Saturday 27 July 2019

हिमा दास पूरे देश को आप पर गर्व है

हमारे देश में क्रिकेट का इतना बोलबाला है कि खेलप्रेमियों का ध्यान और खेलों पर कम ही जाता है। प्रतिभा का रास्ता कांटों भरा हो सकता है, कुछ समय तक के लिए बाधित दिख सकता है। लेकिन उसे अपने मुकाम तक पहुंचने से स्थायी तौर पर रोका नहीं जा सकता। मैं बात कर रहा हूं भारत की उड़नपरी हिमा दास की। देश की नई उड़नपरी हिमा दास ने हाल ही में चेक गणराज्य की नादे थेस्टो नाड मैंटुजी ग्रां प्री में महिलाओं की 400 मीटर दौड़ में सीजन बेस्ट 52.09 सैकेंड के साथ गोल्ड मैडल हासिल किया। एक महीने के भीतर उनका यह पांचवां स्वर्ण पदक है। उन्होंने दो जुलाई को यूरोप में, सात जुलाई को पुंटी एथलेटिक्स मीट में, 13 जुलाई को चेक गणराज्य में और 17 जुलाई को टाबोर ग्रां प्री में अलग-अलग स्पर्धाओं में स्वर्ण पदक हासिल किए। हिमा दास पहली ऐसी भारतीय महिला बन गई हैं जिन्होंने विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप ट्रेक में स्वर्ण पदक हासिल किया है। 18 साल की हिमा असम के ढिंग शहर के पास एक छोटे से गांव कपुंलियारी की रहने वाली हैं। उन्होंने महज दो साल में ही अपना नाम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दर्ज कराया है। हिमा बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उनके पिता का नाम रंजीत दास है और वे किसान हैं। पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी हिमा को शुरू में फुटबॉल में दिलचस्पी थी। वे स्कूल में लड़कों के साथ फुटबॉल खेलती थीं और हमेशा से ही इसे अपना करियर बनाना चाहती थीं। वे गांव में आने वाली गाड़ियों के साथ रेस लगाती थीं। वह लड़कों को रेस में हरा देती थीं। यह देखकर उनकी पीटी टीचर ने उन्हें धावक बनने की सलाह दी। स्थानीय कोच निपुन दास की सलाह मानकर हिमा ने जिला स्तर की 100 और 200 मीटर की स्पर्धा में भाग लिया। हिमा की लगन देखते हुए निपुन दास उन्हें गुवाहाटी लेकर आए। यहां से हिमा दास का करियर एथलीट के तौर पर शुरू हुआ। हिमा दास क्रिकेट के मुकाबले अपनी ऐतिहासिक उपलब्धियों को बेहद कम तवज्जो मिलने से दुखी हैं। कहती हैंö11 सैकेंड दौड़ने के लिए वर्षों एड़ियां घिस जाती हैं। कोई धावक रोज सुबह चार बजे उठकर आठ-आठ घंटे प्रैक्ट्सि करता है, ऐसे में अगर देश उसकी उपलब्धियों को नजरंदाज कर दे तो उसे कैसा लगेगा, आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं। प्लीज हमें भी क्रिकेटरों जैसा प्यार दें। हमारे देश में यह विडंबना लंबे समय से बनी है कि दूरदराज के इलाकों में गरीब परिवारों के कई बच्चे अलग-अलग खेलों में अपनी बेहतरीन क्षमताओं के साथ स्थानीय स्तर पर तो किसी तरह उभर गए। लेकिन अवसरों और सुविधाओं के अभाव में उससे आगे नहीं बढ़ सके। हिमा दास उन्हीं में से एक हैं, जिन्होंने बहुत कम समय में यह साबित कर दिया कि अगर वक्त पर प्रतिभाओं की पहचान हो, उन्हें मौका दिया जाए, थोड़ी सुविधा मिल जाए तो वे दुनिया में देश का नाम रोशन कर सकती हैं।

-अनिल नरेन्द्र

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