विस्थापन
की पीड़ा के बीच अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे कश्मीरी पंडितों के अच्छे दिन आने
वाले हैं, कम से कम लग तो ऐसा ही रहा है।
कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी और पुनर्वास के लिए एक समग्र योजना पर काम शुरू
हो चुका है। नरेन्द्र मोदी सरकार ने इस मुद्दे को अपनी शीर्ष पाथमिकता पर रखा है। भाजपा
के चुनावी घोषणा पत्र में भी यह कहा गया था कि वह कश्मीरी पंडितों की पूरे सम्मान के
साथ वापसी सुनिश्चित करने के लिए पतिबद्ध है। आतंकी घटनाओं के कारण 1990 के बाद घाटी से विस्थापित होकर आए कश्मीरी पंडितों की संख्या बढ़कर छह-सात लाख हो गई है। योजनाओं के मुताबिक कश्मीरी पवासियों की वापसी और पुनर्वास
का यह नया पैकेज और उस पैकेज से ज्यादा आकर्षक होगा, जिसकी घोषणा
पूर्व पधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपैल 2008 में की थी। इस पैकेज
में पूरी तरह या आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त मकानों के पुनर्निर्माण के लिए पति परिवार
को साढ़े सात लाख रुपए की मदद, ध्वस्त हो चुके मकानों के लिए
पति परिवार को 2 लाख रुपए की मदद और 1989 में उत्पात के दौरान अपनी संपत्तियां बेच चुके लोगों के लिए ग्रुप हाउसिंग
सोसायटी में मकान खरीदने के लिए पति परिवार को साढ़े सात लाख रुपए की मदद शामिल है।
अधिकारियों ने कहा कि यदि वे वहां भी असुरक्षित महसूस करते हैं तो उन्हें सुरक्षा उपलब्ध
कराई जाएगी। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा
कि वे विस्थापित कश्मीरी पंडित समुदाय की घाटी में वापसी के लिए नरेन्द्र मोदी सरकार
के साथ मिलकर काम करने का पयास कर रहे हैं। उमर ने ट्विट किया, `मैं नई सरकार के साथ काम करने का इंतजार कर रहा हूं।' उन्होंने विस्थापित पंडित समुदाय की सम्मानजनक वापसी की योजनाएं पेश की हैं।
खीर भवानी उत्सव पर जम्मू-कश्मीर के लोगें को शुभकामनाएं देते
हुए पधानमंत्री कार्यालय के राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह ने कहा कि हम घाटी में कश्मीरी
पंडितों की सम्मानजनक वापसी के लिए पतिबद्ध हैं। समुदाय के लिए काम कर रहे कार्यकर्ता
मनोज मान ने कहा कि कश्मीरी समुदाय का हर सदस्य वापस अपनी गृह सामान्य भूमि पर जाना
चाहता है लेकिन वहां सहायक माहौल, पर्याप्त सुरक्षा और संवैधानिक
संरक्षण होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम किसी पर्यटक की तरह वापस नहीं जाना चाहते और
न ही छावनी वाला जीवन चाहते हैं। यह पूरी तरह से स्पष्ट होना चाहिए कि सरकार किस तरह
का पुर्नवास देना चाहती है? मान ने कहा कि कश्मीरी पंडितों के
लिए पैकेज में समुदाय के लिए विधानसभा और संसदीय सीटों में आरक्षण, आfिर्थक मदद, शैक्षणिक संस्थानों
में आरक्षण और सीजीएचएस (केंन्द्र सरकार की स्वास्थ्य योजना)
की तरह की योजना को भी शामिल किया जाना चाहिए। विस्थापन की पीड़ा के
बीच अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे कश्मीरी पंडितों ने आखिरकार 25 साल बाद गत दिनों अपने हक के लिए श्रीनगर के लाल चौक के लिए कूच किया। हालांकि
पुलिस ने उन्हें लाल चौक से करीब 100 मीटर पहले ही रोक लिया,
लेकिन वे अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाने में कामयाब रहे। उन्होंने कश्मीर
मंदिर बिल को पारित करने, कश्मीरी पंडितों के धर्मस्थलों पर कब्जों
की जांच सहित अन्य मांगें पूरी न होने पर 17 अगस्त से आमरण अनशन
पर जाने की चेतावनी दी है। कश्मीरी पंडितों के लिए अल्पसंख्यक दर्जे की मांग भी की।
पंडितों द्वारा लाल चौक पर मोर्चा या कश्मीर में बड़ी रैली का यह पहला मौका था।
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