nagar, Ashutosh, Umar Khalid and Anirban are absconding. Let’s tell about this Umar Khalid that he not only justified the slogan rising in the programme of Arnab Goswami of Times Now and Rohit Sardana of Zee News but also put the logics for doing so. The incident of slogan rising was repeated in Press Club. Press Club has claimed that the club member having booked the club hall for the programme of SR Gilani (in which slogans were raised) and DU Professor Javed Ali’s membership have been put to end. A three member committee has been formed to investigate the matter in the club. Secretary General of Press Club Nadeem A Kazmi has said that he will not let the image of the club be deteriorate. Club will not be allowed to be a platform for anti-national activities. It is ironical that Kanhaiya said before the Metropolitan Magistrate Lavleen that neither had I raised slogans nor I was the programme convenor. I had gone to mediate on the conflict of ABVP with organisers. On this police showed the video. The magistrate then said: It seems that these students suffer to live in India. Then asked to Kanhaiya: what type of freedom do you want? Established in the name of the first prime minister of the nation in the capital city, Jawaharlal Nehru University (JNU) has unfortunately turned today into a fort of anti-national elements. A fistful of communists have brought such a reputed institute today at the edge of ruination. Everyone has freedom of expression but how can the slogans like freeing Kashmir to ruin India be tolerated? Strict action must be taken on such elements. Efforts must be made to save JNU. The most tragic aspect is it that Congress Vice President Rahul Gandhi, driven to criticise Modi Government in every instance, now doesn’t refrain from supporting traitors for the sake of vote bank.

-        Anil Narendra

 

राहुल गांधी का देशद्रोही छात्रों को समर्थन?

जेएनयू विवाद बढ़ता ही जा रहा है। अब लड़ाई कैंपस से अदालत तक पहुंच गई है। सोमवार को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कन्हैया की पेशी पटियाला हाउस अदालत में थी। इसे देखते हुए कई छात्र नेता, शिक्षक व जेएनयू समर्थक लंच ब्रेक में ही संबंधित मजिस्ट्रेट के कमरे में जाकर बैठ गए। सूत्रों ने बताया कि कुछ लोग वहां मौजूद जेएनयू छात्रों को आईडी चैक करके बाहर निकालने लगे। इसके बाद हाथापाई, नारेबाजी शुरू हो गई। इस हाथापाई में कुछ मीडिया कर्मी भी फंस गए। कुछ मीडिया कर्मियों को भी चोटें लगी हैं। दिल्ली पुलिस कमिश्नर बीएस बस्सी ने घटना को हाथापाई बताते हुए कहा कि किसी को गंभीर चोट नहीं आई है। जोर-जबरदस्ती दोनों तरफ से की गई थी। पुलिस ने इस मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज की हैं। मीडिया में एक फोटो छपी है जिसमें भाजपा के एमएलए ओपी शर्मा को एक सीपीआई कार्यकर्ता की पिटाई करते हुए दिखाया गया है। ओपी शर्मा ने दावा किया कि पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगा रहे कुछ लोगों ने उन पर हमला कर दिया था। कन्हैया की गिरफ्तारी को सही ठहराते हुए पुलिस कमिश्नर बस्सी ने कहा है कि कन्हैया राष्ट्रविरोधी नारे लगा रहा था। इस बीच अदालत ने कन्हैया की पुलिस रिमांड बुधवार तक बढ़ा दी है। बस्सी से जब भारत विरोधी नारे लगाने वाले कथित एबीवीपी छात्रों के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि जहां तक मेरी जानकारी है, एबीवीपी स्टूडेंट्स राष्ट्रविरोधी नारों के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे। हमें पूरे प्रकरण में सबसे ज्यादा दुख और हैरानी इस बात पर हुई कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी जेएनयू कैंपस पहुंच गए और राष्ट्रद्रोह के आरोपी छात्रों का समर्थन करने लगे। क्या वह यह भूल गए थे कि उन्हीं की सरकार ने अफजल गुरु को फांसी दी थी? राहुल के व्यवहार से बेवजह की बयानबाजी से खुद कांग्रेसी भी परेशान हो गए हैं। राहुल ने अचानक जेएनयू पहुंचकर देशद्रोहियों का समर्थन कैसे कर दिया, कांग्रेसियों को यह समझ नहीं आ रहा है। कांग्रेस को जमीनी स्तर पर खड़ा करने में जुटे आम कांग्रेसी कार्यकर्ता अब परेशान हैं। लेकिन मामला चूंकि आलाकमान से जुड़ा है इसलिए कोई खुलकर बोलने का साहस नहीं कर रहा है। दिल्ली के एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि देश और खासतौर पर दिल्ली व देश के आम लोगों को राहुल गांधी की बयानबाजी के पीछे स्टेटेजी तो समझ नहीं आएगी, लेकिन वह राहुल गांधी को देशद्रोहियों का समर्थक जरूर समझ बैठेंगे। राहुल गांधी द्वारा देशद्रोहियों के पक्ष में दिए गए इस बयान से सोशल मीडिया में भी बवाल मचा हुआ है। लोग जानना चाहते हैं कि राहुल गांधी आखिर इस बयानबाजी से क्या कहना चाहते थे? किसने उन्हें वहां जाकर भाषणबाजी व राष्ट्रद्रोहियों का समर्थन करने को कहा? ज्ञात हो कि शनिवार शाम राहुल अचानक जेएनयू पहुंचे। वहां पहुंचकर उन्होंने कहा कि संस्थान की आवाज दबाने वाले लोग राष्ट्रविरोधी हैं। जेएनयू के छात्र की गिरफ्तारी को लेकर मोदी सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए राहुल गांधी ने परोक्ष रूप से हिटलर के शासन की तुलना की तथा राजग पर छात्रों की आवाज दबाने का आरोप लगाया और छात्रों को उनकी धौंस नहीं चलने देने के लिए कहा। ज्ञात रहे कि देशद्रोह के आरोप में जेएनयू कैंपस में अफजल गुरु के समर्थन में छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया को शुक्रवार को गिरफ्तार कर लिया गया था। उन पर देशद्रोह के आरोप लगाए गए हैं। पांच अन्य आरोपी अनंत प्रकाश, रमा नागर, आशुतोष, उमर खालिद और अनिर्बन फरार हैं। इन उमर खालिद के बारे में बता दें कि इन्होंने टाइम्स नाऊ के अरनब गोस्वामी और जी न्यूज के रोहित सरदाना के कार्यक्रम में न केवल नारेबाजी को जस्टिफाई किया बल्कि बाकायदा ऐसा करने के तर्प भी दिए। नारेबाजी का यही सिलसिला प्रेस क्लब में भी हुआ। प्रेस क्लब ने दावा किया है कि एसआर गिलानी के कार्यक्रम (जिसमें नारेबाजी हुई) के लिए क्लब के हॉल को बुक कराने वाले क्लब के सदस्य व दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जावेद अली की सदस्यता खत्म कर दी गई है। क्लब में भी मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी बनाई गई है। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के सैकेटरी जनरल नदीम ए काजमी का कहना है कि वे क्लब की छवि खराब नहीं होने देंगे। क्लब को राष्ट्र विरोधी गतिविधियों का मंच नहीं बनने दिया जाएगा। विडंबना यह भी है कि कन्हैया ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट लवलीन के सामने कहा कि मैंने न तो नारेबाजी की और न ही कार्यक्रम का आयोजक था। एबीवीपी का आयोजकों से झगड़ा होने पर बीच-बचाव को गया था। इस पर पुलिस ने वीडियो दिखाया। तब मजिस्ट्रेट ने कहाöलगता है कि इन छात्रों को भारत में रहने का दुख है। फिर कन्हैया से पूछाöकिस तरह की आजादी चाहिए आपको? देश के पहले प्रधानमंत्री के नाम पर राजधानी में बनी जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) दुर्भाग्य से आज राष्ट्र विरोधी तत्वों का गढ़ बन गई है। इतने प्रतिष्ठित संस्थान को मुट्ठीभर वामपंथियों ने आज बर्बादी के कगार पर ला खड़ा किया है। अभिव्यक्ति की आजादी सबको है पर कश्मीर को आजाद कराने तक हिन्दुस्तान को बर्बाद करने तक के नारे कैसे बर्दाश्त किए जा सकते हैं? ऐसे तत्वों पर सख्त से सख्त कार्रवाई होनी ही चाहिए। जेएनयू को बचाने का प्रयास होना चाहिए। सबसे दुखद पहलू तो यह है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी वोट बैंक के चक्कर में, मोदी सरकार की हर हालत में आलोचना करने पर उतारू अब देशद्रोहियों का समर्थन करने से भी बाज नहीं आते।

-अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 16 February 2016

अब महिलाओं के काजी बनने पर विवाद

महिलाओं के काजी बनने को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। जयपुर की दो महिलाओं ने दावा किया है कि वे पहली महिला काजी हैं। उनके मुताबिक अब वे एक काजी के तौर पर निकाह भी पढ़ा सकती हैं। महिलाओं के इस दावे को लेकर विवाद शुरू हो गया है। जयपुर की यह दोनों महिलाएं पिछले दिनों ही मुंबई से काजी की ट्रेनिंग लेकर लौटी हैं। दोनों महिलाओं एवं मुस्लिम समाज में महिला उत्थान का काम करने वाली महिलाओं का कहना है कि वे पहली महिला काजी हैं। इधर उलेमा एवं मुस्लिम समाज के धर्मगुरुओं ने तर्प दिए हैं कि महिलाएं काजी नहीं बन सकतीं। जयपुर में चार दरवाजा निवासी जहां आरा और बास बदनपुर निवासी अफरोज बेगम ने खुद के बारे में बताते हुए कहा कि उन्होंने मुंबई के दारुल उलूम निस्वान से भारतीय महिला आंदोलन के तहत दो साल का महिला काजी प्रशिक्षण लिया है। उनके मुताबिक न केवल वे निकाह पढ़ा सकती हैं बल्कि तलाक के मामले भी देख सकती हैं। उन्होंने बताया कि तलाक जैसे मामलों को नजदीक से जानने के लिए और महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए उन्होंने यह प्रशिक्षण लिया है। उल्लेखनीय है कि राजस्थान में करीब पांच हजार मदरसों की कमान पहली बार महिला को मिली हुई है। मदरसा बोर्ड की चेयरपर्सन मेहरुनिस्सा टांक बनीं। जयपुर के मुफ्ती अब्दुल सत्तार ने कहा कि काजी की ट्रेनिंग लेना अलग बात है, ख्वातीन चाहे जितना इल्म हासिल करें, कोई पाबंदी नहीं है, लेकिन वे काजी नहीं बन सकतीं। कुरान के अनुसार मर्द औरत के हाकिम हैं। अगर ख्वातीन काजी बनेंगी तो वे हाकिम होंगी। जिसकी कुरान इजाजत नहीं देता। अजमेर स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन दरगाह के खादिम अब्दुल रऊफ का कहना है कि इमामत एवं कजात जैसे काम पुरुषों से संबंधित हैं। इसलिए अल्लाह ने किसी औरत को नबी नहीं बनाया। सहाबाए इकराम के दौर से आज तक किसी मोउज्जिन आलिम ने महिलाओं की इमामत का फतवा नहीं दिया। जमीयतुल उलेमा--हिन्द के सचिव मुफ्ती मोहम्मद शरीफ ने बताया कि शरीयत और पैगंबर मोहम्मद साहब की सुन्नत के अनुसार महिलाएं काजी नहीं बन सकतीं। निकाह-तलाक जैसे मामलों का हल महिला कैसे निकाल सकती है। अवाम कबूल नहीं करेगी। उधर दारुल उलूम प्रवक्ता अशरफ उस्मानी का कहना है कि इस्लाम औरत और मर्द दोनों के लिए इल्म पाने की दावत देता है। इसलिए एक औरत का अच्छा आलिम--दीन होने में रुकावट नहीं है। असरफ अली थानवी ने औरत की दीनी तालीम के लिए बहश्त--जेवर भी लिखा है। तारीफे इस्लाम में बड़ी आलिमाओं का जिक्र मिलता है। कुछ शर्तों के साथ ऐसा हो सकता है। हिन्दुस्तान में औरतों को आलिमा बनाने के लिए बहुत से मदरसे चल रहे हैं। औरत के लिए धार्मिक गुरु की गुंजाइश नहीं है। औरत अगर कुरान व हदीस से वाकिफ होती है तो इस्लाम उसकी मुखालफत नहीं करता।

-अनिल नरेन्द्र

फिर हुआ अमेरिका का दोहरा चेहरा बेनकाब

आतंकवाद के पोषक और निर्यातक के रूप में बदनाम पाकिस्तान को अमेरिका द्वारा सब कुछ जानते हुए, समझते हुए 86 करोड़ डॉलर की सैन्य सहायता देने पर आमादा अमेरिका एक बार फिर बेनकाब हुआ है। ओबामा प्रशासन ने कहा है कि उसने पाकिस्तान को लगभग 70-80 करोड़ डॉलर कीमत के आठ एफ-16 लड़ाकू विमान बेचने का फैसला किया है। परमाणु आयुध ले जाने में सक्षम इन लड़ाकू विमानों की बिक्री के प्रस्ताव को रिपब्लिकनों की नियंत्रण वाली कांग्रेस में अवरोध का सामना करना पड़ सकता है। सहायता के लिए आपात निधि का सहारा इसलिए भी लिया गया है ताकि उस पर रोक लगाने की कोशिश कामयाब न हो सके। हाल ही में पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमान की खेप देने के प्रस्ताव पर अमेरिकी सांसद अड़ंगा लगा चुकी है पर इसके बावजूद ओबामा पाकिस्तान को यह मदद करने पर आमादा है। ओबामा प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि पाकिस्तान को दी जाने वाली अमेरिकी सुरक्षा मदद आतंकवादियों द्वारा पाकिस्तानी धरती का इस्तेमाल पनाहगाह के रूप में किए जाने की क्षमता को कम करती है। हम इन महाशय से पूछना चाहते हैं कि क्या पाकिस्तान इन एफ-16 विमानों का इस्तेमाल हाफिज सईद, अजहर मसूद व लखवी के खिलाफ करेगा? इस फैसले से आतंकवाद के विरुद्ध छेड़े गए वैश्विक युद्ध में अमेरिकी इरादों और गंभीरता की कलई खुल गई है। आज जब दुनियाभर में आतंक के वित्तीय स्रोतों को बंद करने, सुखाने या उनकी नाकाबंदी की बात जोर-शोर से की जा रही है तब पाकिस्तान पर अमेरिकी मेहरबानी हैरान, परेशान करने वाली है। उधर पाकिस्तान की गतिविधियों को बड़ी समस्या वाला बताते हुए रिपब्लिकन पार्टी के एक प्रभावशाली सीनेटर ने आठ एफ-16 लड़ाकू विमान उस देश को बेचने पर रोक लगाने का संकल्प लिया है जो धोखेबाज सहयोगी के रूप में काम कर रहा है और आतंकवादी समूहों को सुरक्षित पनाहगाह मुहैया कराता है। वॉल स्ट्रीट जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार विदेश मंत्री जॉन केरी को लिखे पत्र में सीनेटर बॉब कारेकर ने कहा कि वह ओबामा प्रशासन को करदाताओं के धन का उपयोग जेट की बिक्री करने में नहीं करने दे सकते जबकि हक्कानी नेटवर्प जैसे आतंकी संगठन पाकिस्तान में पनाह लिए हुए हैं जो अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों पर हमला करते हैं। नौ फरवरी को लिखे पत्र में कारेकर ने कहा कि पाकिस्तान की गतिविधियां बेहद संकटपूर्ण हैं और इस बात को बल मिलता है कि पाकिस्तान धोखेबाज सहयोगी है जो क्षेत्रीय चुनौतियों का समाधान करने में आगे आने की बजाय कन्नी काटता है। विदेश मंत्री ने कांग्रेस को भेजे अपने वार्षिक बजट में पाकिस्तान को 859.8 मिलियन डॉलर का सहयोग देने का प्रस्ताव किया है जिसमें 265 मिलियन डॉलर का सैनिक साजो-सामान है। घोषित तौर पर यह मदद पाक को आतंकवाद से लड़ने, चरमपंथी संगठनों के सफाए, परमाणु हथियारों-प्रतिष्ठानों को सुरक्षित करने, अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया और भारत से संबंध सुधारने के लिए दी गई है, लेकिन इसका एक-तिहाई हिस्सा केवल सैन्य साजो-सामान के लिए है। जिस अफगानिस्तान की चिन्ता में अमेरिका इतना दुबला हुआ जा रहा है उसे तालिबान के जरिये आतंकवाद की वैश्विक शरणस्थली बनाने में खुद उसकी और उसके बगलगीर पाकिस्तान की नापाक भूमिका इतिहास का एक काला अध्याय बन चुकी है। अमेरिका की शिकागो जेल में बंद डेविड हेडली के रहस्योद्घाटन से भी ओबामा प्रशासन पर कोई असर नहीं पड़ा। हमेशा की तरह पाकिस्तान सारे साजो-सामान का इस्तेमाल भारत या अफगानिस्तान के खिलाफ ही करेगा। अनुभव तो यही बताता है कि पाक ने अमेरिकी मदद का इस्तेमाल अपने यहां आतंकी ढांचा ध्वस्त करने में कम और भारत के खिलाफ सैन्य बढ़त बनाने के लिए ज्यादा किया है। अपने परमाणु कार्यक्रम का निरंतर विस्तार और लंबी दूरी की मिसाइलें बनाते रहने से यह जगजाहिर है। पाकिस्तान अब तक खुद को आतंकवाद का सबसे बड़ा शिकार बताकर विश्व समुदाय का ध्यान अपनी कारस्तानियों से हटाने की कोशिश करता रहा है। सबसे मजेदार बात यह है कि पाकिस्तान के दोनों हाथों में लड्डू हैंöएक तरफ अमेरिकी मदद और दूसरी तरफ चीनी दोस्ती। निशाने पर है भारत।