Wednesday 31 July 2019

कांग्रेस में नेतृत्व संकट से पार्टी को भारी नुकसान हो रहा है

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के पद से इस्तीफा देने के इतने दिन बाद भी कांग्रेस नेतृत्व कौन करे यह तय नहीं हो पा रहा है। राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद नेतृत्व को लेकर स्पष्टता की कमी के कारण पार्टी को नुकसान हो रहा है। इस्तीफे के बाद से पार्टी के नेताओं के झगड़े बढ़ गए हैं। पार्टी का अनुशासन तार-तार हो रहा है। कोई नेता किसी की नहीं सुन रहा है। इस्तीफा देने के बाद से राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के सिवाय कोई बड़ा फैसला नहीं लिया है। झगड़े और अनुशासनहीनता की हालत यह है कि हरियाणा में प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर, प्रभारी महासचिव गुलाम नबी आजाद के ही निर्देश नहीं मान रहे हैं। तंवर की बनाई चुनाव संबंधी कमेटी को जब आजाद ने भंग कर दिया, तब भी उन्होंने उस कमेटी की बैठक होने दी। इसी तरह महाराष्ट्र, दिल्ली में भी नेतृत्व संकट पार्टी को भारी नुकसान पहुंचा रहा है। जब राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा दिया था तो उम्मीद तो यह थी कि लोकसभा में पार्टी की करारी हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल की तरह बाकी वरिष्ठ पदाधिकारियों ने अपना इस्तीफा नहीं दिया। वैसे होना तो यह चाहिए था कि राहुल ने जब इस्तीफे की पेशकश की थी तो पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था कार्यसमिति में विचार-विमर्श होता और पार्टी का सर्वसम्मति से नया अध्यक्ष चुना होता। पर इतने समय बीतने के बाद भी कांग्रेस को नया अध्यक्ष नहीं मिला। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने रविवार को कहा कि राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद नेतृत्व को लेकर असमंजस से पार्टी को नुकसान पहुंच रहा है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस में सुधार का रास्ता यही हो सकता है कि कार्यसमिति सहित पार्टी  में सभी महत्वपूर्ण पदों के लिए चुनाव हों, जिससे चुनने वाले नेताओं को स्वीकार्यता हासिल करने में मदद मिले। उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह के आकलन का भी समर्थन किया कि कांग्रेस की कमान किसी युवा नेता को सौंपी जाए। राहुल के इस्तीफे के बाद नेतृत्व को लेकर मझधार में फंसी पार्टी की कमान कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी को सौंपे जाने की आवाज बुलंद होने लगी है। पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने प्रियंका को पार्टी अध्यक्ष बनाने की न केवल पुरजोर वकालत की है, बल्कि यह भी कहा है कि उनमें ही अपनी दादी इंदिरा गांधी की तरह मुश्किल वक्त में पार्टी को दोबारा सत्ता में ला खड़ा करने का दमखम है। इन नेताओं ने यह दलील भी दी है कि यदि गांधी परिवार से  बाहर के व्यक्ति को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया तो पार्टी में बिखराव होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। केंद्र सरकार के पूर्व मंत्रियोंöनटवर सिंह, भक्त चरण दास, श्री प्रकाश जायसवाल, अनिल शास्त्राr आदि नेताओं के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता व सांसद शशि थरूर ने भी उम्मीद जताई है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में  प्रियंका जरूर हिस्सा लेंगी। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पुत्र व पश्चिम बंगाल की जांगीपुर संसदीय सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर किस्मत आजमाने वाले अभिजीत मुखर्जी भी पहले ही कह चुके हैं कि अपनी दादी की तरह ही प्रियंका गांधी में भी पार्टी को इस मुश्किल दौर से उबार कर दोबारा सत्ता में खड़ा करने की क्षमता है। दूसरी ओर चुनावी हार के बाद बीते 25 मई की कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में अध्यक्ष पद से अपने इस्तीफे की पेशकश करने वाले राहुल गांधी ने स्पष्ट कर दिया था कि उनके बाद उनके परिवार का कोई और व्यक्ति भी यह पद नहीं संभालेगा। लेकिन दिक्कत यह है कि दो महीने से अधिक का वक्त गुजर चुका है और कांग्रेस पार्टी राहुल का विकल्प ढूंढने में सफल नहीं हो पाई। इस बीच सोनभद्र आदिवासी हत्याकांड मामले में प्रियंका गांधी के तीखे तेवर देख तमाम पार्टी नेताओं को उनसे उम्मीदें बंध गई हैं। अब कांग्रेस का कर्नाटक की गठबंधन सरकार के पतन और देशभर में कांग्रेस पार्टी में मची भगदड़ को देखते हुए यह देखना अहम है कि कांग्रेस कब तक इस महत्वपूर्ण मामले में निर्णय तक पहुंच पाती है।

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