Friday 14 March 2014

सरसंघ चालक मोहन भागवत ने एक तीर से कई निशाने साधे

बेंगलुरु में आयोजित पतिनिधिसभा को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने जो कुछ कहा उसके कई
मतलब निकलते हैं। उन्होंने दरअसल एक तीर से कई निशाने साधे। इससे पहले कि हम बताएं कि उन्होंने क्या कहा और किसको कहा यह समझना जरूरी है कि सरसंघ चालक ने आखिर यह बातें कहीं क्योंकौन सी चिंता उन्हें सता रही है? आज सियासी स्थिति यह है कि पूरे देश में नरेंद्र मोदी की लहर है। भारतीय जनता पाटी को दिल्ली की गद्दी नजर आने लगी है पर जैसे ही मोदी का ग्राफ बढ़ता है भाजपा के दूसरे नेता कोई कोई विवाद खड़ा कर देते हैं और जो ग्राफ बढ़ता है वह फिर गिर जाता है। भाजपा के सामने गोल पोस्ट है और गोल मारकर 2014 लोकसभा चुनाव जीतने की पोजिशन में है। मोहन भागवत को चिंता यह है कि कहीं अंतिम क्षणों में टीम फाउल करके दूसरे को पेनेल्टी थमा दे और अंतिम क्षणों में जीता मैच हार जाए। 2004 का इंडिया शाइनिंग का उदाहरण आज भी ताजा है जब जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास या जिसे ओवर कांफिडेंस कहते हैं, भाजपा चुनाव हार गई। कहीं इतिहास अपने आपको दोहरा दे इसी की चेतावनी भागवत दे रहे हैं। उनका यह कहना है कि ज्यादा नमो-नमो करना जपो। मोहन भागवत ने कहा कि आरएसएस राजनीति में नहीं हैं। हमारा काम नमो-नमो करना नहीं है। हमें अपने लक्ष्यों के लिए काम करना है, इसलिए आप मर्यादा में रहकर काम करें और संघ के असूलों से खिलवाड़ करें। भागवत ने साफ कर दिया कि हमें भी व्यक्ति विशेष के पचार-पसार से दूर रहना चाहिए। मोहन भागवत ने एक तीर से कई निशाने साधे। जिन पर निशाना साधा वह संयोगवश मंच पर उस समय मौजूद थे। मैं भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह की बात कर रहा हूं और संघ-भाजपा में तालमेल करने वाले रामलाल की बात कर रहा हूं। वाराणसी और लखनऊ सीट पर छिड़े विवाद से भाजपा की स्थिति खराब हुई है। जनता को यह कहने का मौका मिल गया कि भाजपा के तो अंदरूनी झगड़े ही खत्म नहीं होते यह देश क्या चलाएंगे? सारे विवाद की जड़ हैं राजनाथ सिंह जो गाजियाबाद से भागना चाहते हैं और लखनऊ से चुनाव लड़ना चाहते हैं। लखनऊ का विशेष महत्व है। यही से अटल बिहारी वाजपेयी चुनाव जीते थे। यहां से मोदी के चुनाव लड़ने से यूपी और पूरे पूर्वांचल को मिलाकर 28-30 सीटों पर असर पड़ता है इसीलिए मोदी को यहां से लड़ने की सलाह दी गई पर चूंकि राजनाथ खुद यहां से लड़ना चाहते हैं इसलिए उन्होंने मोदी को यह समझाया कि वाराणसी से लड़ लें। वाराणसी से डा. मुरली मनोहर जोशी चुनाव जीते थे और लखनऊ से लालजी टंडन। यह दोनों दिग्गज अपनी सीटें छोड़ने को तैयार नहीं। मोदी की खातिर तो छोड़ भी सकते हैं पर राजनाथ की खातिर शायद ही? सो पहला संदेश तो राजनाथ सिंह के लिए था कि आप अपनी चालबाजियों से बाज जाओ और जीती हुई बाजी हरवा देना। दूसरा संदेश रामलाल के लिए था कि आप संघ का नाम लेकर भाजपा में अमुक व्यक्ति की पैरवी करें। आप संघ का नाम लेकर अपनी राजनीति करने से बाज आएं। तीसरा संदेश खुद नरेंद्र मोदी के लिए था। भागवत ने मोदी को यह बताने की कोशिश की कि आप पाटी से बड़े नहीं हो। आज स्थिति क्या है? आज मोदी भारतीय जनता पाटी से बहुत ऊपर हो चुके हैं। अब संघ को यह डर सता रहा है कि मोदी किसी के भी कंट्रोल से बाहर हो रहे हैं। मोदी ने गुजरात में यह दिखा दिया कि उन्हे तो आरएसएस की परवाह है और ही संघ की संस्थाओं की। विश्व हिंदू परिषद को तो ठिकाने ही लगा दिया। डा. पवीण तोगड़िया जैसे दिग्गज को घर बिठा दिया है। संघ को डर है कि कल को मोदी पर नियंत्रण कौन करेगा, कहीं वह इतने बेकाबू हो जाएं कि सभी के कंट्रोल से बाहर हो जाएं? एक संदेश देश के अल्पसंख्यकों के लिए भी था कि संघ तो इतना कट्टर था और ही नमो-नमो जपने वाला। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं (श्री एलके आडवाणी, डा. मुरली मनोहर जोशी) को जिस ढंग से नजरअंदाज किया जा रहा है उससे भी मोहन भागवत परेशान हैं, इसलिए उन्होंने राजनाथ-मोदी की जोड़ी को यह समझाने की कोशिश की है कि सबको साथ लेकर चलोगे तो बेहतर होगा। अंत में सरसंघ चालक ने भाजपा को यह बताने का पयास किया कि आप
हमारे चंगुल से नहीं निकल सकते। जितना मजी फड़फड़ा लो, जितना मजी इतरा लो रहोगे संघ के चंगुल में ही। जल्द पता चल जाएगा कि भागवत के सुझावों का क्या असर हुआ?


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