Friday 12 February 2016

शहीद हनुमनथप्पा को श्रद्धांजलि

आखिर ईश्वर को जो मंजूर था वही हुआ, सियाचिन के योद्धा और देश के असली हीरो लांस नायक हनुमनथप्पा जिंदगी की जंग हार गए। उन्होंने बृहस्पतिवार को दिल्ली स्थित मिलिट्री के आर-आर अस्पताल में सुबह करीब 11.45 बजे अंतिम सांस ली।  उल्लेखनीय है सियाचिन में लांस नायक हनुमनथप्पा 10 जवानों के साथ 25 फुट बर्फ में धंस गए थे। शून्य से 45 डिग्री सेल्सियस नीचे तापमान में 144 घंटे तक धंसे रहने के बाद जिंदा निकाला गया था। जबकि नौ जवान बर्फ में जिंदा दफन हो चुके थे। हनुमनथप्पा में देश के लिए जीने और कुछ कर गुजरने का अदम्य साहस और इच्छाशक्ति थी जिसके बल पर बर्फ के भीतर भी जिंदा रहे। भले ही हम उनके जिंदा रहने को हैरतअंगेज और चमत्कारिक कहें दरअसल यह उनका जीवट था और भारतीय सेना के हौंसले की सबसे बड़ी मिसाल बने हनुमनथप्पा के बर्फीले तूफान में धंसने, ठंडी मौत से लड़ने और बाहर निकलने की दास्तान। सियाचिन में इस तरह के वातावरण में ड्यूटी कर चुके सैन्य अधिकारियों ने जो विश्लेषण किया है उसके मुताबिक हनुमनथप्पा के टेंट के ऊपर हिमस्खलन में गिरी बर्फ ने इग्लू की तरह का एयर पाकेट जैसा वातावरण बना दिया था, जिससे वह इतने दिनों तक सर्वाइव कर सके। इग्लू क्या है? दरअसल मध्य आर्टिक और ग्रीनलैंड के थुले क्षेत्र में बारहों  महीने बर्फ में रहने वाले लोगों द्वारा जिस घर का निर्माण किया जाता है उसे इग्लू कहते हैं। इग्लू का निर्माण बर्फ से ही किया जाता है। वहां रहने वाले लोगों को एस्कीमो कहा जाता है। वे वेल की हड्डियों और खालों से बने अपने घरों को सुरक्षित रखते हैं। बर्फ का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है क्योंकि उनमें दबे हुए हवा के पाकेट उसे एक विसंवाहक बनाते हैं। वहां बाहर का तापमान -45 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है लेकिन इग्लू के अंदर केवल शारीरिक गर्मी से अंदर का तापमान -7 से 16 डिग्री सेल्सियस के बीच हो जाता है। सियाचिन के जिस 22 हजार फुट पर भारतीय जवान पाकिस्तान से लगी एलओसी पर दिन-रात तैनात रहते हैं वहां सांस लेने के लिए आक्सीजन भी नहीं मिलती। सैनिक लकड़ी की चौकियों पर स्लीपिंग बैग में सोते हैं और आक्सीजन की कमी से मौत न हो जाए इसलिए एक जवान रात में  उन्हें कई बार जगाता रहता है। वहां नहाने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता और सैनिकों को दाढ़ी बनाने के लिए मना किया जाता है क्योंकि वहां त्वचा इतनी नाजुक हो जाती है कि उसके कटने का खतरा काफी बढ़ जाता है। सियाचिन में टेंट को गर्म रखने के fिलए  एक खास तरह की अंगींठी का इस्तेमाल किया जाता है जिसे स्थानीय भाषा में बुखारी कहते हैं। इसमें एक सिलिंडर में मिट्टी  का तेल डालकर उसे जला देते हैं। इससे वो सिलिंडर गर्म होकर बिल्कुल लाल हो जाता है और टेंट गरम रहता है। लांस नायक हनुमनथप्पा ने अपने जिंदगी की अंतिम लड़ाई सभी सुविधाओं से लैस मिलिट्री हास्पिटल में लड़ी। उनके ब्रेन में कमी आ गई थी, उनके फेफड़ों में निमोनिया का असर हो गया साथ ही लीवर और किडनी ने भी काम करना बंद कर दिया था। हालांकि देशभर में इस महान सपूत के लिए पार्थनाएं की गईं। लेकिन न दवाएं काम आईं न दुआएं। हमें गर्व है भारत के इस महान योद्धा पर। देश पर सर्वस्व न्यौछावर करने वाले हनुमनथप्पा को शत-शत नमन। परमपिता परमात्मा उनके परिवार को इस दुःख को सहने की शक्ति दे। हमारी विनम्र श्रद्धंाजलि।

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