Tuesday, 23 February 2016

जेएनयू की बिसात पर रोटियां सेंकते सियासी दल

पिछले कई दिनों से जारी जेएनयू विवाद के लिए गुनहगार कौन-कौन हैं यह तो अब अदालतें ही तय करेंगी लेकिन सियासी दल बहरहाल इस मुद्दे को लेकर अपने सियासी फायदे नफे-नुकसान के लिए अपनी रोटियां सेंकने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रद्रोह के पाले खींचकर एक-दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। दरअसल कटु सत्य तो यह है कि जिस दिन से नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने उसी दिन से एक तरफ कांग्रेस पार्टी और मुस्लिमों का एक बड़ा वर्ग उनके खिलाफ हो गया। आप पिछले दो साल देख लें शायद ही कोई ऐसा मुद्दा हो जब कांग्रेस व इस अल्पसंख्यक वर्ग ने मोदी का विरोध नहीं किया हो। जहां तक वामपंथियों का सवाल है लगभग सारी दुनिया में सिमट चुके वामदलों को भी मौके की तलाश थी, जब वह अपनी खोई जमीन वापस हासिल कर सकें। इनकी मदद कर रहे हैं इलैक्ट्रॉनिक चैनल के कुछ एंकर व मैनेजमेंट। टीवी पर रोज यह किसी न किसी बहाने मोदी और उनकी सरकार को घेरने का प्रयास करते हैं। आज इलैक्ट्रॉनिक चैनल भी दो खेमों में बंट गए हैं। कुछ खुलकर विरोध कर रहे हैं तो कुछ खुलकर समर्थन। इस सियासी जंग में असल मुद्दे दब रहे हैं। जेएनयू में नौ फरवरी को क्या हुआ? नौ फरवरी को जेएनयू में एक सभा में पाकिस्तान जिन्दाबाद, कश्मीर की आजादी और भारत की बर्बादी तक जैसे नारे लगे। इस सभा में और नारेबाजी में बाहर से आए लोगों के साथ न सिर्प जेएनयू के छात्र-छात्राएं थीं बल्कि उस असैम्बली में कन्हैया कुमार भी मौजूद था। सो सभा तो हुई और उसमें राष्ट्र विरोधी नारे लगे यह तो तय है। अब सवाल उठता है कि कन्हैया ने नारे लगाए या नहीं? क्या उस पर देशद्रोह का केस होना चाहिए था या नहीं? दिल्ली पुलिस के कमिश्नर भीम सेन बस्सी ने कई बार दोहराया है कि पुलिस के पास कन्हैया के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं जो अदालत में पेश कर दिए गए हैं। वीडियो रिकार्डिंग सही है या नहीं निष्पक्ष और वैज्ञानिक जांच से ही तय हो पाएगा। इसका पता लगाने के लिए दिल्ली पुलिस भारत विरोधी नारों के टेप और कन्हैया कुमार की आवाज की फोरेंसिक जांच करा रही है। सोशल मीडिया पर वायरल अलग-अलग वीडियो में कन्हैया कुमार के राष्ट्र विरोधी नारे लगाने और नहीं लगाने के दावे किए जा रहे हैं। फोरेंसिक जांच से साफ हो पाएगा कि भारत विरोधी नारों में कन्हैया की आवाज थी या नहीं? दिल्ली पुलिस का दावा है कि वीडियो टेप के अलावा पुलिस के पास 17 गवाह हैं। उन्होंने पुलिस के सामने कन्हैया के खिलाफ बयान दर्ज कराए हैं। ज्यादातर ने कहा कि कन्हैया देश विरोधी नारे लगा रहा था। वह उस कार्यक्रम का हिस्सा था जिसमें देश विरोधी नारे लगे। कन्हैया ने न तो नारों को रोकने के लिए कहा और न ही सभा से हटा। 17 गवाहों में ज्यादातर जेएनयू के हैं। पर यह सियासी दल कोर्ट के फैसले का इंतजार नहीं करना चाहते और कन्हैया को बेकसूर साबित करने में लगे हुए हैं। हम कहते हैं कि अगर कन्हैया ने देशद्रोह नहीं किया और उन पर जबरन यह चार्ज लगाया गया है तो अदालतें हैं वह उसे राष्ट्रद्रोह से मुक्त कर देंगी। हमारी लड़ाई जेएनयू से नहीं है। जेएनयू ऐसा नहीं कि वह एक महान संस्थान नहीं पर मुट्ठीभर छात्रों की वजह से वह आज निशाने पर आ गया है। अगर आज जेएनयू गलत कारणों से सुर्खियों में है तो इसके लिए सरकार, यूनिवर्सिटी प्रशासन और जेएनयू के छात्र सभी जिम्मेदार हैं। राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के लिए जेएनयू में गिरफ्तारी भले ही पहली बार हुई हो, लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में ऐसी हरकतें वहां लगातार होती रही हैं। भारत के टुकड़े करने की नारेबाजी इसकी चरम परिणति थी। यदि पहले ही ऐसी गतिविधियों के खिलाफ कार्रवाई की जाती तो यह दिन न देखना पड़ता। 80 के दशक में जेएनयू कैम्पस में इंदिरा गांधी के खिलाफ नारेबाजी को सियासी विरोध मानकर भले भुला दिया जाए, लेकिन 2000 में कारगिल में लड़ने वाले वीर जवानों के साथ जो हुआ, उसे कतई भुलाया नहीं जा सकता है। कारगिल युद्ध खत्म होने के बाद ही जेएनयू कैम्पस में भारत-पाकिस्तान मुशायरा का आयोजन किया गया। मुशायरे का आनंद लेने के लिए कारगिल में पाकिस्तान के साथ लड़ने वाले सेना के मेजर केके शर्मा और मेजर एलके शर्मा भी पहुंच गए। एक पाकिस्तानी शायर की भारत विरोधी शायरी का कारगिल के दोनों हीरो ने विरोध किया। इस पर जेएनयू के छात्रों ने उल्टा उन दोनों की बुरी तरह पिटाई कर दी। अधमरी हालत में उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया। उस समय यह मुद्दा संसद में भी उठा और तत्कालीन रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडीस घायल मेजरों को देखने अस्पताल भी गए। लेकिन छात्र संघ और शिक्षकों के विरोध के कारण कोई कार्रवाई नहीं हो पाई। सरकार ने एक जांच कमेटी भी बनाई पर इसको जेएनयू में घुसने नहीं दिया। 2010 में पूरा देश जब छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के हाथों 76 जवानों के मारे जाने का शोक मना रहा था, तब जेएनयू में इसकी खुशी में पार्टी दी जा रही थी। अखबारों में इसकी खबर छपने के बावजूद तत्कालीन संप्रग सरकार ने कोई कार्रवाई की जरूरत नहीं समझी। इसके बाद जेएनयू के कुछ छात्रों के सीधे नक्सलियों के साथ संबंध भी मिले और गढ़चिरौली में जेएनयू छात्र हेम मिश्रा को गिरफ्तार भी किया गया। पुलिस की जांच से साफ हो गया है कि भारत की बर्बादी के लिए कार्यक्रम आयोजित करने की साजिश रचने वाला उमर खालिद भी हेम मिश्रा की तरह डीएसयू का सदस्य है। आज दुर्भाग्य है कि जेएनयू के कुछ छात्रों की गतिविधियों पर अंकुश लगाने की जगह कुछ सियासी दल अपनी रोटियां सेंकने में लगे हुए हैं।

-अनिल नरेन्द्र

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