Sunday 29 June 2014

नक्सली प्रति वर्ष 100 करोड़ रुपए वसूल कर लेते हैं

नक्सलवाद हमारे देश की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। देश के कम से कम 10 राज्य इससे सीधे प्रभावित हैं। यूपीए सरकार अपने 10 साल के कार्यकाल में इससे निपटने में विफल रही। अब मोदी सरकार इस समस्या से कैसे निपटती है यह देखना है। मोदी सरकार नक्सलियों से निपटने के लिए नए सिरे से एक्शन प्लान तैयार करेगी। गृह मंत्रालय ने इसके लिए 27 जून को बैठक बुलाई थी। देश के 10 नक्सल प्रभावित राज्यों के प्रतिनिधियों ने इसमें भाग लिया। गृह मंत्रालय ने आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, तेलंगाना, यूपी और पश्चिम बंगाल के शीर्ष अधिकारियों को बैठक के लिए बुलाया गया। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इन राज्यों को नक्सल अभियान पर फीडबैक के साथ नए सिरे से फ्यूचर प्लान पेश करने को कहा है। नक्सल आंदोलन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण बिन्दु है पैसा। छत्तीसगढ़ देश में माओवाद से सर्वाधिक प्रभावित राज्य है और इसका एक कारण नक्सलियों, माओवादियों को यहां से मिलने वाली बड़ी रकम है और विभिन्न स्रोतों से मिली जानकारी के मुताबिक माओवादी राज्य से प्रति वर्ष लगभग 80 से 100 करोड़ रुपए तक उगाहते हैं। राज्य के नक्सल प्रभावित राजनांद गांव जिले के सीता गांव और औधी के जंगल में इस वर्ष 4 मार्च को सुरक्षाबलों ने नक्सलियों द्वारा बनाया गया एक डम्प बरामद किया था, जिसमें 29 लाख रुपए थे। पुलिस ने नक्सलियों की इतनी बड़ी रकम पहली बार पकड़ी थी। नक्सल प्रभावित इलाकों में ऐसे सैकड़ों डम्प हैं जिनमें नक्सली अपनी रकम छिपाकर रखते हैं। डम्प वास्तव में जमीन खोदकर बनाई गई एक टंकी होती है। विभिन्न माध्यमों से पुलिस को नक्सलियों द्वारा यहां से प्रति वर्ष 80 से 100 करोड़ रुपए की उगाही करने की जानकारी मिली है। इसकी पुष्टि पिछले दिनों पकड़े गए दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रवक्ता गुडसा उसेंडी उर्प जीवेके प्रसाद ने भी की है। अधिकारियों ने बताया कि नक्सली अपने प्रभाव वाले क्षेत्र में आम जनता से लगभग 3 करोड़ रुपए, व्यापारियों से लगभग 10 करोड़ रुपए, ठेकेदारों से लगभग 20 करोड़ रुपए, ट्रांसपोर्टरों से लगभग 10 करोड़ रुपए, तेंदूपत्ता ठेकेदारों से लगभग 2 करोड़ रुपए, बांस एवं जंगल काटने वाले ठेकेदारों से लगभग 15 करोड़ रुपए, प्रभावित क्षेत्र में रहने वाले उद्योगपतियों से लगभग 20 करोड़ रुपए तथा क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों से चन्दे के रूप में लगभग 2 करोड़ रुपए वसूलते हैं। धन उगाही सावधानीपूर्वक की जाती है। हर स्तर पर केवल दो लोगों को ही पता होता है कि धन कहां रखा जा रहा है तथा कहां भंडारण किया जा रहा है। नक्सली-माओवादी रुपयों का इस्तेमाल प्रिंटिंग कार्य, दवाओं और समर्थकों का इलाज, संचार साधनों की खरीदारी, हथियार और गोला-बारुद की खरीद, खाद्य सामग्री तथा मिलिट्री शिविरों में करते हैं। समर्थक और कार्यकर्ताओं को जेल से बाहर निकालने के लिए अदालती कार्रवाई पर भी धन खर्च किया जाता है। एकत्र की गई रकम का नियोजन भी सावधानी से किया जाता है। इससे समर्थकों के लिए वाहन खरीदे जाते हैं, सोने के बिस्कुट खरीदे जाते हैं तथा कई बार बैंक में भी रखे जाते हैं। अगर केंद्र व राज्य सरकारों को नक्सलियों, माओवादियों से सही मायने में लड़ना है तो यह जरूरी है कि इनकी आमदनी पर कंट्रोल हो। यह तभी संभव है जब इनकी दहशत समाप्त हो। अकेले मिलिट्री या पुलिस कार्रवाई से यह समस्या खत्म नहीं की जा सकती।

-अनिल नरेन्द्र

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