Wednesday 5 March 2014

राहुल के ड्रीम बिलों पर राष्ट्रपति की असहमति

हम कांग्रेस पाटी की ह़ड़बड़ाहट को समझ सकते हैं। वह लोकसभा चुनाव से पहले अपने तरकश से सारे तीर चलाना चाहती है क्योंकि उसे जो रिपोर्ट मिल रही है वह उत्साहवर्धक नहीं है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को निराशा मिलने वाली है। जाते-जाते यूपीए सरकार ने दोनों हाथों से रेवड़ियां बांटनी शुरू कर दी हैं। सौगातों की झड़ी लगा दी है। जो कुछ भी वह दे सकती थी उसने दे दिया। संभवत किसी भी समय चुनावी तारीखों की घोषणा होने वाली है और उसी के साथ आचार-संहिता लग जाएगी। यूपीए सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों का महंगाई भत्ता (डीए) मौजूदा 90 पतिशत से बढ़ाकर 100 पतिशत कर दिया, कर्मचारी निधि संगठन की कर्मचारी पेंशन स्कीम-95 के तहत न्यूनतम पेंशन राशि एक हजार रुपए कर दी। लोकसभा चुनाव ल़ड़ने वाले उम्मीदवारों के चुनावी खर्च को ब़ढ़ाकर 70 लाख कर दिया गया  पर उपाध्यक्ष राहुल गांधी के ड्रीम बिलों में रुकावट आ गई। राहुल गांधी के पसंदीदा बताए जा रहे सात विधेयकों को अध्यादेश के जरिए पभावी बनाने का सारा प्लान महामहिम राष्ट्रपति पणब दा ने फेल कर दिया। कैबिनेट ने रविवार को इन विधेयकों को अध्यादेश के जरिए कानून बनाने की योजना को ड्राप कर दिया यह इसलिए ड्राप करना पड़ा, रद्द करना पड़ा क्योंकि राष्ट्रपति पणव मुखजी ने इस पर हस्ताक्षर करने से साफ मना कर दिया था सूत्रों के मुताबिक राष्ट्रपति पणब मुखजी ने कानून मंत्री कपिल सिब्बल और गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे के साथ कई मुलाकात के दौरान अपना पक्ष साफ कर दिया। उन्होंने सरकार के कार्यकाल के अंतिम चरण में इतने अहम बिल को अध्यादेश के जरिए लाने को लेकर अपनी आशंकाएं जताते हुए इनके मसौदों में कमियों की ओर भी इनको ध्यान दिलाया। वैसे भी पहले हुई कैबिनेट की बैठक में भी शरद पवार और कपिल सिब्बल जैसे मंत्री भी मौजूदा स्वरूप में अध्यादेश पर अपनी चिंता व एतराज जता चुके थे। राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 123 के तहत अध्यादेश लाने की तत्काल जरूरत पर सवाल उठाए। राष्ट्रपति का विचार था कि ऐसे कानून संसद में चर्चा के बाद ही बनाए जाने चाहिए। वैसे इन अध्यादेशों की जरूरत पर कई कानूनविदों ने पहले ही सवाल उठाए थे। वहीं विपक्षी दल पहले से ही अध्यादेश लाने का विरोध कर रहे थे। दरअसल यूपीए सरकार यह नहीं बता रही है कि कांग्रेस और मौजूदा मनमोहन सरकार देश को यह दिखाना चाहती थी कि वह भ्रष्टाचार से लड़ने को लेकर पतिबद्ध है, बल्कि यह भी जाहिर करना चाहती थी कि इस ल़ड़ाई की अगुवाई उसके उपाध्यक्ष राहुल गांधी कर रहे हैं। यही कारण है कि न्यायिक जवाबदेही और समय पर सेवाएं देने संबंधी विधेयकों के साथ पांच विधेयकों को राहुल गांधी की पाथमिकता सूची में शीर्ष पर बताया जा रहा है। निसंदेह अगर ये पांच विधेयक पारित हो जाते तो भ्रष्टाचार से ल़ड़ने में आसानी होती और इस बुराई के खिलाफ एक माहौल भी तैयार होता। यह सभी विधेयक जनहित के हैं। मैं समझता हूं कि यहां पर यूपीए सरकार और कांग्रेस पाटी से एक बहुत भारी चूक हो गई। इन्हें लोकपाल बिल के साथ ही संसद से पारित करा लिया जाना चाहिए था क्योंकि यह सब उसी से संबंधित हैं। तब सरकार और विपक्ष में लोकपाल बिल को लेकर सहमति भी बढ़ी थी। एक दुखद पहलू यह भी है कि यूपीए सरकार जिस तरह से रेवड़ियां बांट रही है उससे हर साल हजारों करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ सरकारी खजाने पर पड़ेगा जिससे अगली सरकार को निपटने में मुश्किल आएगी। शायद कांग्रेस ने सोचा कि हम तो डूब रहे हैं तुम्हे भी साथ ले लेंगे सनम।

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