Sunday 7 February 2016

दुनिया का सबसे खतरनाक युद्ध क्षेत्र ः सियाचिन ग्लेशियर

दुनिया के सबसे ऊंचे और दुर्गम युद्ध क्षेत्र 19,600 फुट स्थित सियाचिन ग्लेशियर के उत्तरी छोर पर बुधवार की सुबह हुए एक हिमस्खलन में भारत की एक सैन्य चौकी पूरी तरह तबाह हो गई। चौकी में मौजूद सभी 10 सैनिक शहीद हो गए हैं। बुधवार को हिमस्खलन व बर्फीले तूफान में लद्दाख क्षेत्र के नॉर्दन ग्लेशियर सेक्टर में इस हिमस्खलन में एक जूनियर कमीशंड ऑफिसर और नौ जवानों ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। ये जवान मद्रास रेजीमेंट के थे। आर्मी व वायुसेना ने बृहस्पतिवार को लापता जवानों के बचाव अभियान में विशेष टीमों के साथ खोजी कुत्तों और अन्य उपकरणों को लगाया था। दूसरी ओर गुरुवार को ही जवानों को बचाने में मदद के लिए पाकिस्तान की पेशकश को भारत ने ठुकरा दिया था। वहां के मेजर जनरल अमीर रियाज ने गुरुवार सुबह भारतीय थलसेना के डीजीएचओ लेफ्टिनेंट जनरल रणवीर सिंह को फोन कर मदद की पेशकश की थी। भारतीय डीजीएमओ ने पाकिस्तानी डीजीएमओ से कहा कि भारतीय जवानों को निकालने के लिए समुचित संसाधन तैनात किए गए हैं। थलसेना के इन जवानों में से किसी का शव नहीं मिला। सियाचिन ग्लेशियर में बर्फीले तूफान से अक्सर सैनिकों की मौत होती रहती है। बीते चार माह में सियाचिन में हिमस्खलन में सैन्य कर्मियों के मारे जाने अथवा लापता होने की यह तीसरी घटना है। 13 नवम्बर 2015 को सियाचिन ग्लेशियर के दक्षिणी छोर पर हुए हिमस्खलन में सेना के 3 स्काउट्स के कैप्टन अश्वनी कुमार शहीद हो गए थे, जबकि 15 जवानों को बाद में बचाव दल ने बचा लिया था। इसके बाद इसी इलाके में 3 जनवरी 2016 को हुए हिमस्खलन में 3 स्काउट्स से संबंधित 4 जवान शहीद हुए थे। अप्रैल 2012 में यहां पाकिस्तान के एक सेना मुख्यालय में बर्फीले तूफान का एक बड़ा ज्वार जा टकराया था, जिसमें उसके 130 सैनिक और 14 नागरिक मारे गए थे। भारतीय सेना की ओर से यहां मरने वाले सैनिकों के बारे में कोई आंकड़ा तो जारी नहीं किया गया लेकिन जानकारों का कहना है कि 2007 से 2012 के दौरान यहां हुई सैनिकों की मौतों की एक-तिहाई वजह हिमस्खलन है या फिर बर्फीला तूफान। इन पांच सालों में कश्मीर घाटी में 242 सैनिकों की मौत हो गई। इनमें से 180 आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हुए। बाकी बर्फीले तूफान और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के शिकार हुए। सियाचिन का इलाका चीन-पाकिस्तान कराकोरम राजमार्ग के पास है। यह 80 किलोमीटर लंबा है। इस पर अपना अधिकार जमाने के लिए भारत ने 1984 में अपने सैनिक तैनात किए थे। इसकी रक्षा के लिए भारतीय सेना ने ऑपरेशन मेघदूत चलाया। इसमें सेना की एक ब्रिगेड (3000 सैनिक) लगाई गई और जिस पर सालाना 1000 करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्च होता है। हम इन शहीदों को अपनी श्रद्धांजलि देते हैं।

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