Thursday, 26 June 2014

यूजीसी बनाम वीसी सही कौन?

चार साल के डिग्री कोर्स को लेकर यूजीसी और दिल्ली यूनिवर्सिटी की लड़ाई लगता है निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है। यूजीसी का दावा है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के 64 कॉलेजों में से 57 कॉलेज तीन साल के कोर्स में एडमिशन देने को तैयार हो गए हैं। यूजीसी ने मंगलवार रात इन कॉलेजों की लिस्ट भी जारी कर दी। इससे पहले मंगलवार दिनभर यूजीसी और वीसी दिनेश सिंह इस मुद्दे पर आरपार की लड़ाई के मूड में नजर आए। वीसी के इस्तीफे की घोषणा तक हो गई, जिससे बाद में इंकार कर दिया गया। दिल्ली विश्वविद्यालय में चार वर्षीय कोर्स को लेकर जो घमासान हुआ है उसमें सही-गलत का फैसला करना मुश्किल है। इसकी वजह यह है कि शिक्षा के क्षेत्र में इतनी अराजकता और राजनीति व्याप्त हो गई है, सारे मुद्दों का हल राजनीतिक सुविधापरस्ती और निहित स्वार्थों के आधार पर तय होते हैं। शिक्षा मंत्रालय यह कह रहा है कि वह दिल्ली विश्वविद्यालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के बीच कुछ नहीं बोलेगा। यूजीसी ने दिल्ली विश्वविद्यालय को चार वर्षीय डिग्री कोर्स खत्म करने का आदेश दिया था। शिक्षा मंत्रालय यह जताने की कोशिश कर रहा है कि यूजीसी ने अपनी स्वायत्त समझ के आधार पर  यह कोर्स खत्म करने का फैसला किया है, जबकि यह वास्तविकता सभी जानते हैं कि यूजीसी ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय की इच्छा से यह आदेश जारी किया है। भारतीय जनता पार्टी ने यह वादा किया था कि अगर उसकी सरकार बनेगी तो चार वर्षीय डिग्री कोर्स को फिर से पहले की तरह तीन वर्षीय कर दिया जाएगा, इसलिए भाजपा की सरकार बनते ही यूजीसी ने यह आदेश जारी कर दिया। अगर यूजीसी इस कोर्स के खिलाफ थी तो उसे पिछले साल ही ऐसा करना था, जब भारी विवादों के बीच दिल्ली विश्वविद्यालय ने यह फैसला किया था। साफ तौर पर यह केंद्र में बदले निजाम का असर है। इसमें कोई हर्ज भी नहीं कि 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में निर्धारित 10+2+3 के पैटर्न को दरकिनार कर चार वर्षीय कोर्स शुरू करने के निर्णय की समीक्षा हो और उसमें  बदलाव हो, लेकिन महज सरकार बदलने से यदि यूजीसी की सोच पूरी तरह  बदल गई है तो इससे उसकी सोच की स्वतंत्रता और विवेक पर सवाल उठता है। ऐसे में छात्रों का भविष्य और नए दाखिले की प्रक्रिया यदि अधर में लटकी है तो यूजीसी इसके लिए दिल्ली विश्वविद्यालय से कम जिम्मेदार नहीं है। बहरहाल बड़ा सवाल दिल्ली विश्वविद्यालय के फैसले  पर भी है जिसने अपनी स्वायत्तता की आड़ में संसद द्वारा पारित राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अनदेखा किया। जो लोग आज चार वर्षीय कोर्स बन्द करने के यूजीसी के फरमान को दिल्ली विश्वविद्यालय की स्वायत्तता पर हमला करार दे रहे हैं उन्हें इस बात का भी जवाब देना चाहिए कि क्या स्वायत्तता की आड़ में संसद द्वारा पारित नीति का उल्लंघन किया जा सकता है। बहरहाल तीन वर्षीय स्नातक कोर्स की वापसी के साथ बड़ा सवाल चार वर्षीय कोर्स के अंतर्गत पढ़ रहे छात्रों का है। उचित होगा कि इन छात्रों की पढ़ाई उनके पाठ्यक्रम के अनुरूप पूरी हो। दिल्ली विश्वविद्यालय उन कुछ विश्वविद्यालयों में से है जिसकी प्रतिष्ठा अब भी बची हुई है पर इस प्रकरण से उसकी प्रतिष्ठा पर आंच आई है।

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