Friday 12 July 2019

बजट से उभरी निराशा

बजट प्रावधानों से निराश घरेलू इक्विटी बाजार में सोमवार को इस साल की बड़ी गिरावट दिखी। सेंसेक्स 793 और निफ्टी 253 अंक गिरकर बंद हुआ। फीसदी के हिसाब से यह अप्रैल 2016 के बाद बड़ी गिरावट है। पांच कारणों से बाजार ने लगाया गोता ः बजट प्रस्ताव ः सूचीबद्ध कंपनियों में सार्वजनिक हिस्सेदारी 25 फीसदी से बढ़ाकर 35 फीसदी करने, शेयर बॉयबैंक पर 20 फीसदी टैक्स लगाना और सुपर फिच टैक्स पर सरचार्ज बढ़ाने से विदेशी निवेशकों पर सीधा असर। सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में रोजगार के आंकड़े जून में काफी मजबूत रहे, जिससे फेड रिजर्व में ब्याज दरें घटने की उम्मीद खत्म हो गई। कंपनियों का मुनाफ ः घरेलू कंपनियों के जून के नतीजे से पहले निवेशक सावधानी बरत रहे हैं। टीएसएस ने मंगलवार को तो इंफोसिस शुक्रवार को अपने नतीजे जारी करेगा। कूड ऑयल ः ईरान के साथ तनाव से सोमवार को कूड 0.26 फीसदी बढ़कर 64.40 डॉलर प्रति बैरल हो गया। तकनीकी कारण ः निफ्टी पचास दिन के औसत कारोबारी स्तर 11,722 अंक के नीचे आ गया, जिससे बिकवाली शुरू हो गई। इस बार बजट से आम लोगों को तो यह उम्मीद थी कि सरकार मध्य वर्ग और गरीब तबके का ख्याल रखेगी और ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगी जिससे लोगों पर महंगाई का बोझ और बढ़े। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उलटे लोगों को बजट से निराशा ही हुई। किसी तरह की राहत देना तो दूर, सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर जिस तरह से उप-कर लगाया, वह हैरत में डालने वाली बात है। सरकार जब-जब पेट्रोल-डीजल महंगा करती है तो इसके पीछे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल महंगा होने का तर्प दिया जाता है। लेकिन अभी तो अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम काफी नीचे हैं। गरीब के लिए तो महंगाई से बड़ी कोई मार नहीं होती। ऐसे में पेट्रोल-डीजल महंगा होने का मतलब है हर चीज महंगी होना। दूध, फल और सब्जी से लेकर रोजमर्रा के काम में आने वाली सारी चीजों के दाम बढ़ जाएंगे। सार्वजनिक परिवहन सेवाएं महंगी हो जाती हैं। ऑटो-टैम्पो तक का भाड़ा बढ़ जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिर अगले चन्द वर्षों में भारत को पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की प्रतिबद्धता को जगह-जगह दोहराया है। हकीकत यह है कि विकास से इसका कोई सीधा संबंध तक नहीं हो सकता जब तक सरकारें बढ़ती अर्थव्यवस्था का लाभ आमजनों तक न पहुंचाएं। दुखद पहलू यह है कि आंकड़े बताते हैं कि अर्थव्यवस्था में वृद्धि का लाभ स्वास्थ्य, शिक्षा और आय के रूप में गरीबों या मध्य वर्ग तक नहीं पहुंच रहा है। इसके ठीक उलट तमाम देश जिनकी जीडीपी भारत से काफी कम है, हम से बेहतर सुख-सुविधाएं अपने नागरिकों को दे रहे हैं। दरअसल जब तक सरकारें खासतौर पर राज्य सरकारें, डिलीवरी और भ्रष्टाचार-मुक्त और शिथिलता शून्य नहीं करती तब तक अर्थव्यवस्था में वृद्धि का आम आदमी के लिए कोई मतलब नहीं है। सरकार की योजनाओं का लाभ जब तक निचले तबके को नहीं मिलता तब तक बेशक सरकार अच्छी से अच्छी योजना ले आए उसका फायदा आमजन को नहीं होगा। कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले बजट को त्रिशंकु बजट करार देते हुए सांसद शशि थरूर ने कहा कि वित्तमंत्री सीतारमण ने बजट के जरिये अर्थव्यवस्था की सुनहरी तस्वीर पेश करने की कोशिश की, लेकिन पिछले पांच साल के आर्थिक कुप्रबंधन की विरासत ने उनकी कोशिशों को झटका दे दिया। उन्होंने कहा कि क्रिकेट विश्व कप चल रहा है और यह कहना गलत नहीं होगा कि सरकार ने अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर रक्षात्मक बल्लेबाजी की, कैच छोड़े और नो बॉल फेंकी।

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