Friday 7 March 2014

तो बज गया लोकसभा दंगल का बिगुल



लोकसभा 2014 की चुनावी पकिया आरम्भ हो गई है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनावों की तारीखों की घोषणा हो गई है। वैसे तो नेताओं के दौरों, ताबड़तोड़ हो रहीं रैलियों और बढ़ते राजनीतिक आरोप-पत्यारोप को देखकर पिछले कुछ दिनों से देश में चुनावी माहौल बनने का एहसास हो रहा था लेकिन अब निर्वाचन आयोग ने औपचारिक तौर पर लोकसभा चुनावों का ऐलान कर लोकतंत्र के इस महापर्व का बिगुल बजा दिया है। पहली बार चुनाव नौ चरणों में होने जा रहे हैं। 16वीं लोकसभा के लिए चुनाव 7 अपैल से शुरू होकर 12 मई को सम्पन्न होंगे। 16वीं लोकसभा के लिए वोटों की गिनती भी 16 मई को होगी। इसके साथ ही आंध्र पदेश, उड़ीसा और सिक्किम के विधानसभा चुनाव भी होंगे। यह पहली बार है कि देश का कोई आम चुनाव नौ चरणों में कराया जा रहा है। 2009 में लोकसभा चुनाव पांच चरणों में सम्पन्न हुए थे। हालांकि पिछली बार चुनाव पकिया सम्पन्न होने में जहां 75 दिन लगे थे, वहीं इस बार यह कवायद 72 दिनों में पूरी हो जाएगी। इतने अधिक टुकड़ों में मतदान कराए जाने को लेकर मुख्य चुनाव आयुक्त वीएस संपत की कैफीयत है कि वोटिंग की तारीखों का निर्धारण मानसून, त्यौहारों, परीक्षाओं को देखते हुए तथा सियासी पार्टियों के सुझावों के अनुरूप किया गया है। 16वीं लोकसभा के लिए होने जा रहे यह चुनाव भारत के लिए तो बेहद महत्वपूर्ण है ही, वे दुनिया के लिए भी कौतूहल का विषय बनने के साथ सीख देने वाले भी होंगे। तमाम देशों के लिए यह अकल्पनीय है कि 81 करोड़ से ज्यादा मतदाता नई सरकार का चयन करने जा रहे हैं। कुछ देशों में जो सत्ता परिवर्तन खूनी संघर्ष और बुलेट से होता है, भारत में यह बैलट से होता है। यही हमारे देश के लोकतंत्र की सबसे बड़ी उपलब्धि है। अपने किस्म की अनूठी और हैरान करने वाली विविधता का पतिनिधित्व करने वाला यह विशाल मतदाता समूह एक ही लक्ष्य के लिए जुटेगा और वह होगा अपनी पसंद के उम्मीदवारों के जरिए केन्द्राrय सत्ता का चयन। लोकसभा चुनावों में पहली बार नोटा का विकल्प होगा। पिछले दिनों 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान पहली बार इसका विकल्प रखा गया था। गौरतलब है कि इस बार करीब 81.4 करोड़ वोटर अपने मत का इस्तेमाल करेंगे। इस तरह इस बार 10 करोड़ नए वोटर हैं। इनमें बड़ी संख्या युवाओं की है जो पहली बार अपने मताधिकार का पयोग करेंगे। इसमें कोई दो राय नहीं कि आम चुनावों में न सिर्फ राजनीतिक बल्कि बदलते सामाजिक-आर्थिक हालात की भी झलक मिलती है। इस बार सोशल मीडिया का बोलबाला है। राजनीतिक दलों में इस पर पचार की होड़ सी लगी हुई है। यह भी देखने को मिल रहा है कि इस चुनाव में पोस्टर-बैनर, होर्डिंग पर इतना ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा। यह अच्छी बात है कि हमारे चुनाव खर्चे में कमी आएगी। एक खास बात इस चुनाव में देखने को मिल रही है कि इस बार चुनाव व्यक्ति केन्द्रित हो रहा है। पाटी की बजाय इसके पीएम कैंडिडेट की बात ज्यादा हो रही है। भाजपा ने नरेन्द्र मोदी को बहुत पहले ही पीएम उम्मीदवार घोषित करके लीड ले ली है। मोदी अब तक 250 से ज्यादा चुनावी सभाएं कर चुके हैं। कांग्रेस ने अभी तक राहुल गांधी को पधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है पर चुनाव तो उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है और यह मान लिया गया है कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो राहुल ही पीएम होंगे। चुनाव की घोषणा होते ही अरविंद केजरीवाल और उनके समर्थकों ने हिंसा का सहारा लेकर यह संकेत दे दिया है कि इस बार चुनाव में हिंसा होगी। हालांकि तीसरा मोर्चा भी बना है पर उसे अभी तक किसी ने गंभीरता से नहीं लिया है। एक स्टिंग आपरेशन में चुनाव सर्वेक्षणों पर जिस तरह से सवाल उठे हैं उससे भी कई दावे धराशायी हुए हैं। आम आदमी पाटी के जरिए एक नई सियासत का जो पयोग शुरू हुआ है उसकी असली परीक्षा भी इस चुनाव में होगी। चुनाव विश्लेषक 10 करोड़ नए वोटरों के मूड को परिणामों के लिहाज से निर्णायक मान रहे हैं। ऐसे में देखना दिलचस्प यह होगा कि इसकी मौजूदगी से चुनाव परिणाम किस तरह पभावित होते हैं। नक्सलवाद और आतंकवाद जैसी चुनौतियों के बीच शांतिपूर्ण और निष्पक्ष चुनाव करा पाना चुनाव आयोग के लिए बड़ी चुनौती होगी। इसके अलावा धन, बल और बाहुबल के दखल को नियंत्रित करना भी आयोग की कसौटी होगी। बेशक चुनाव आयुक्त वीएस सम्पत ने कहा है कि हम अपने अधिकारों का पयोग करने में हिचकिचाएंगे नहीं पर कटु सत्य तो यह है कि चुनाव आयोग के पास इतने अधिकार है नहीं इसलिए पहले चुनावों की तरह इस बार भी चुनाव स्वतंत्र व निष्पक्ष हों, धन-बल और बाहुबल का इस्तेमाल कम हो, यह सियासी दलों पर निर्भर करेगा। सभी दल धन के दुरुपयोग और अन्य भ्रष्ट उपायों को रोकने के मामले में उपदेश तो खूब देते हैं लेकिन चुनाव में इनके पयोग से दूर नहीं रहते।

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