Friday 28 March 2014

पंजाब का सबसे रोचक मुकाबलाः अरुण जेटली बनाम कैप्टन अमरिंदर सिंह

भारतीय जनता पाटी के राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली आए तो थे अमृतसर को भाजपा का एक मजबूत और सुरक्षित मिला उम्मीदवार मानकर लेकिन कांग्रेस ने उनके सामने कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे मजबूत उम्मीदवार को मैदान में उतारकर डगर आसान रहने नहीं दी। अगर डगर मुश्किल जेटली की हुई है तो कैप्टन अमरिंदर सिंह का भी अब भविष्य दांव पर लग गया है। पहले कैप्टन ने अमृतसर से चुनाव लड़ने से मना कर दिया था पर कांग्रेस आलाकमान (सोनिया और राहुल) के आदेश के बाद उनको मैदान में कूदना पड़ा। दरअसल अमृतसर सीट से कांग्रेस को जेटली के खिलाफ एक मजबूत और कद्दावर उम्मीदवार की तलाश थी तथा इस संबंध में हाईकमान ने कैप्टन को बठिंडा या अमृतसर से चुनाव लड़ने को कहा था लेकिन उन्होंने इससे यह कहते हुए इंकार कर दिया कि वह इन्हीं सीटों तक बंध कर रह जाएंगे तथा पटियाला से चुनाव लड़ रही अपनी पत्नी और विदेश राज्य मंत्री परनीत कौर के अलावा राज्य में पाटी के लिए चुनाव पचार नहीं कर सकेंगे। बताया जाता है कि राज्य में पाटी की स्थिति देखते हुए हाईकमान ने कैप्टन को अमृतसर सीट से चुनाव लड़ने के लिए मना लिया। कैप्टन की उम्मीदवारी की घोषणा होते ही अमृतसर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर दौड़ गई। पाटी के स्थानीय नेता जुगल किशोर शर्मा ने कहा कि कैप्टन की उम्मीदवारी की घोषणा के बाद जिला इकाई में अंदरूनी कलह भी समाप्त हो गई तथा सभी एकजुट होकर उन्हें भारी अंतर से विजयी बनाने में जुट जाएंगे। अमृतसर सीट के 1957 से 2009 तक के लोकसभा चुनाव परिणामों पर नजर डालें तो यहां कांग्रेस का ही दबदबा रहा है। वर्ष 1951, 1957, 1962, 1971, 1985, 1992, 1996, 1999 के चुनावों में यहां से आठ बार कांग्रेस विजयी रही जबकि 1998, 2004 और 2009 में यहां से भारतीय जनता पाटी तथा वर्ष 1967 और 1977 के दो अन्य चुनावों में यहां से अन्य दल विजयी रहे। अमृतसर की सियासत में अचानक बदले परिदृश्य ने एकाएक आए परिवर्तन में अरुण जेटली की राह मुश्किल बना दी है। एक तो यहां भी पदेश भाजपा में गुटबाजी चल रही क्योंकि एक ओर पदेश भाजपा अध्यक्ष कमल शर्मा स्वयं अमृतसर सीट के दावेदार थे। बादल भी स्वयं अमृतसर सीट के दावेदार थे। बादल भी चाहते थे कि कमल शर्मा इस क्षेत्र से पत्याशी हों। यही कारण है कि इस सीट पर नवजोत सिंह सिद्धू को अलग किया गया परंतु कमल शर्मा की बजाय भाजपा हाईकमान ने यहां जेटली को भेज दिया। पदेश भाजपा की गुटबाजी का पभाव अमृतसर सीट पर अवश्य पड़ेगा। यह और बात है कि जेटली जैसे राष्ट्रीय स्तर के नेता के सामने आने से कोई खुलकर विरोध नहीं कर पाए। अमृतसर संसदीय सीट पर गौर करें तो यहां हिंदू-सिखों का आंकड़ा औसत 65-35 के लगभग है। नौ में से चार शहरी विधानसभा सीटों को छोड़कर शेष पांच विधानसभा क्षेत्र ग्रामीण हैं। सिख बहुल क्षेत्रों में जेटली को अकाली मतों पर निर्भर होना पड़ेगा क्योंकि शहरों में भाजपा का आधार तो है परंतु गठबंधन सरकार की शहर विरोधी नीतियों के कारण शहरी मतदाता भाजपा से कटा हुआ है।  अजनाला विधानसभा क्षेत्र में ईसाई संपदाय के कुछ वोट हैं जो हमेशा ही कांग्रेस और अकालियों के मध्य बंटता रहा है। सिद्धू के समर्थक जेटली को टिकट देने के फैसले से नाराज हैं। इसका खामियाजा भी जेटली को भुगतना पड़ेगा। दूसरी ओर कैप्टन अमरिंदर कांग्रेसियों में लोकपिय हैं और वह राज्य के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। अमृतसर के लगभग सभी पूर्व और वर्तमान कांग्रेसी विधायक उनके खेमे में हैं। अमृतसर बार एसोसिएशन के आमंत्रण पर सोमवार को वकीलों का समर्थन मांगने बार रूम पहुंचे। अरुण जेटली को कांग्रेस समर्थक वकीलें के विरोध का सामना करना पड़ा। इतना ही नहीं उनके सामने ही उनके विरोधियों ने कांग्रेस और कैप्टन अमरिंदर सिंह जिंदाबाद के नारे लगाए। अमरिंदर सिंह ने जेटली पर उनकी मजबूर और मजबूत नेता वाली टिप्पणी को लेकर निशाना साधते हुए कहा कि मजबूत नेता पधानमंत्री बनने की अपनी गुप्त महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सीट नहीं मांगते। जवाबी हमला करते हुए अरुण जेटली ने उन्हें अमृतसर में बाहरी बताने के लिए कैप्टन पर हमला बालते हुए सवाल किया कि उनकी पाटी पमुख सोनिया गांधी किस पदेश से आती हैं? जेटली ने कहा कि पंजाब में मेरी पैतृक जड़ें होने के बाद कैप्टन साहिब ने मुझे बाहरी और छद्म पंजाबी करार दिया। कृपया वह मुझे यह बताएंगे कि श्रीमती सोनिया गांधी भारत के किस  पदेश की हैं

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