Friday 21 March 2014

भाजपा की अंदरूनी चालबाजियां कहीं अंत में भारी न पड़ जाएं?

हमने हर चुनाव में टिकटों के बंटवारे को लेकर विवाद होते देखा है सो अगर इस बार भी लोकसभा टिकटों के बंटवारे पर हंगामा हो रहा हैं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं हैं। यह लगभग सभी सियासी दलों में हो रहा है पर सबसे ज्यादा मुखर भारतीय जनता पाटी में देखने को मिल रहा है। इसका एक पमुख कारण है कि देश में  नरेंद्र मोदी हवा चल रही है इसलिए सभी चाहते हैं कि उन्हें भाजपा की टिकट मिले और हंगामे का सबसे बड़ा कारण है बाहरी उम्मीदवार का थोपना। वैसे सैद्धांतिक रूप से मुझे आज तक यह समझ नहीं आया कि बाहरी उम्मीदवार कौन है? भारत एक लोकतांत्रिक देश है और कोई भी व्यक्ति देश के किसी कोने से चुनाव लड़ने के लिए आजाद है। संविधान में यह कहां लिखा हुआ है कि  व्यक्ति जिस राज्य में पैदा हुआ है वह केवल वहीं से चुनाव लड़ सकता है? एक व्यक्ति दिल्ली में पैदा हुआ है तो वह चेन्नई से, भोपाल से, जम्मू से कहीं से भी लड़ सकता है पर पार्टियों के कार्यकर्ताओं को यह बहाना मिल गया है। अगर हम भारतीय जनता पाटी में टिकट के बंटवारे के कारण अंसतोष की बात करें तो कुछ जायज है और कुछ बिना वजह। पहले बिना वजह की बात करते हैं। अगर जनरल वीके सिंह का गाजियाबाद में विरोध हो रहा है तो यह गलत है। जनरल सिंह पूर्व थलसेना अध्यक्ष हैं। गाजियाबाद राजनाथ सिंह की जीती हुई सीट है। वैसे तो यहीं से फिर उनके लड़ने की उम्मीद थी पर उन्होंने यह सीट छोड़ दी या भाग गए तो अगर इस सीट से जनरल सिंह लड़ रहे हैं तो गलत क्या है? डॉ. हर्षवर्धन पूवी दिल्ली से जीते थे अब वह  चांदनी चौक से लड़ रहे है तो क्या यह गलत है? पर इसके साथ-साथ यह भी कहना जरूरी है कि भाजपा में टिकट बंटवारे को ले कर सबसे ज्यादा गड़बड़ पाटी नेतृत्व और संसदीय बोर्ड ने की है। पाटी अध्यक्ष राजनाथ सिंह चूंकि गाजियाबाद से सीटें बदलना चाहते थे इसलिए इस कम को इन्हीं ने शुरू किया। वह लखनऊ से लड़ना चाहते थे। लखनऊ में सीटिंग एमपी लालजी टंडन इसके लिए तैयार नहीं थे। लखनऊ सीट अटल जी की सीट रही है इसलिए इसका विशेष महत्व है। एक समय यह भी बात उड़ी कि शायद नरेंद्र मोदी यहां से चुनाव लड़ें। दरअसल भाजपा पमुख ने एक तीर से कई निशाने साधने का पयास किया है। पहले तो उन्होंने पाटी में अपनी राजनीतिक पतिद्वंद्वियों को चित करने की नीयत से टिकट बंटवारे में या तो उनकी मनपसंद सीट से टिकट काटी। शत्रुघ्न सिन्हा, नवजोत सिंह सिद्धू, डॉ. मुरली मनोहर जोशी। फिर उनकी जगह अपने समर्थकों को फिट करने का पयास किया। उनके विरोधियों के समर्थकों का भी सफाया करने का पयास किया गया। एक टीवी चैनल पर एक राजनीतिक विश्लेषक का कहना था कि भारतीय जनता पाटी के अंदर एक वर्ग ऐसा है जो नरेंद्र मोदी को पधानमंत्री बनने से रोकने हेतु पाटी की जीती सीटों पर नियंत्रण लगाना चाहता है ताकि इतनी सीटें न आएं कि मोदी के पीएम बनने में कोई दिक्कत नहीं आए। अगर भाजपा की सीटें बहुत से कम रह जाती हैं तो इस वर्ग को लगता है कि नरेंद्र मोदी को दूसरे एनडीए घटक दल बतौर पीएम स्वीकार नहीं करेंगे। उस सूरत में भाजपा का कोई अन्य नेता जो सबको  एनडीए में शामिल कर सके और जिस पर सभी सहमत हो जाएं सर्वमान्य पीएम बन जाए। मुझे लगा कि इस बात में कुछ दम है। कभी-कभी पाटी नेतृत्व की यह मजबूरी होती है कि पदेशों से तीन नामों का जो पैनल आया है उस पर एक नाम पर सहमति नहीं बन पाती। इसलिए झगड़ा निपटाने के लिए किसी बाहरी नाम को घोषित कर दिया जाता है ताकि कार्यकर्ता आपस में न भिड़ें और मिलकर चुनाव में कार्य करें। पर इसका उल्टा पभाव भी पड़ सकता है। कार्यकर्ता निराश होकर घर बैठ जाते हैं और कहते हैं कि हर बार यही होता है। पांच साल तक तो हम मरते, करते रहते हैं और जब समय आता है तो टिकट किसी बाहरी व्यक्ति को दे दिया जाता है। फिर हर पाटी में खास तौर से इस बार भारतीय जनता पाटी में बहुत से लोग पाटी के बाहर से शामिल होते हैं। ऐसे लोगों को भी टिकट देना पड़ता है क्योंकि उन्हें इसी वादे पर लाया गया है। फिर हर पाटी चाहती है कि वह  हर सीट पर जीतने वाले उम्मीदवार को उतारे चाहे वह बाहरी हो, दागी हो, कुछ भी हो बस सीट निकाल सके। बाहरी उम्मीदवारों को थोपने का लाभ भी है, नुकसान भी है। सिवाय आम आदमी पाटी के जो पहली बार चुनाव लड़ रही है, बाकी सभी दलों में यह असंतोष है, कुछ में कम, कांग्रेस और भाजपा में ज्यादा।

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