विधानसभा
चुनाव वाले राज्यों के नेताओं से मुलाकात के क्रम में शुक्रवार को दिल्ली के कांग्रेस
नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की। बैठक शुरू होने के साथ ही राहुल
ने नेताओं को हिदायत दी कि मेरे पद छोड़ने को लेकर चर्चा न करें। राहुल ने लोकसभा चुनाव
में हार की सामूहिक जिम्मेदारी के प्रति पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा दिखाई गई उदासीनता
पर दुख जताया। राहुल ने कहा कि उन्हें इस बात का दुख है कि उनके पार्टी अध्यक्ष पद
से इस्तीफे की पेशकश के बाद भी कुछ मुख्यमंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं को अपनी जवाबदेही
का अहसास नहीं हुआ। विश्वस्त सूत्र ने बताया कि राहुल गांधी ने कहा कि वह इस बात से
दुखी हैं कि उनके इस्तीफे के बाद भी पार्टी शासित राज्यों के कुछ मुख्यमंत्रियों, महासचिवों, प्रभारियों
और वरिष्ठ नेताओं को अपनी जवाबदेही का अहसास नहीं हुआ और न ही किसी ने अभी तक अपने
पद से इस्तीफा ही दिया है। गौरतलब है कि राहुल की यह टिप्पणी इस मायने में अहम है कि
25 मई को हुई कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी)
की बैठक
में उन्होंने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ
को लेकर विशेष रूप से नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा था कि कुछ नेता अपने-अपने पुत्रों को जिताने में लग गए और पार्टी हितों को नजरंदाज किया। इसके बाद
शुक्रवार को कांग्रेस के भीतर इस्तीफों की झड़ी लग गई। पार्टी के तमाम पदों पर बैठे
सीनियर नेताओं से लेकर वर्पर्स तक ने इस्तीफे की पेशकश कर डाली। एक ही दिन में
120 इस्तीफों की झड़ी लग गई। सामूहिक इस्तीफों के पीछे यह वजह हो सकती
है कि कांग्रेस अध्यक्ष इसके बाद अपने हिसाब से संगठन का कायकल्प कर सकेंगे। संगठन
के पदाधिकारियों ने सामूहिक इस्तीफे भेजे जिसमें एआईसी के पदाधिकारियों से लेकर सचिव,
यूथ कांग्रेस व महिला कांग्रेस के पदाधिकारियों तक शामिल हैं। बताया
जाता है कि एक लिस्ट तैयार हुई है जिसमें 120 लोगों ने अपने साइन
किए हैं। लिस्ट में अभी और नाम जुड़ने की चर्चा है। इस बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता
वीरप्पा मोइली ने शुक्रवार को कहा कि राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष पद पर बने रहने
की एक प्रतिशत भी संभावना नहीं है। कांग्रेस पार्टी इतनी पुरानी है और आज के परिपेक्ष
में एक मजबूत विपक्ष की सख्त जरूरत है। कांग्रेस पार्टी के हित में यही है कि राहुल
अध्यक्ष बने रहें और अपने हिसाब से जरूरी पुनर्गठन करें हर स्तर पर। राहुल के विकल्प
पर शायद ही किसी की सहमति हो। ऐसी भी संभावना नहीं दिख रही है कि नेहरू-गांधी परिवार से बाहर का कोई नेता पार्टी को संभाल सकता है। अगर ऐसा होता है
तो पार्टी की टूटने की पूरी संभावना बन जाती है। सोनिया गांधी संप्रग अध्यक्ष हैं वहीं
प्रियंका गांधी वाड्रा महासचिव के रूप में सक्रिय हैं। अभी तक जिन नेताओं ने अपने पद
से इस्तीफा नहीं दिया वह ऐसा करके खुद पार्टी को नुकसान पहुंचा रहे हैं। लोकसभा चुनाव
में हार के लिए अकेले राहुल गांधी जिम्मेदार नहीं हैं।
-अनिल नरेन्द्र
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