Wednesday 10 February 2016

धारा 377 पर छिड़ी बहस

सुप्रीम कोर्ट ने गत मंगलवार को समलैंगिक रिश्तों को अपराध बताने वाली आईपीसी की धारा 377 के खिलाफ दायर सभी आठ उपचारात्मक याचिकाओं पर सुनवाई करने को राजी होने से समलैंगिकों में एक नई उम्मीद जगी है। सुप्रीम कोर्ट इससे पहले 11 दिसम्बर 2013 को दिल्ली हाई कोर्ट का वह आदेश खारिज कर चुका है जिसमें उसने दो बालिगों द्वारा सहमति से समलैंगिक संबंध बनाए जाने को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। लेकिन मंगलवार को चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने मामले को गंभीर बताते हुए संवैधानिक बैंच को रेफर कर दिया। सर्वोच्च अदालत का यह फैसला समलैंगिक रिश्तों के पक्षधर की नजरों में एक ऐतिहासिक फैसला है जो उपचारात्मक याचिका पर पहली बार लिया गया है। मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने गैर सरकारी संगठन नाज फाउंडेशन एवं अन्य के वकीलों की संक्षिप्त दलीलें सुनने के बाद कहा कि इन याचिकाओं को पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपा जाता है। पीठ ने कहा कि चूंकि इस मामले में संविधान से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दे शामिल हैं, इसलिए बेहतर होगा कि इसे पांच सदस्यीय संविधान पीठ सुने। सुनवाई के दौरान चर्चेज ऑफ नार्दन इंडिया और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकीलों ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने के विरुद्ध दलीलें दीं। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पूछा कि क्यूरेटिव पिटिशन के विरोध में कौन-कौन हैं? तब कोर्ट को बताया गया कि चर्च ऑफ इंडिया और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसके विरोध में हैं। लेकिन केंद्र सरकार की ओर से पेश वकीलों ने कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी और चुप रहे। यह इसलिए अहम है कि पूर्व यूपीए शासन में सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ 20 दिसम्बर 2013 को रिव्यू पिटिशन दाखिल की गई थी समलैंगिक संबंधों को अपराध की कैटेगरी से बाहर रखने के दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया था। हालांकि केंद्र की रिव्यू पिटिशन को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने कहा कि सरकार ने इस मुद्दे पर अंतिम रुख तय नहीं किया है। यह मानवीय मुद्दा है। विचार करके रुख तय करेंगे। नाज फाउंडेशन ने 2001 में हाई कोर्ट में धारा 377 की वैधता को चुनौती दी थी। 2004 में यह याचिका खारिज हो गई। 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट को फिर सुनवाई करने को कहा। हाई कोर्ट ने दो जुलाई 2009 को दूरगामी प्रभाव डालने वाले फैसले में कहा था कि दो वयस्क अगर सहमति से समलैंगिक संबंध बनाते हैं तो वह धारा 377 के तहत अपराध नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसम्बर 2013 को हाई कोर्ट का फैसला पलट दिया और समलैंगिकता फिर से क्राइम हो गई। आईपीसी की धारा 377 में कानून है कि दो लोग भले ही सहमति से समलैंगिक संबंध बनाएं तो भी उन्हें उम्रकैद की सजा हो सकती है।

-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment