Thursday 25 February 2016

उमर खालिद का आत्मसमर्पण सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है

देशद्रोह के आरोपी जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य ने अंतत मंगलवार देर रात दिल्ली पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। या यूं कहें कि वह आत्मसमर्पण करने पर मजबूर हो गए। मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट से राहत नहीं मिलने पर ये दोनों आधी रात में जेएनयू कैंपस से बाहर निकले और खुद को पुलिस के हवाले कर दिया। दोनों के खिलाफ वसंत पुंज थाने में मामला दर्ज है और उन्हें थाने के एसटीएफ कार्यालय में रखा गया। दोनों छात्रों को धारा 124 ए के तहत गिरफ्तार किया गया। अभी भी रामा नागा अनंत और आशुतोष ने समर्पण नहीं किया है। मैं समझता हूं कि दिल्ली पुलिस ने बड़ी शालीनता और सब्र से व्यवहार किया है और वह इन धर्मनिरपेक्षों की चाल में नहीं फंसी। यह तत्व चाहते थे कि पुलिस जेएनयू में घुसे और वह इसे एक नया मुद्दा बनाए। पर पुलिस ने संयम से काम लिया। हमें तो यह लगता है कि उमर खालिद और अन्य छात्रांs का अचानक सामने आना एक सोची-समझी रणनीति और तैयारी का हिस्सा है। कानूनी सलाह के साथ तैयारी की गई है। साथ ही संसद सत्र को ध्यान में रखा गया है। 9 फरवरी के बाद से लापता रहने के बाद उमर ठीक संसद सत्र से दो दिन पहले सामने आए। उन्हें संसद सत्र के दौरान गिरफ्तारी पर ज्यादा माइलेज मिलने की उम्मीद है। साथ ही लगता होगा कि सत्र चलने की वजह से सरकार दबाव में रहेगी। क्या उमर खालिद और गैंग जेएनयू में ही छिपे बैठे थे? क्या इनको छिपाने में जेएनयू के शिक्षकों की भी भूमिका थी? जिस तरह से दस दिनों की लुकाछिपी के बाद अचानक ये छात्र पकट हुए हैं वह संशय पैदा करता है कि कहीं ये छात्र कैंपस में ही किसी शिक्षक के यहां तो नहीं छिपे थे? जेएनयू छात्र संघ के संयुक्त सचिव सौरभ शर्मा की मानें तो सभी आरोपी पैंपस में ही छिपे थे। एवीबीपी ने जेएनयू के कुछ शिक्षकों पर आरोप लगाया है कि उनके संबंध अलगावादियों, माओवादियों और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से हैं। जेएनयू में एवीबीपी के पदाधिकारी आलोक ने सोमवार को परिसर में संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि 9 फरवरी की घटना के आरोपियों ने 21 फरवरी को एक बार फिर कैंपस में आवाज बुलंद की। यही नहीं देशद्रोह के आरोपी उमर खालिद ने जेएनयू के कुछ शिक्षकों का धन्यवाद भी ज्ञापित किया। हमें शक है कि इन्हीं शिक्षकों से उसे शह मिली है। उन्होंने कहा कि ऐसे शिक्षकों की जांच के लिए न्यायिक समिति बनाने की जरूरत है। चंद मुट्ठी भर लोग जेएनयू को बदनाम कर रहे हैं। यदि पुलिस जांच होगी तो साफ हो जाएगा कि पैंपस में कहां इन देशद्रोहियों को पनाह मिली। जेएनयू मामले में शनिवार और रविवार को उमर खालिद से जुड़ाव रखने वाले जेएनयू और डीयू के करीब 40 शिक्षकों से पूछताछ की गई। साथ ही 10 वरिष्ठ पत्रकारों से सवाल-जवाब किए गए। 30 अन्य शिक्षकों-छात्रों को पूछताछ के लिए नोटिस दिया गया है। जानकारी के अनुसार जिन शिक्षकों से पूछताछ की गई वे विभिन्न वामपंथी संगठनों से जुड़े हैं। जांच में शामिल पत्रकार स्वतंत्र लेखन का कार्य करते रहे हैं और वामपंथी आंदोलनों से किसी न किसी पकार से जुड़े रहे हैं। साथ ही जेएनयू के छात्र भी रहे हैं। फरारी से पहले उमर की मोबाइल फोन पर इन सभी से बात होती रही है। हालांकि पुलिस ने इन लोगों की संलिप्ता पर कुछ भी बोलने से इंकार किया है। लेकिन इन लोगों से उमर और उसके साथियों की जानकारी साझा करने को कहा गया है। पूछताछ में इन शिक्षकों ने उमर के ठिकाने के बारे में सूचना होने से इंकार किया। उमर खालिद को झूठा फंसाया जा रहा है या वह देशद्रोही हैं, अब सत्य सामने आ जाएगा। अदालत में सब कुछ पता चल जाएगा।

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