Wednesday 4 June 2014

भारत का 29वां राज्य बना तेलंगाना

दशकों के संघर्ष के बाद तेलंगाना ने देश के 29वें राज्य के रूप में आकार अंतत ले लिया है और चन्द दिनों बाद विभाजित आंध्र प्रदेश के दूसरे टुकड़े सीमांध्र को भी 30वें राज्य का दर्जा मिल जाएगा। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) प्रमुख के. चन्द्रशेखर राव आंध्र प्रदेश से अलग होकर अस्तित्व में आए इस नए राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने हैं। राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन ने राव के अलावा उनके बेटे केटी रामाराव और भतीजे टी. हरीश समेत 11 अन्य को भी मंत्री पद की शपथ दिलाई। इससे पूर्व आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश कल्याण ज्योति सेनगुप्ता ने नरसिम्हन को सूबे के पहले राज्यपाल के रूप में शपथ दिलाई। उल्लेखनीय है कि के. चन्द्रशेखर राव के नेतृत्व में उनकी पार्टी टीआरएस तेलंगाना के लिए लम्बा संघर्ष करती आई है। आंदोलन के दौरान उनके कई समर्थकों को अपनी जान की बाजी भी लगानी पड़ी थी। समर्थकों की इस कुर्बानी को याद करके सोमवार को पहले मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेते वक्त चन्द्रशेखर राव भावुक हो गए थे। पिछले दिनों विधानसभा चुनाव में यहां 119 सीटों में 63 सीटें टीआरएस ने जीती थीं। इस नए राज्य में 10 जिले हैं। इनमें हैदराबाद को छोड़कर सभी नौ जिले पिछड़े हैं। इनके विकास की नई सरकार को चुनौती है। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने नए मुख्यमंत्री को बधाई दी है। बधाई संदेश में उन्होंने तेलंगाना के मुख्यमंत्री को आश्वस्त किया है कि केंद्र सरकार नए राज्य को हर सम्भव मदद करेगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी चन्द्रशेकर राव को औपचारिक बधाई दी है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विभाजन की प्रक्रिया जिस कटुता और आपसी संदेह के माहौल में सम्पन्न हुई है, उसमें इन दोनों नवगठित राज्यों के लिए भविष्य का रास्ता संशय भरा दिख रहा है। चन्द्रशेखर राव के शपथ ग्रहण समारोह में सीमांध्र के प्रस्तावित मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू की गैर मौजूदगी दोनों राज्यों के बीच तनातनी के राज खोल रही है। तेलंगाना के समक्ष एक नई समस्या शेष राज्य अर्थात सीमांध्र प्रदेश के साथ बेहतर तालमेल बैठाने का है। यह तालमेल इसलिए बहुत जरूरी है क्योंकि हैदराबाद को 10 साल तक दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी रहना है। यह ठीक नहीं कि कर्मचारियों, सम्पत्ति, जल स्रोतों आदि के बंटवारे को लेकर चन्द्रशेखर राव की ओर से अनुदार रवैये का परिचय दिया जा रहा है। यह समय समन्वय से काम करने का है ताकि दोनों ही राज्यों के हितों की रक्षा हो सके और दोनों ही प्रांतों के लोगों की आकांक्षाओं की पूर्ति हो सके। समृद्धि के लिए शांति, स्थिरता के साथ-साथ सुशासन आवश्यक है। तेलंगाना में सत्तारूढ़ हुए टीआरएस को यह समझना होगा कि शासन तंत्र का संचालन आंदोलनकारी रवैये के साथ नहीं किया जा सकता। हमारे सामने आम आदमी पार्टी की 49 दिनों की दिल्ली सरकार का उदाहरण है। इसमें शक नहीं कि पिछली मनमोहन सिंह सरकार भी दोनों भागों में आई तल्खी के लिए खासी जिम्मेदार है और इसका भरपूर खामियाजा उसने आम चुनाव में चुकाया भी है। राज्य की गद्दी भी इन चुनावों में कांग्रेस के हाथ से निकल गई। तेलंगाना राज्य के मसले पर कांग्रेस ने जो विवेकहीन राजनीति का खेल खेला उसने उसके पांव एक बारगी इस राज्य से उखड़ दिए हैं। आंध्र के आधी सदी से अस्तित्व में आए, जिस पार्टी ने चार दशकों तक शासन चलाया है, उसमें इस बार उसकी हालत सचमुच दयनीय है। कौन नहीं जानता कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तेलंगाना के अलग राज्य को बनाने में अपनी प्रतिष्ठा तक दांव पर लगा दी थी। सोनिया गांधी की वजह से ही आजादी से ही चल रही पृथक तेलंगाना की मांग पूरी हो पाई और नए राज्य में कांग्रेस को इस आम चुनाव में कुल दो संसदीय सीटें ही मिल सकीं। सीमांध्र में तो कांग्रेस का कोई नामलेवा तक नहीं बचा है। तेलंगाना गठन के बाद कांग्रेस में अपनी पार्टी के विलय का वादा करने वाले चन्द्रशेखर राव तक पलटी मार गए हैं। आश्चर्य नहीं कि आने वाले दिनों में वह भी केंद्र की मोदी सरकार के चक्कर काटते दिखें। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि चन्द्रशेखर राव की सरकार जनाकांक्षाओं पर पूरा उतरेगी और किसी भी पक्ष की ओर से संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों को महत्व नहीं देगी। हम चन्द्रशेखर राव और उनकी पार्टी टीआरएस को बधाई देते हैं।

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