Wednesday, 3 July 2019

डॉक्टर्स डे या डर डे? डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा बंद हो

सोमवार यानि पहली जुलाई डॉक्टर दिवस था। हर साल इस दिन को खास बनाने वाले डॉक्टर विभिन्न रोगों के प्रति लोगों को जागरूक करते थे, लेकिन इस बार डॉक्टर अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। अस्पतालों में लगातार बढ़ रही हिंसा उनके लिए नासूर बनती जा रही है। सोमवार को ही दिल्ली में एमसीडी के बड़े अस्पताल हिन्दुराव में शनिवार देर रात एक महिला मरीज की मौत पर उसके परिजन आग-बबूला हो गए। परिजनों ने ऑन ड्यूटी दो डॉक्टरों की जमकर पिटाई की, जबकि अन्य डॉक्टरों के साथ हाथापाई भी की। इस घटना में एक डॉक्टर के सिर पर गंभीर चोट आई है। जबकि दूसरे के कपड़े फाड़ दिए गए थे, उसे भी कई जगह चोटें आईं। घटना के खिलाफ रात में ही एकजुट डॉक्टरों ने प्रबंधन के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी। रविवार सुबह माहौल को गरमाते देख प्रबंधन की शिकायत पर दिल्ली पुलिस ने आरोपियों पर मामला दर्ज कर कइयों को हिरासत में लिया। उधर पूरे मामले की जांच के लिए एनडीएमसी ने कमेटी गठित कर दी है। रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के डॉ. मनीष जैन ने बताया कि शनिवार देर रात राजबाला नामक महिला मरीज को आपातकालीन विभाग लाया गया था। महिला गुर्दा संक्रमण की परेशानी से जूझ रही थी। उनकी हालत गंभीर थी। रात करीब एक बजकर छह मिनट पर उसकी मौत हो गई और तीमारदार ने फोन कर 30-40 लोगों को अस्पताल में बुला लिया। डॉक्टरों का कहना है कि मरीज के शरीर में संक्रमण पूरी तरह से फैल चुका था। जांच में उनका गुर्दा फेल हो चुका था। क्रिएटिनिन बढ़ा हुआ था और मरीज एनीमिया ग्रस्त भी थी। उसके बचने की संभावना लगभग शून्य थी। हिन्दुराव अस्पताल में डॉक्टर्स से पिटाई की घटना के विरोध में रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन की संस्था फेडरेशन ऑफ रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (फोडो) और यूनाइटेड रेजीडेंट एवं डॉक्टर्स एसोसिएशन ने डॉक्टर्स डे नहीं मनाया। वहीं एम्स ने भी हिन्दुराव अस्पताल की रेजीडेंट डॉक्टरों का समर्थन करने की बात कही है। एम्स के रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष अमरिन्दर सिंह मल्ली ने कहा कि हम डॉक्टर्स से मारपीट करने की घटना का विरोध करते हैं। हम अस्पताल की रेजीडेंट एसोसिएशन के साथ हैं। पिछले कुछ समय से डॉक्टरों से मारपीट का सिलसिला बढ़ता जा रहा है। दवाइयों की कमी, बेसिक सुविधाओं के अभाव से मरीजों का जब इलाज उनके तसल्लीबख्श नहीं होता तो वह इसके लिए डॉक्टर को जिम्मेदार मानते हैं और पीटने लगते हैं। हाल ही में कोलकाता में डॉक्टरों ने हिंसा के खिलाफ प्रदर्शन व हड़ताल की थी। डॉक्टरों को पूरी सुरक्षा मिलनी चाहिए। सरकार को डॉक्टरों की सुरक्षा हेतु कानून बनाना चाहिए। एक जुलाई यानि डॉक्टर्स डे। कहने को तो यह दिन डॉक्टरों को समर्पित है लेकिन कोई भी डॉक्टर मौजूदा हालात में खुश नहीं है। देशभर में डॉक्टरों के प्रति हिंसा बढ़ती जा रही है और इससे डॉक्टर डरे हुए हैं। ऐसी घटनाओं को देखते हुए आने वाले समय में शायद ही कोई माता-पिता अपने बच्चों को डॉक्टर बनाने की सोचेंगे। अस्पतालों में इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी और सरकार की लापरवाही का हर्जाना डॉक्टरों को भुगतना पड़ता है। एक समय था कि डॉक्टरों को भगवान का दर्जा दिया जाता था।

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