Thursday 11 February 2016

मुस्लिम मfहलाओं के हकों के खिलाफ मुस्लिम संगठन

माननीय सुपीम कोर्ट ने मुस्लिम मfिहलाओं के साथ हो रहे भेदभाव व अन्य संबंधित मुद्दों के हल के लिए एक जनहित याचिका सूचीबद्ध करने और मामले को नई पीठ के समक्ष पेश करने के आदेश का मुस्लिम धार्मिक संगठनों द्वारा विरोध आरम्भ हो गया है। जमीयत-उलेमा--हिंद ने पर्सनल लॉ की दुहाई देते हुए सुपीम कोर्ट में मुस्लिम मfिहलाओं के हक पर सुनवाई का विरोध किया है। जमीयत ने कहा है कि पर्सनल लॉ के पावधानों को मौलिक अधिकारों के हनन के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती। सुपीम कोर्ट  मुस्लिम पर्सनल लॉ में शादी, तलाक और गुजारे भत्ते के मसले पर सुनवाई नहीं कर सकता। मुस्लिम मfिहलाओं के अधिकार पर सुनवाई के पक्षधर बनने के लिए जमीयत ने सुपीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है। मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने शुकवार को संक्षिप्त सुनवाई के बाद उसे पक्षधर बनने की इजाजत दे दी। पीठ ने छह सप्ताह में उसे अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है। जमीयत की ओर से पेश वकील हजेफा अहमदी और एजाज मकबूल ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में महिलाओं को पर्याप्त अधिकार दिया गया है। पर्सनल लॉ पवित्र कुरान पर आधारित है। इसे विधायिका ने तैयार नहीं किया है। इसलिए इसे अनुच्छेद 13 के तहत लागू नहीं किया जा सकता। बता दें कि जमीयत-उलेमा--हिंद भारतीय मुसलमानों का एक बड़ा संगठन है। शांतिपूर्ण ढंग से आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए इस संगठन ने मुसलमानों के लिए अलग पाकिस्तान का विरोध भी किया था। यह संगठन इस्लामी संस्कृति और परम्परा और धरोहरों के संरक्षण के लिए काम करने के साथ-साथ जनहित का काम भी करता है और इसके लगभग 10 लाख सदस्य हैं। मामला कुछ यूं हैः सुपीम कोर्ट ने मुस्लिम मfिहलाओं की स्थिति पर स्वत संज्ञान लेते हुए उनके अधिकारों पर सुनवाई का मन बनाया है। तीन तलाक, एक पत्नी के रहते दूसरी शादी और भरण-पोषण के मामले पर अदालत मौलिक अधिकारों के संदर्भ में विचार करेगी। मामले को जनहित याचिका में बदलने के लिए कोर्ट ने अटार्नी जनरल और राष्ट्रीय विधि सेवा पाधिकरण को नोटिस जारी किया था। उधर आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव व इस्लामिक फिकाह एकेडमी के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने भी कहा कि देश के मुसलमान न्यायपालिका का सम्मान करते हैं, लेकिन शरई मामलों में अदालतों का हस्तक्षेप गैर जरूरी है, जिसे किसी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। कानून बनाना अदालतों का काम नहीं है। मौलाना ने आगे कहा-चूंकि मामला सुपीम कोर्ट में चल रहा है इस पर कोई भी टिप्पणी नहीं की जा सकती।
अनिल नरेंद्र

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