Wednesday 12 March 2014

लोकसभा चुनावी अखाड़ाः यूपी में लड़ाई भाजपा बनाम बसपा है

उत्तर पदेश न केवल देश का सबसे बड़ा सूबा ही है बल्कि हमारे देश की सियासत में खास दर्जा रखता है क्योंकि यहां से सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सांसद आते हैं। इसके मद्देनजर सभी राजनीतिक दल यूपी में अपनी पूरी ताकत झोंक देते हैं। यूपी में इस बार के लोकसभा चुनाव में मुख्य प्लेयर हैं भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा। सारा चुनाव यहीं इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमेगा। टीवी न्यूज चैनल सीएनएन-आईबीएन की ओर से सीएसडीएस के सहयोग से सर्वे करवाया है। इसके मुताबिक अगर अभी लोकसभा चुनाव हों तो यूपी में भाजपा को कुल 80 में से 41-49 सीटें हासिल हो सकती हैं। सर्वे के मुताबिक 36 फीसदी लोगों ने भाजपा को वोट देने की इच्छा जताई है जबकि 22 फीसदी लोगों ने सपा को वोट देने की बात की है। कांग्रेस के पति 13 फीसदी लोगों ने ही रुचि दिखाई और बसपा को 17 फीसदी वोट मिलने की बात कही गई। वहीं आम आदमी पाटी को सिर्फ पांच फीसदी वोट मिलने की संभावना है। सर्वे के नतीजे बताते हैं कि यूपी में भाजपा को 62 फीसदी वोट ब्राह्मण, 54 फीसदी राजपूत और 45 फीसदी वोट जाट समुदाय के मिल सकते हैं। उत्तर पदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी स्वीकार किया है कि राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण उनके राज्य में भाजपा की पहुंच कुछ हद तक विस्तारित हुई है लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि सूबे में मोदी लहर जैसा कुछ भी नहीं समाजवादी पाटी का हाल खराब है। खुद समाजवादी पाटी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने एक बार फिर अखिलेश सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने मुख्यमंत्री के सरकारी आवास पर आयोजित बिजली परियोजनाओं के शिलान्यास व लोकार्पण कार्यकम में मंच पर बैठे मंत्रियों से कहा कि कुछ मंत्री चुनाव में धोखेबाजी कर रहे हैं। उन्होंने चेताया कि चुनाव में मुझे धोखा दिया तो न मंत्री रहेंगे और न ही विधायकी की टिकट मिलेगी। मुख्यमंत्री को भी उलहाना दिया कि वह और उनकी सरकार चापलूसों से घिरी है। चापलूसी पसंद लोग धोखा खाते हैं। तल्ख लहजे में उन्होंने कहा कि पाटी को कमजोर कर रही है सरकार। अखिलेश की टिप्पणी थी कि नेता जी (मुलायम) कब पाटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और कब पिता हो जाते हैं, मैं समझ नहीं पाता हूं। लोकसभा चुनाव की चौसर पर एक बार फिर बहुजन समाज पाटी का सियासी सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूला दांव पर लगा है। वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में मेरठ, सहारनपुर और मुरादाबाद मंडलों की 14 सीटों में से 5 सीटों पर जीत दर्ज कर बसपा सांसद पहुंचे थे। इस बार बसपा नेतृत्व ने इस क्षेत्र में मुस्लिमों, जाटों, गुर्जरों पर ज्यादा भरोसा किया है। बसपा सुपीमो मायावती को उत्तर पदेश के अल्पसंख्यकों पर पूरा भरोसा है। बहन जी का कहना है कि उनके बल पर बसपा नई ताकत के रूप में उभरेगी जो केंद्र की सत्ता में शक्ति संतुलन बनेगी। तीसरे मोर्चे को पहले से ही खारिज कर चुकीं बहन जी का दावा है कि उनके बगैर केंद्र की सरकार नहीं बनेगी। अल्पसंख्यक सपा के बहकावे में नहीं आने वाले। मुजफ्फरनगर और शामली के दंगों का जो मंजर था, ऐसे में भला वे अपनी तबाही को कैसे भूल सकते हैं? सपा को इसका खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा। मोदी व मुलायम की लगातार कई रैलियों पर भड़कते हुए मायावती ने कहा कि पदेश को दंगों से तबाह करने वाले मुलायम और गुजरात में कत्लेआम कराने वाले मोदी एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं। मायावती ने कहा कि मोदी को रोकने के लिए उनकी पाटी पूरी ताकत झोंक देंगी। जहां तक कांग्रेस का सवाल है भ्रष्टाचार और महंगाई के मुद्दे पर घिरी कांग्रेस को चुनावों से ऐन पहले कई झटके लगे हैं। पाटी से असंतुष्टों का पलायन जारी है। गुरुवार को पुरंदेश्वरी के भाजपा में जाने के बाद शुकवार को एक बार फिर कांग्रेस को जगदंबिका पाल के रूप में तेज झटका लगा। पाल अकेले जाने वालों में से नहीं हैं, कई दूसरे नेता जहां पहले ही कांग्रेस को बाय-बाय कह चुके हैं वहीं कई बाहर जाने के मूड में हैं पर कांग्रेस-रालोद गठजोड़ पश्चिमी उत्तर पदेश में भाजपा को तगड़ी चुनौती देता दिख रहा है। कांग्रेस और अजीत सिंह के राष्ट्रीय लोकदल में समझौते के तहत सूबे की कुल 80 सीटों में से फिलहाल आठ पर रालोद चुनाव लड़ेगा। कांग्रेस सूत्रों के अनुसार बागपत, कैराना, बिजनौर, नगीना, अमरोहा, हाथरस, मथुरा और बुलंदशहर, अजीत के रालोद के लिए छोड़ी है। मुजफ्फरनगर दंगों के बाद बने माहौल में भाजपा को ध्रुवीकरण का लाभ होता दिख रहा था परंतु संपग सरकार ने जाट आरक्षण का दांव चल दिया। वर्ष 2009 में अकेले चुनाव लड़ी कांग्रेस पश्चिम की 27 सीटों में से दो पर जीती थी और चार पर उपविजेता थी। उधर रालोद से मिलकर लड़े चुनाव  में भाजपा पांच सीटों पर विजयी हुई जबकि सपा व बसपा आगे रही थीं। इस मर्तबा रालोद-कांग्रेस गठबंधन में दम पड़ा तो भाजपा को नुकसान हो सकता है। गत चुनाव में रालोद अपनी कमजोर स्थिति में भी दो फीसदी मत हासिल करने में कामयाब रहा था। इतने कम वोट पाने के बावजूद रालोद को 5 संसदीय क्षेत्रों में भाजपा गठबंधन के सहारे ही सफलता मिली थी। जहां रालोद-कांग्रेस की सारी उम्मीद जाट आरक्षण पर है वहीं भाजपा व बसपा जाट नेताओं पर अपनी पाटी की खातिर कुछ करके दिखाने का संकट जरूर आ गया है। मुख्य रूप से मुकाबला भाजपा बनाम बसपा है।

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