Thursday 19 June 2014

पधानमंत्री मोदी ने भूटान यात्रा से एक तीर से कई शिकार किए

पधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली विदेश यात्रा सफल रही। मोदी ने पहली विदेश यात्रा के लिए भूटान ही क्यों चुना? यह एक सोचा समझा दूरगामी परिणाम का चयन था। भूटान भारत का अकेला ऐसा पड़ोसी है जिसके साथ आपसी रिश्तों में किसी तरह की कोई खटास नहीं है। पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका सभी के साथ छोटी-बड़ी उलझनें हैं, समस्याएं हैं लेकिन भारत और भूटान के बीच मोटे तौर पर ऐसा कुछ भी नहीं है। फिर चीन की ओर से भूटान को लुभाने की कोशिश तेज होते देख नरेंद्र मोदी ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए हिमालय की गोद में बसे इस देश को चुना। इस समय पूरे उपमहाद्वीप में भूटान भारत के लिए कई तरह से सबसे महत्वपूर्ण है। खासतौर पर ऐसे समय में जब चीन तकरीबन हर तरफ से भारत को घेरने की कोशिश में जुटा हुआ है। वह श्रीलंका में बंदरगाह बना रहा है तो नेपाल में सड़कें बना रहा है, म्यामांर के तेल कारोबार पर पकड़ बनाने की कोशिश तो वह पिछले एक दशक से ज्यादा समय से कर रहा है। बांग्लादेश के बाजार में भी इसका अच्छा-खासा दखल है और पाकिस्तान को तो खैर वह अपना सदाबहार दोस्त मानता है। ऐसे में अकेले भूटान ही है जहां चीन की दाल अभी बहुत ज्यादा नहीं गल सकी है। भारतीय विदेश नीति के लिए भूटान में चीन के पवेश को रोकना फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती है और पधानमंत्री ने अपनी सफल यात्रा से इसमें काफी हद तक सफलता पाई है। पधानमंत्री ने पूर्वेत्तर भारत और भूटान के बीच संपर्क के नए पुल बनाने पर भी जोर दिया है। भूटान की संसद को संबोधित करने के बहाने मोदी ने संदेश दिया कि मजबूत भारत ही पड़ोसी सार्क मुल्कों की परेशानियों में मदद कर सकता है। पीएम मोदी की तारीफ के लिए भूटानी संसद ने अपनी परंपरा भी तोड़ दी। सोमवार को जब मोदी ने संसद की संयुक्त बैठक में हिंदी में अपना धारापवाह भाषण समाप्त किया तो भूटानी सांसदों ने तारीफ में जोरदार तालियां बजाईं। भूटान में किसी की पशंसा या स्वागत में तालियां नहीं बजाई जातीं। वहां बुरी आत्माओं को भगाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। जैसे ही मोदी ने अपना भाषण खत्म किया भूटानी पधानमंत्री शोरिंग तोबगे और नेशनल असेंबली और नेशनल काउंसिल के सदस्यों ने तालियों से उनका स्वागत किया। अपने संबोधन में पधानमंत्री मोदी द्वारा सांस्कृतिक विरासत को द्विपक्षीय रिश्तों का आधार बताया जाना निश्चित ही पड़ोसी देशों को आश्वस्त करने वाला है। भारत की सांस्कृतिक परंपरा में परिवार का सबसे छोटा सदस्य सबसे ज्यादा प्यारा होता है। भूटान हमारा सबसे छोटा पड़ोसी है इसीलिए उसे सर्वाधिक महत्व देते हुए मोदी ने कहा कि अपने दिल की आवाज पर मैंने सबसे पहले भूटान आने का निर्णय किया। पड़ोसियों से ज्यादातर भारत का तनाव रहा है और इसी का फायदा उठाकर चीन चौधरी बनना चाहता है। मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह मे सार्क के सदस्य राष्ट्राध्यक्षों को बुलाकर न केवल तनाव शैथिल्य की पहल की अपितु सामाजिक दृष्टि से अतिमहत्वपूर्ण इस क्षेत्र के स्वाभाविक नेता  के रूप में खुद को पस्तुत किया। भारत विरोधी शक्तियां उसके पड़ोसियों को यह कहकर भड़काया करती थीं कि भारत की पवृत्ति विस्तारवादी है। मोदी ने सबसे छोटे पड़ोसी देश को भावनात्मक एकता का संदेश देकर इस दुष्पचार को तोड़ा और संदेश दिया कि शांत, समृद्ध, सुदृढ़ भारत अपने पड़ोसियों को भी वैसा ही बनाने में सहायक होगा। दिल्ली लौटने के बाद पधानमंत्री ने इस यात्रा को बेहद सफल करार दिया। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि यह दौरा मेरी यादों में बसा रहेगा। मोदी ने एक बात और अच्छी कही, उन्होंने भूटान को भारत की पूरी मदद का आश्वासन देते हुए कहा कि सत्ता बदलने के बावजूद पहले किए गए समझौतों के पति उसकी पतिबद्धता बरकरार रहेगी। इसके बदले भूटान ने वादा किया कि वह अपनी जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ नहीं होने देगा। कुल मिलाकर कहा जाएगा कि पधानमंत्री की यह पहली विदेश यात्रा सफल रही।

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