Saturday 20 February 2016

हाई कोर्ट जज ने सुप्रीम कोर्ट से ही जवाब मांग लिया!

भारतीय न्यायपालिका में सोमवार को कुछ ऐसा हुआ जो इससे पहले देश के न्यायिक इतिहास में कभी नहीं हुआ था। सोमवार की दोपहर सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के एक जज को किसी तरह के न्यायिक काम देने पर रोक लगा दी। लेकिन इसके कुछ देर बाद मद्रास हाई कोर्ट के इसी जज ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस से ही लिखित जवाब मांग लिया। सोमवार दोपहर को सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सीएस कर्नन को कोई भी न्यायिक काम नहीं देने का निर्देश दिया। दरअसल न्यायमूर्ति कर्नन का तबादला कलकत्ता हाई कोर्ट कर दिया गया है। लेकिन कर्नन ने इस स्थानांतरण के आदेश पर ही रोक लगा दी। इसके बाद जस्टिस कर्नन को कोई न्यायिक काम देने पर रोक लगा दी गई। मद्रास हाई कोर्ट के जज जस्टिस कर्नन यहीं तक नहीं रुके। उन्होंने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के उन दोनों जजों के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज करने की धमकी दी है। जिन्होंने जस्टिस कर्नन को कोई भी न्यायिक कार्य नहीं देने का निर्देश दिया था। अपनी न्यायिक शक्तियों का हवाला देते हुए जस्टिस कर्नन ने कहा कि वह स्वत संज्ञान लेते हुए चेन्नई के पुलिस कमिश्नर को सुप्रीम कोर्ट के दोनों न्यायाधीशों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का न्यायिक आदेश देंगे। उन्होंने एक बार फिर खुद को जातिगत भेदभाव का शिकार बताया। उधर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि जस्टिस कर्नन किसी मामले में स्वत संज्ञान लेकर आदेश नहीं दे सकते। जस्टिस कर्नन को न्यायिक या प्रशासनिक कामकाज देना या न देना मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पर निर्भर करेगा। वे चाहें तो उन्हें आगे कामकाज दें और चाहें तो न दें। यह पहला मौका नहीं है जब जस्टिस कर्नन विवादों में आए हैं। इससे पहले भी उन्होंने अपने ही हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के निचली अदालत में नियुक्ति को लेकर जारी आदेश पर स्वत संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू कर दी थी। गत वर्ष मई में सुप्रीम कोर्ट ने उस मामले में भी रोक लगाई थी। जस्टिस कर्नन ने अपने तबादला रोकने के आदेश में प्रधान न्यायाधीश को नोटिस देते हुए बाकायदा इसका जवाब मंगा है। यही नहीं, उन्होंने इस आदेश की प्रतिलिपि राम विलास पासवान, बसपा प्रमुख मायावती और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी भेजी है। मामला चूंकि अदालतों से संबंधित है इसलिए इस पर कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती। हां, भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में ऐसा किस्सा पहले नहीं घटित हुआ है।

-अनिल नरेन्द्र

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