Friday 5 July 2019

बेटों को विश्वस्तरीय बनाने में पिताओं का योगदान

आज अगर टीम इंडिया वर्ल्ड कप जीतने की उम्मीद कर रही है तो इसके खिलाड़ियों को यहां तक पहुंचाने में इनके पिताओं का बहुत बड़ा योगदान है। प्रस्तुत है कुछ खिलाड़ियों के पिता का त्याग और संघर्ष की दास्तान। टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली अपने पिता के बेहद लाडले थे। नौ साल की उम्र में जब विराट ने क्रिकेट खेलना शुरू किया तो पिता ही उनके पहले प्रशंसक थे जो अपने व्यस्त रुटीन से समय निकालकर हौसला अफजाई के लिए पहुंचते थे। विराट के पिता प्रेम कोहली पेशे से क्रिमिनल वकील थे। गुरुग्राम में विराट डीएलएफ फेस-1 में मां सरोज कोहली के साथ रहते थे। उनका एक भाई और एक बहन है। विराट के पिता का सपना था कि वह क्रिकेट में अच्छे खेले और नाम कमाएं। क्रिकेट की कोचिंग से लेकर विराट के खेल से जुड़े रहे। वह न सिर्प पूरा समय देते थे बल्कि विराट के खेल आयोजनों की पूरी जानकारी रखते थे। इतना ही नहीं, वह विराट को क्रिकेट कोचिंग के लिए साथ लेकर पहुंचते थे और वापस लेकर आते थे। विराट को एक सफल क्रिकेटर बनाने का सपना देखने वाले प्रेम कोहली का 18 दिसम्बर 2006 को निधन हो गया। तब विराट रणजी ट्रॉफी मैच खेल रहे थे। कोहली ने खुद एक साक्षात्कार में बताया कि उनका पिता से बहुत लगाव था। जब उनके पिता उन्हें छोड़कर गए तब बिजनेस ठीक नहीं चल रहा था। पूरा परिवार एक किराये के मकान में रह रहा था। यह परिवार के लिए मुश्किल वक्त था। भारतीय क्रिकेट टीम के सबसे सफल कप्तानों में से एक महेंद्र सिंह धोनी आज जिस मुकाम पर पहुंचे हैं उनके पीछे पिता का त्याग है। माही को धोनी बनाने में उनके पिता ने हर कदम पर उनका साथ दिया। बस ऑपरेटर की नौकरी करते बेटे को क्रिकेट खिलाड़ी बनाने के लिए उन्होंने खुद की जरूरतों में कटौती की, लेकिन बेटे को किसी चीज की कमी नहीं होने दी। उनको भरोसा था कि उनका बेटा एक दिन क्रिकेट में मुकाम बनाएगा। धोनी की पिक्चर भी बनी है जिसमें उसके जीवन में संघर्ष की पूरी कहानी दर्शाई गई है। यूं तो हर माता-पिता का योगदान अपने बेटे को बनाने में होता है पर कुछ कहानियां इतिहास के पन्नों में अमर हो जाती हैं। ऐसे ही एक पिता तौसीफ अहमद थे। उन्होंने अपने बेटे मोहम्मद शमी को विश्वस्तरीय क्रिकेटर बनाने में खुद को भी लगाया। तौसीफ अहमद अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन शमी के साथ उनकी दुआएं हमेशा रहेंगी। अमरोहा के अली नगर सहसपुर गांव के एक साधारण किसान तौसीफ अहमद ने जीवन संघर्ष में गुजारा। क्रिकेट के शौकीन शमी को बड़ा क्रिकेटर बनाने की ठानी और कोच बनकर वह खुद क्रिकेट सिखाने में जुट गए। खेत पर सीमेंटिड पिच बना दी। शमी वहीं प्रैक्टिस करने लगे। दो साल बाद 2004-05 में उन्होंने शमी को मुरादाबाद में कोच बदरुद्दीन के पास भेज दिया। वहां शमी की ट्रेनिंग हुई। पिता अपने बच्चे के लिए क्या कुछ नहीं करता। आखिरकार बच्चों की जिम्मेदारी उठाना और उनको सफल बनाने का दायित्व पिता के ही हाथों में होता है। यह कहना है भुवनेश्वर के पिता किरनपाल सिंह का जो उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही के पद पर रहे और बच्चों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने में काफी संघर्ष किया। टीम इंडिया के गेंदबाज युवी की गेंदबाजी का दुनिया में डंका बजता है। किरनपाल सिंह ने बताया कि उन्होंने बच्चों को हमेशा अनुशासन में रहना सिखाया। रोहित शर्मा के पिता गुरुनाथ शर्मा ने बेटे की खुशी के लिए खुद से दूर किया लेकिन उसका क्रिकेट नहीं छुटने दिया। वह बताते हैं कि हमारी आर्थिक हालात पस्त थे। हम मुंबई के उपनगर डोबिवली में रहते थे। रोहित को छोटी उम्र से ही क्रिकेट का शौक था। मेरा हाथ पकड़कर वह मुझे नीचे ले जाता था और कहता थाöबॉलिंग करो। मैं अंडर आर्म बॉलिंग करता था। रोहित के लिए क्रिकेट किट खरीदने के लिए हमारे पास पैसे नहीं थे। फिर मैंने उसे उसके दादा के पास बोरीवली रहने भेज दिया। उसे अपने से दूर करना दुखद था पर उसका करियर मेरे लिए सबसे ऊपर था। मैं उसे इंडिपेंडेंट बनाना चाहता था। उसका खेल देखकर कोच दिनेश लाड ने उसे स्वामी विवेकानंद स्कूल से खेलने के लिए कहा और स्कॉलरशिप भी दिलाई। मेरा मानना है कि बच्चों को वह करने देना चाहिए जो वह चाहते हैं। रविन्द्र जडेजा के पिता अनिरूद्ध सिंह ने बेटे से कहाöतुम्हें दुनिया को जो दिखाना है, वह क्रिकेट के मैदान पर दिखाओ। हम जामनगर में रहते थे। घर के पास ही पुलिस लाइन थी, जहां रविन्द्र बच्चों के साथ क्रिकेट खेलने जाता था। एक दिन मैं उसे लाल बंगला स्थित क्रिकेट कोचिंग सेंटर लेकर पहुंचा। कोच महेंद्र सिंह ने उसे परखा, ट्रेनिंग दी। मेरी इच्छा थी कि वह सेना में जाए, मैं इसलिए उसे सैन्य स्कूल में दाखिल करना चाहता था पर वह क्रिकेट में पूरी तरह रम चुका था। रविन्द्र धार्मिक प्रवृत्ति का है। यजुवेंद्र चहल के पिता केके चहल बताते हैं कि यजुवेंद्र सिर्प 4-5 साल का ही था, तभी मैंने सपना पाल लिया था कि वह चेस में ग्रेंड मास्टर बनाऊंगा। उसे सिखाना शुरू कर दिया। पर उसने शर्त रख दी कि चेस तभी खेलूंगा जब क्रिकेट खेलने देंगे। दोनों खेल साथ-साथ चलते रहे। वह चेस में अपने वर्ग में नेशनल चैंपियन भी बना। लेकिन वह लगातार ही क्रिकेट में ही भविष्य टूट ढूंढ रहा था, तो मैंने उसे स्पिनर बनने की सलाह दी। वह मीडियम पेसर बनना चाहता था। घर से आधा किलोमीटर दूर हमारा खेत था। मैंने प्रैक्टिस के लिए खेत में पिच तैयार करवा दी। सुबह-शाम उसके साथ जाकर लेग स्पिन की प्रैक्टिस कराने लगा। उसका प्रदर्शन सुधरता गया। आज वह नाम कमा रहा है तो खुशी है। इन नामचीन टीम इंडिया के क्रिकेटरों के करियर बनाने में कोचों के साथ-साथ सबसे बड़ा योगदान माता-पिता का है। आज वह सब अपने त्याग पर फूले नहीं समा रहे होंगे, बेटों ने पूरी दुनिया में अपना डंका बजा दिया है।

-अनिल नरेन्द्र

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