Sunday 16 March 2014

भाजपा-कांग्रेस दोनों के लिए इन सूबेदारों से निपटना बड़ी चुनौती है

कुछ राजनीतिज्ञों का मानना है कि भारतीय जनता पाटी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बेशक आगामी लोकसभा चुनाव में सबसे ब़ड़ा दल बन कर उभरे पर सरकार वह तभी बना सकेगी जब दूसरे छोटे दल एनडीए का समर्थन करने को तैयार हों। उनका कहना है कि एनडीए अपने बूते पर 272 + सीटें नहीं ला सकती। हालांकि अन्य विश्लेषकों का दावा है कि देश में मोदी की लहर है और एनडीए अपने बूत पर सरकार बना लेगा। लगता तो यही है कि पेंद्र की सत्ता की दौड़ में शामिल दोनों बड़े सियासी दल भाजपा और कांग्रेस को आगामी लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय सूबेदारों से बड़ी चुनौती मिलेगी। अगली सरकार के गठन की राह में जहां यही दल उनके रास्ते की बाधा साबित हो सकते हैं, वहीं इनके समर्थन से ही नए पधानमंत्री की ताजपोशी हो सकती है। इन सबके बीच अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पाटी भी दोनों बड़े दलों के लिए वोट कटवा साबित हो सकती है। उत्तर पदेश और बिहार की सियासी तस्वीर मैं पहले बता चुका हूं। आज बात करेंगे और अन्य राज्यों की। पिछले चुनाव को देखें तो कांग्रेस को केंद्र की सत्ता तक पहुंचाने में दक्षिण के दो राज्यों आंध्र पदेश और तमिलनाडु का बड़ा योगदान रहा था, तो भाजपा के लचर पदर्शन के लिए उत्तर पदेश में बड़ी भूमिका रही थी। वहां कांग्रेस के लिए आंध्र पदेश और तमिलनाडु वाटरलू साबित हो सकते हैं। वहीं भाजपा मोदी लहर में अपने लिए दोनों राज्यों में संभावनाएं तलाशने में जुटी है। आंध्र पदेश जहां लोकसभा की 42 सीटें हैं वहां कांग्रेस के लिए तेलगूदेशम पाटी और जगन के नेतृत्व वाली वाईएसआर कांग्रेस उसकी राह में रोड़ा बन सकती है। राज्य को बांटने का टोटका कांग्रेस के लिए कितने फायदे का रहेगा यह तो समय ही बताएगा लेकिन इस निर्णय से उत्पन्न सीमांध्र में स्थिति का तेलंगाना से भरपाई पर कांग्रेस की उम्मीदें टिकी हुई हैं। तमिलनाडु में जयललिता के अन्ना द्रमुक ने राज्य की सभी 39 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित करके स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वह चुनाव से पहले किसी से भी गठबंधन शायद न करें। 2009 के चुनावों में कांगेस-डीएमके की अगुवाई वाले लोकतांत्रिक डीपीए के साथ गठबंधन बना कर 16 सीटों पर चुनाव लड़ी थी जिसमें से 9 सीटों पर उसे जीत मिली थी। इस बार डीएमके ने अब तक यही स्टैंड ले रखा है कि वह कांग्रेस से गठबंधन नहीं करेगा। केंद्रीय वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि अगर गठबंधन नहीं होता है तो वह सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करेंगे। यहां कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। जहां तक भाजपा का सवाल है उसके लिए तमिलनाडु में एक भी सीट जीतना मुश्किल दिख रहा है। पश्चिम बंगाल जहां पिछले चुनाव में कांग्रेस ने तृणमूल  कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ा था इस बार अलग-अलग चुनाव मैदान में होंगे। राज्य की 42 संसदीय सीटों के लिए मैदान में उतरने वाले चारों पमुख राजनीतिक दलों ने लोकसभा चुनावों में पहली बार कवि गुरू रविंद्रनाथ टैगोर की एकला-चलो गीत को आत्मसात कर लिया है। यह पहली बार है कि जब तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस, वाम मोर्चा और भाजपा बिना किसी तालमेल या गठजोड़ के मैदान में उतरे हैं, तृणमूल कांग्रेस की सभी सर्वेक्षणों में मजबूत स्थिति दिखाई गई है। ममता की सुनामी में अन्य गठबंधन या दल पता नहीं कितना टिक पाएंगे। पिछले चुनाव में ममता के खाते में 18 सीटें आई थीं। राज्य में भाजपा मोदी लहर पर बैठकर अपना खाता खोलने की जुगत में है। उड़ीसा जहां 21 सीटें हैं। बीजू जनता दल भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए बड़ी चुनौती पेश करेगा। पिछले चुनाव में उसके खाते में 14 सीटें आई थीं। महाराष्ट्र में क्षेत्रीय क्षत्रपों में जहां शिवसेना और मनसे भाजपा के साथ है वहीं राकांपा-कांग्रेस मिलकर चुनाव मैदान में उतरेंगे। आम आदमी पाटी भी अपना खाता खोलने के लिए हाथ-पांव मार रही है। कुल मिलाकर उत्तर पदेश, बिहारतमिलनाडु, आंध्र पदेश, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा ऐसे राज्य हैं जहां भाजपा और कांग्रेस दोनों को क्षेत्रीय क्षत्रपों से पार पाना आसान नहीं होगा। देश के इन छह राज्यों की 264 सीटों पर भाजपा और कांग्रेस का सीधा मुकाबला इन सूबेदारों से होगा। भाजपा और मोदी को अपने 272+ मिशन पर कामयाब होना है तो इन राज्यों में अच्छा-ठोस पदर्शन करके कुछ सीटें लानी हेंगी। अब बात करते हैं पूर्वेत्तर राज्यों की। भाजपा के लिए अच्छी खबर सामने आई है जब उसका असम गण परिषद (अगप) के दो वरिष्ठ नेता भाजपा में शामिल हो गए। अगप के पूर्व अध्यक्ष चंद मोहन पटवारी और वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री हितेंद्र नाथ गोस्वामी बड़ी संख्या में अपने समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए। एक अन्य घटनाकम में गोरखा मुक्ति मोर्चा(जीजेएम) अध्यक्ष विमल गुरूंग ने घोषणा की कि उनका संगठन पश्चिम बंगाल में भाजपा का दार्जिलिंग की सीट पर समर्थन करेगा। गौरतबल है कि 2009 में जीजेएम ने दाजीलिंग सीट पर भाजपा का समर्थन किया था और वह विजयी रहे थे। असम में भाजपा पहले ही तीन वर्तमान सांसदों समेत पांच उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर चुकी है। असम में गगन गोगाई के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार है और कांग्रेस को यहां से बहुत उम्मीदें हैं। अन्य राज्यों में भी कांग्रेस की स्थिति मजबूत है। केरल की 20 सीटों को लेकर डेमोकेटिक पंट और सत्तारूढ़ कांग्रेस के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ यूडीएफ के बीच कड़ा मुकाबला है। राज्य में और राष्ट्रीय स्तर पर लंबे समय तक वाममोर्चा के पमुख सहयोगी दल आरएसपी ने गठजोड़ से अलग होने की घोषणा से वामामोर्चा कमजोर हुआ है। पंजाब में पमुख मुकाबला भाजपा-अकाली गठबंधन और कांग्रेस-पीपीपी (पीपुल्स पाटी) है। मनपीत सिंह बादल की पाटी का हाल ही में कांग्रेस के साथ गठबंधन हुआ है। अब बात करते हैं जम्मू-कश्मीर की। जम्मू कश्मीर में एक ओर जम्मू क्षेत्र है और दूसरी ओर घाटी है। राज्य में जम्मू-कश्मीर, श्रीनगर, अनंतनाग, बारामूला और लद्दाख छह सीटें हैं। फिलहाल पांच सीटें कांग्रेस-नेशनल कांफेंस गठबंधन के पास है, जबकि एक सीट पर निर्दलीय काबिज है। जम्मू में एक भाजपा समर्थक सुकुमार शाह कहते है ``कश्मीर इस बार इतिहास रचेगा। बदलाव की आंधी है, मोदी ही मोदी है'' पर घाटी में न तो भाजपा कहीं है और न ही मोदी। यहां कांग्रेस-नेकां गठबंधन का बोलबाला है। भाजपा जम्मू और उधमपुर सीटें जीत सकती है। नरेंद्र मोदी के कारण हिंदू वोट एकजुट हो कर वोट करेगा, ऐसी उम्मीद भाजपा लगाए हुए है। मैंने देश के कुछ पमुख  राज्यों के बारे में संक्षिप्त में आपको जानकारी देने का पयास किया है। यह राज्य नरेंद्र मोदी के मिशन 272+ में अहम  भूमिका निभा सकते हैं। अन्य उत्तर भारत और मध्य भारत में तो भाजपा मजबूत स्थिति में है। असल चुनौती भाजपा के लिए इन राज्यों में है। देखें, यहां भाजपा का पदर्शन कैसा रहता है

öअनिल नरेंद्र

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