Thursday, 27 March 2014

हरीश रावत बनाम सतपाल महाराज ः दांव पर उत्तराखंड सरकार

पौड़ी के सांसद सतपाल महाराज का कांग्रेस छोड़ना और भाजपा में शामिल होना उत्तराखंड की सियासत में खासा महत्व रखता है। सतपाल महाराज के भाजपा में शामिल होने से उत्तराखंड के सियासी समीकरण बदल गए हैं। हरीश रावत की कांग्रेस सरकार को खतरा पैदा हो गया है। सतपाल महाराज के कई आदमी कांग्रेस के विधायक हैं और समय आने पर पाला बदल सकते हैं। हालांकि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने रविवार को कहा कि कांग्रेस पाटी एकजुट है और न तो उनकी सरकार को कोई खतरा है और न ही पाटी की एकजुटता को। आने वाले चुनाव में भाजपा को पूरी ताकत से शिकस्त देने को पाटी तैयार है। पाटी के कुछ बड़े नेताओं का मानना है कि महाराज के कांग्रेस छोड़कर जाने से पाटी में लंबे समय से चली आ रही अंतर्कलह पर विराम लग जाएगा और गुटबाजी भी थमेगी। जब हरीश रावत से इस बाबत पूछा गया तो उन्होंने कहा, हमें अब यह देखना होगा कि चुनाव में भाजपा को किस पकार हराया जाए। महाराज के जाने के बाद पूरी पाटी के नेताओं तक कार्यकर्ताओं ने एक-जुटता का परिचय दिया है। मजेदार बात यह है कि अब तक एक-दूसरे के सियासी दुश्मन नजर आ रहे उत्तराखंड के दो सबसे पसिद्ध प़ड़ोसी हरीश रावत और पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा सतपाल महाराज के पाटी छोड़कर जाने के बाद इकट्ठे दिखाई दे रहे हैं। लंच डिप्लोमेसी के तहत बाजीपुर गेस्ट हाउस में निवास कर रहे रावत नजदीक ही रहने वाले अपने पड़ोसी बहुगुणा के घर गए जहां उनके बीच वर्तमान सियासी हालात पर लंबी चर्चा हुई। इस भोज के दौरान करीब 13 कांग्रेसी विधायक भी शामिल हुए जिनमें ज्यादातर बहुगुणा समर्थक विधायक थे। कांग्रेस के पदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य भी  इस भोज में शामिल हुए। भोज के बाद रावत उत्साहित दिखे और उन्होंने कहा कि हम एकजुट हैं और आगे भी रहेंगे। दूसरी तरफ महाराज की पत्नी और  पदेश की पर्यटन मंत्री अमृता रावत ने भी एक सकारात्मक बयान देकर इस बात की पुष्टि की कि वह कांग्रेस छोड़कर नहीं जा रही हैं। पाटी सूत्रों के मुताबिक अमृता का यह बयान बहुत सकारात्मक है और इससे यह संदेश भी है कि पाटी में कलह का दौर थम जाएगा। महाराज के पाटी छोड़ने का मुख्य कारण हरीश रावत और उनके बीच वर्षें से  चली आ रही पतिद्वंद्वता को माना जा रहा है। 2002 में रावत के पदेश का मुख्यमंत्री न बन पाने का मुख्य कारण महाराज ही थे। महाराज के विरोध की वजह से मुख्यमंत्री की कुसी रावत के हाथ से फिसलकर नारायण दत्त तिवारी के पास चली गई थी। रावत को दूसरा झटका 2012 में लगा जब एक बार फिर उनके हाथ से कुसी छिनकर विजय बहुगुणा के पास चली गई। रावत ने कहा, हमने जो खोना था, वह खो दिया है पर हम अब अपना पूरा ध्यान पदेश के विकास और आगामी चुनाव में पांचों सीटों को जीतने में लगाएंगे। दूसरी तरह सतपाल महाराज के भाजपा में आने से भाजपा में नई ऊर्जा आ गई है। अब उनका निशाना 5 लोकसभा सीटों पर तो है ही साथ-साथ उत्तराखंड में अपनी सरकार बनाने की उम्मीदें भी जगी हैं। आने वाले दिन दोनों पक्षों के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

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