Saturday, 29 March 2014

वक्त बताएगा कि नई दिल्ली व पूवी दिल्ली संसदीय सीट पर कौन हावी होता है

दिल्ली की सभी सातों लोकसभा सीटों के आखिरी दिन छह उम्मीदवारों ने अपने नाम वापस ले लिए, इस तरह नाम वापसी के बाद अब कुल 150 उम्मीदवार चुनाव मैदान में रह गए हैं। इनमें सबसे अधिक चांदनी चौक सीट पर (25) व सबसे कम 14 उम्मीदवार नार्थ-ईस्ट पर रह गए हैं। दूसरे चरण में दिल्ली में होने वाले मतदान के लिए अब केवल 150 उमीदवार चुनाव मैदान में हैं। नई दिल्ली संसदीय सीट सिर्फ दिल्ली के लिए ही नहीं देश के लिए हमेशा से वीवीआईपी सीट रही है। इस सीट की महत्ता इसी बात से तय हो जाती है कि अटल, आडवाणी और राजेश खन्ना जैसे दिग्गज यहां से सांसद रह चुके हैं। नई दिल्ली संसदीय सीट पर एक बार फिर देश की नजरें टिकी हुई हैं। इससे पहले कि मैं यहां से पमुख उम्मीदवारों के बारे में बताउंढ, यह बताना जरूरी है कि नई दिल्ली संसदीय सीट पर सरकारी कर्मचारी एक बड़ा फेक्टर है। लोकसभा सीट पर हार या जीत तय करने में सरकारी कर्मचारियों का  रुख सबसे बड़ा फेक्टर साबित होने वाला है। क्षेत्र में वैसे तो दिल्ली की दूसरी 6 लोकसभा सीटों की तुलना में सबसे कम वोटर हैं लेकिन उनमें सरकारी कर्मचारियों का अनुपात ज्यादा है। नई दिल्ली संसदीय सीट के कुल 14.89 लाख वोटरों में  2.5 लाख सरकारी कर्मचारी हैं। ऐसे में इनका रुख एक बड़ा फेक्टर साबित होगा। इन मतदाताओं के लिए भाजपा और आम आदमी पाटी के पत्याशी नए हैं वहीं कांग्रेस के अजय माकन यहां से लगातार दो बार सांसद रह चुके हैं। हाल के दिल्ली विधानसभा चुनाव में यहीं से अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित को पटखनी दी थी। क्षेत्र के अंदर आने वाली 10 में से 7 विधानसभा सीटों पर आप के उम्मीदवार जीते थे। उसी की हवा का लाभ उठाने के लिए इस संसदीय सीट पर आशीष खेतान को उतारा है। कांग्रेस ने यहां मौजूदा सांसद अजय माकन पर विश्वास जताया है, वहीं भाजपा ने मीनाक्षी लेखी को अपना उम्मीदवार बनाया है। पिछले दो लोकसभा चुनाव में अजय माकन ने बाजी मारी थी। इस बार वह हैट्रिक लगाने की तलाश में हैं। त्रिकोणीय मुकाबले में मेरी राय में तो अजय माकन सीट निकाल सकते हैं। अब बात करते हैं दूसरी बहुचर्चित पूवी दिल्ली लोकसभा सीट की। कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस की झोली में खेलती रही पूवी दिल्ली लोकसभा सीट पर इस बार मुकाबला त्रिकोणीय है। आम आदमी पाटी के उम्मीदवार राष्ट्रपति महात्मा गांधी के पौत्र राजमोहन गांधी के यहां से चुनाव लड़ने से देश-दुनिया की नजरें इस संसदीय सीट पर टिकी हुई हैं। मौजूदा सांसद व शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित हैट्रिक लगाने के चक्कर में हैं पर यह राह आसान नहीं। इस बार उनका मुकाबला गांधी-गिरी यानी आप के पत्याशी राजमोहन गांधी और भाजपा के महेश गिरी से है। पूवी दिल्ली किसी खास पाटी का गढ़ नहीं रहा है। 1967 में अस्तित्व में आने के बाद से अब तक हुए  12 लोकसभा चुनावों में छह बार कांग्रेस और इतनी ही बार भाजपा व भारतीय लोकदल व भारतीय जनसंघ की जीत हुई है। इस क्षेत्र में 16 लाख से ज्यादा मतदाता हैं। अब देखना यह है कि भाजपा और कांग्रेस के हाथों में रहने वाली यह सीट इस बार अपने गौरव को बचाकर रख पाती है या नहीं ? 1980 से इस सीट की खासियत यह रही है कि जो यहां से एक बार जीता उसे यहां के लोगों ने दोबारा काम करने का मौका जरूर दिया है। 1980 में कांग्रेस के एचकेएल भगत 1980 से 1991 तक यहां के सांसद रहे। इसके बाद बारी आई भाजपा की 1991 में पूवी दिल्ली के लोगों ने भाजपा के नेता बीएल शर्मा `पेम' को संसद का रास्ता दिखाया। फिर क्या था, वह भी 1991 से 97 तक दो बार संसद पहुंचे। उसके बाद भाजपा के लाल बिहारी तिवारी 1997 से 2004 तीन बार सांसद चुने गए। पूवी दिल्ली की दस विधानसभा सीटों में से सबसे ज्यादा 5 सीटें आम आदमी पाटी के पास हैं। दूसरे नंबर पर भाजपा तीन सीटों के साथ है तो कुल 70 सीटों में से 8 सीटों पर सिमट गई कांग्रेस को दो सीटें ही मिल पाईं। पूवी दिल्ली के जातीय समीकरण पर एक नजर डालें तो मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 15 फीसदी से कुछ ज्यादा है और ओखला, कृष्णानगर, गांधीनगर और शाहदरा में इनकी उपस्थिति काफी मजबूत है। इसके बाद दूसरे नंबर पर दलितों की संख्या हैं जो लगभग 14.82 फीसदी है जबकि पंजाबी थोड़ा ही कम है यानी 14.35 फीसद। संदीप दीक्षित कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की टीम का हिस्सा है और वह कांग्रेस के पवक्ता भी हैं। क्षेत्र से जुड़े रहे हैं और काम भी किया है। भाजपा पत्याशी महेश गिरी रविशंकर की आर्ट ऑफ लिविंग के सदस्य हैं। वैसे तो राजनीति में नए हैं लेकिन क्षेत्र में वह पिछले दो साल से समाज सेवा के माध्यम से जुड़े हुए हैं। आप उम्मीदवार राज मोहन गांधी  पहले भी चुनाव में एक बार भाग्य आजमा चुके हैं। जब उन्होंने 1989 में अमेठी से राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था और हार गए थे। राजमोहन भी अपनी नैया केजरीवाल के सहारे पार करना चाहते हैं। भाजपा की सबसे बड़ी आस मोदी की लोकपियता से है। देखें किस करवट ऊंट बैठता है? बहुजन समाज पाटी के पत्याशी शकील सैफी भी मैदान में हैं।

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