Saturday, 15 March 2014

ममता ने फ्लाप रैली कर अपनी और अन्ना दोनों की फजीहत करवाई

तृणमूल कांग्रेस की सुपीमो ममता बनजी की पश्चिम बंगाल से बाहर पैर पसारने और उसके जरिए या यूं कहें अन्ना हजारे के जरिए केंद्र की सत्ता का किंग मेकर बनने की पहली ही कोशिश धराशाही हो गई। दिल्ली के रामलीला मैदान में तृणमूल की रैली में न तो भीड़ जुटी और न ही अन्ना हजारे ही आए। ऐन मौके पर अन्ना हजारे गच्चा दे गए। दिल्ली में थे पर रैली में न आना बेहतर समझा। वजह बताई गई बीमारी। जबकि सुबह कहा गया था कि वे रैली में आएंगे और कई दिनों से यह पचारित भी किया जा रहा था लेकिन न वे पहुंचे न ही भीड़। आखिर में 11 बजे शुरू होने वाली रैली डेढ़ बजे शुरू हो सकी। ममता अपने समर्थकों के साथ जब मैदान में आईं तो मुश्किल से मुट्ठी भर लोग मौजूद थे। रामलीला मैदान में 80 फीसदी कुर्सियां खाली थीं। समझा जाता है कि अन्ना ने उनके सहारे राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा पूरी करने में जुटी ममता की रणनीति को भांप रैली से दूरी बनाई। हालांकि फ्लाप रैली और अन्ना की अनुपस्थिति के बावजूद ममता ने कहा कि वह राष्ट्रीय स्तर पर एक विकल्प खड़ा करने की कोशिशें पूरी शिद्धत और ताकत के साथ जारी रखेंगी। उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं पता कि अन्ना खुद अपनी ही रैली में क्यों नहीं आए। यह रैली तो अन्ना की थी जिसमें शिरकत करने का उन्हें न्यौता अन्ना की ओर से ही मिला था। खास बात यह है कि रैली में शिरकत करने अन्ना मंगलवार को ही दिल्ली पहुंच चुके थे मगर राजधानी में रहने के बावजूद उन्होंने अपनी ही रैली से किनारा कर लिया। बताया यह गया कि तबीयत खराब होने की वजह से उन्होंने यह फैसला किया। मगर यह बात इसलिए गले नहीं उतर रही कि जिस अन्ना ने उसी रामलीला मैदान में कई दिन उपवास किया अपनी सेहत का ख्याल तक नहीं किया, मरणासन्न पर पड़े रहे, उन्होंने स्वास्थ्य ठीक न होने के तर्क पर कैसे  रैली में हिस्सा लेने से मना कर दिया। कुछ लोगों का कहना है कि रैली में उम्मीद से काफी कम जुटे लोगों को देखते हुए अन्ना ने अपने कदम खींच लिए। यह किसी से छिपी बात नहीं कि ममता बनजी अन्ना हजारे के जरिए अपनी पाटी का जनाधार मजबूत करना चाहती थीं। दिल्ली में रैली आयोजित करने के पीछे भी उनकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा उजागर होती हैं। पर यह बात अन्ना  कैसे नहीं भांप पाए? जब तृणमूल ने इस रैली की रूपरेखा तैयार की तो किस भावनात्मक या सैद्धांतिक दबाव में उन्होंने उसमें हिस्सा लेने की हामी भर दी और इसके लिए दिल्ली तक चले भी आए।  क्या यह समझा जाए कि भ्रष्टाचार और जनलोकपाल के मुद्दे पर रामलीला मैदान में जो छवि अन्ना की बनी थी वह अब समाप्त सी हो गई है। लोकपाल बिल बनने और उसे स्वीकार करने के बाद अन्ना का ग्राफ तेजी से गिरा है। फिर वे किस आधार पर ममता बनर्जी के साथ जुड़ गए समझना मुश्किल है। अन्ना हजारे की छवि ईमानदार समाज सुधारक व कार्यकर्ता की है। राजनीतिक सकियता के पक्ष में वे कभी नहीं रहे। इसलिए जब उन्होंने आम आदमी पाटी से खुद को अलग रखा तो लोगों को हैरत नहीं हुई पर ममता बनजी के साथ खड़े हुए तो स्वाभाविक रूप से अंगुलियां उठने लगां। इस स्थिति के लिए अन्ना खुद जिम्मेदार हैं। 

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