Tuesday 16 February 2016

फिर हुआ अमेरिका का दोहरा चेहरा बेनकाब

आतंकवाद के पोषक और निर्यातक के रूप में बदनाम पाकिस्तान को अमेरिका द्वारा सब कुछ जानते हुए, समझते हुए 86 करोड़ डॉलर की सैन्य सहायता देने पर आमादा अमेरिका एक बार फिर बेनकाब हुआ है। ओबामा प्रशासन ने कहा है कि उसने पाकिस्तान को लगभग 70-80 करोड़ डॉलर कीमत के आठ एफ-16 लड़ाकू विमान बेचने का फैसला किया है। परमाणु आयुध ले जाने में सक्षम इन लड़ाकू विमानों की बिक्री के प्रस्ताव को रिपब्लिकनों की नियंत्रण वाली कांग्रेस में अवरोध का सामना करना पड़ सकता है। सहायता के लिए आपात निधि का सहारा इसलिए भी लिया गया है ताकि उस पर रोक लगाने की कोशिश कामयाब न हो सके। हाल ही में पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमान की खेप देने के प्रस्ताव पर अमेरिकी सांसद अड़ंगा लगा चुकी है पर इसके बावजूद ओबामा पाकिस्तान को यह मदद करने पर आमादा है। ओबामा प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि पाकिस्तान को दी जाने वाली अमेरिकी सुरक्षा मदद आतंकवादियों द्वारा पाकिस्तानी धरती का इस्तेमाल पनाहगाह के रूप में किए जाने की क्षमता को कम करती है। हम इन महाशय से पूछना चाहते हैं कि क्या पाकिस्तान इन एफ-16 विमानों का इस्तेमाल हाफिज सईद, अजहर मसूद व लखवी के खिलाफ करेगा? इस फैसले से आतंकवाद के विरुद्ध छेड़े गए वैश्विक युद्ध में अमेरिकी इरादों और गंभीरता की कलई खुल गई है। आज जब दुनियाभर में आतंक के वित्तीय स्रोतों को बंद करने, सुखाने या उनकी नाकाबंदी की बात जोर-शोर से की जा रही है तब पाकिस्तान पर अमेरिकी मेहरबानी हैरान, परेशान करने वाली है। उधर पाकिस्तान की गतिविधियों को बड़ी समस्या वाला बताते हुए रिपब्लिकन पार्टी के एक प्रभावशाली सीनेटर ने आठ एफ-16 लड़ाकू विमान उस देश को बेचने पर रोक लगाने का संकल्प लिया है जो धोखेबाज सहयोगी के रूप में काम कर रहा है और आतंकवादी समूहों को सुरक्षित पनाहगाह मुहैया कराता है। वॉल स्ट्रीट जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार विदेश मंत्री जॉन केरी को लिखे पत्र में सीनेटर बॉब कारेकर ने कहा कि वह ओबामा प्रशासन को करदाताओं के धन का उपयोग जेट की बिक्री करने में नहीं करने दे सकते जबकि हक्कानी नेटवर्प जैसे आतंकी संगठन पाकिस्तान में पनाह लिए हुए हैं जो अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों पर हमला करते हैं। नौ फरवरी को लिखे पत्र में कारेकर ने कहा कि पाकिस्तान की गतिविधियां बेहद संकटपूर्ण हैं और इस बात को बल मिलता है कि पाकिस्तान धोखेबाज सहयोगी है जो क्षेत्रीय चुनौतियों का समाधान करने में आगे आने की बजाय कन्नी काटता है। विदेश मंत्री ने कांग्रेस को भेजे अपने वार्षिक बजट में पाकिस्तान को 859.8 मिलियन डॉलर का सहयोग देने का प्रस्ताव किया है जिसमें 265 मिलियन डॉलर का सैनिक साजो-सामान है। घोषित तौर पर यह मदद पाक को आतंकवाद से लड़ने, चरमपंथी संगठनों के सफाए, परमाणु हथियारों-प्रतिष्ठानों को सुरक्षित करने, अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया और भारत से संबंध सुधारने के लिए दी गई है, लेकिन इसका एक-तिहाई हिस्सा केवल सैन्य साजो-सामान के लिए है। जिस अफगानिस्तान की चिन्ता में अमेरिका इतना दुबला हुआ जा रहा है उसे तालिबान के जरिये आतंकवाद की वैश्विक शरणस्थली बनाने में खुद उसकी और उसके बगलगीर पाकिस्तान की नापाक भूमिका इतिहास का एक काला अध्याय बन चुकी है। अमेरिका की शिकागो जेल में बंद डेविड हेडली के रहस्योद्घाटन से भी ओबामा प्रशासन पर कोई असर नहीं पड़ा। हमेशा की तरह पाकिस्तान सारे साजो-सामान का इस्तेमाल भारत या अफगानिस्तान के खिलाफ ही करेगा। अनुभव तो यही बताता है कि पाक ने अमेरिकी मदद का इस्तेमाल अपने यहां आतंकी ढांचा ध्वस्त करने में कम और भारत के खिलाफ सैन्य बढ़त बनाने के लिए ज्यादा किया है। अपने परमाणु कार्यक्रम का निरंतर विस्तार और लंबी दूरी की मिसाइलें बनाते रहने से यह जगजाहिर है। पाकिस्तान अब तक खुद को आतंकवाद का सबसे बड़ा शिकार बताकर विश्व समुदाय का ध्यान अपनी कारस्तानियों से हटाने की कोशिश करता रहा है। सबसे मजेदार बात यह है कि पाकिस्तान के दोनों हाथों में लड्डू हैंöएक तरफ अमेरिकी मदद और दूसरी तरफ चीनी दोस्ती। निशाने पर है भारत।

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