Friday 19 February 2016

उपचुनाव ने संदेश भी दिया और सबक भी, समझना जरूरी है

आमतौर पर लोकसभा या विधानसभा के उपचुनावों के नतीजों से देश की सियासत पर कोई खास असर नहीं पड़ता, मगर इनके जरिये मतदाताओं के मूड का संकेत जरूर मिलता है। यही बात 13 फरवरी को आठ राज्यों के विधानसभा उपचुनावों को लेकर की जा सकती है, जिनके नतीजे विभिन्न दलों के लिए मिलेजुले रहे हैं। यदि इन नतीजों को राज्यवार देखें तो इनमें कुछ ऐसे संदेश जरूर छिपे हैं जिनमें यह देखा जा सकता है कि हवा किस ओर बह रही है। बिहार में जनता ने करीब दो महीने पहले प्रचंड जीत दिलाने वाले जद (यू) राजद गठबंधन को खारिज कर दिया तो उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी की हालत खराब कर दी। हां, भाजपा के लिए संतोष की बात यह रही कि मध्यप्रदेश के मैहर विधानसभा में पार्टी ने जीत का परचम लहराया। इस जीत ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का रक्तचाप जरूर बेहतर किया होगा। अगर हम बिहार की बात करें तो जद (यू) राजग गठबंधन रालोसपा उम्मीदवार की जीत भले ही सहानुभूति वोट से मिली जीत कहें, लेकिन कुछ महीने के शासन को अगर आधार मानें तो यह जीत उससे आगे की कहानी बयां करती है। इस ओर नीतीश कुमार और लालू प्रसाद दोनों को ध्यान देने की जरूरत है। शायद ऐसा ही कुछ उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के लिए भी है। नाजुक वक्त में सामान्य संदेश भी आशंका जता देते हैं। सबको सीखने का संकेत देते हैं। ऐसा ही कुछ उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव में देखने को मिल रहा है। तीन सीटों पर दोबारा चुनाव हुए। तीनों ही सीटों पर पूर्व  में सपा का कब्जा था। यूं तो उपचुनाव में हार के बहुत मायने नहीं होते हैं और इससे यह भी जाहिर नहीं होता कि अगले विधानसभा चुनाव में ऊंट किस करवट बैठेगा। फिर भी ताजा नतीजों से कई संकेत निकल रहे हैं। अगर मुजफ्फरनगर में भाजपा उम्मीदवार जीता है तो इसका मतलब है कि बहुसंख्यक वोट सपा के खिलाफ है। देवबंद से कांग्रेस के उम्मीदवार की जीत यह संकेत देती है कि मुस्लिम मतदाताओं ने पूरी तरह सपा का समर्थन नहीं किया। अगर किया होता तो पश्चिम की दोनों सीटें उसके पास होतीं। बसपा की गैर मौजूदगी का फायदा सपा उठाने में नाकाम रही। खास बात यह है कि उपचुनाव जीतने के लिए सपा ने ऐड़ी चोटी का जोर लगाया था। दूसरी ओर पंजाब में जहां कुछ महीने बाद ही विधानसभा चुनाव होने हैं, खंडूर साहिब विधानसभा सीट से सत्तारूढ़ अकाली दल के उम्मीदवार ने रिकार्ड जीत दर्ज की है। मगर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों ही इस चुनाव में मैदान में नहीं थे। दक्षिण राज्य कर्नाटक में एक बार फिर कमल को खिलखिलाने का मौका हाथ लगा है। शिवसेना ने महाराष्ट्र में पालफट सीट पर जीत दर्ज कर अपना दबदबा बरकरार रखा है। कुल मिलाकर एनडीए इन परिणामों से प्रसन्न होगी। जैसा मैंने कहा कि उपचुनाव ने संदेश भी दिया और सबक भी।

-अनिल नरेन्द्र

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