Wednesday 11 June 2014

गंगा की स्वच्छ जलधारा बनाने में एक बड़ी बाधा गंगा माफिया भी हैं

यह अत्यंत प्रसन्नता की बात है कि मोदी सरकार का मिशन गंगा शुरू हो गया है। गंगा को अविरल व निर्मल बनाने के साथ उसके परिवहन, पर्यटन व पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए केंद्र सरकार के चार मंत्रालय जल संसाधन, परिवहन, पर्यटन व पर्यावरण मिलकर काम करेंगे। जल संसाधन सचिव की अध्यक्षता में इन चारों मंत्रालयों की एक समिति गठित की गई है जो एक महीने में विस्तृत रिपोर्ट पेश करेगी। जल ही जीवन है और गंगा जीवनदायिनी। उत्तराखंड में समुद्र से 14000 फुट की ऊंचाई पर गंगोत्री ग्लेशियर से शुरू होने वाली यह पवित्र नदी बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है। दुनिया की बड़ी नदियों में शामिल गंगा भारत के एक-चौथाई से अधिक भू-भाग को अपने जल से सिंचित करती है। 5 राज्यों (उत्तराखंड, यूपी, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल) से होकर गुजरती है। गंगा अपनी सहायक नदियों के साथ देश के बड़े भू-भाग के लिए सिंचाई का बारहमासी स्रोत है। नदी की वजह से मछली उद्योग भी काफी फल-फूल रहा है। गंगा पर्यटकों को भी आकर्षित करती है। इसके तट पर स्थित हरिद्वार, इलाहाबाद और वाराणसी बड़े तीर्थ शहर हैं। 2525 किलोमीटर है गंगा की कुल लम्बाई। 90 फीसदी गंगा का जल सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है। 40 हजार शवों का प्रत्येक वर्ष गंगा के किनारे अंतिम संस्कार किया जाता है। 17 पॉवर प्लांटों से वर्तमान में बिजली का उत्पादन होता है और 69 हाइड्रो पॉवर प्लांट अलकनंदा और भागीरथी पर बनाने की योजना है। दरअसल गंगा की पवित्रता और अच्छाइयां ही उसकी दुश्मन बन गई हैं। लोगों की नासमझी और गैर-जिम्मेदाराना रवैये की वजह से नदी में लगातार प्रदूषण की वजह से कुछ स्थानों पर तो इसका जल आचमन करने लायक भी नहीं बचा है। यह नदी धार्मिक अनुष्ठानों के अपशिष्ट, औद्योगिक कचरे और शहर से निकलने वाले सैकड़ों नालों की गंदगी ने दुनिया की सबसे पवित्र नदी की यह हालत की है। एक अनुमान के मुताबिक हर रोज गंगा में 2 अरब लीटर गंदगी प्रवाहित कर दी जाती है। गंगा के किनारे बसे छोटे-बड़े करीब 100 शहरों के नालों का पानी बिना ट्रीटमेंट के गंगा में डाल दिया जाता है। गंगा को साफ करने, पानी को निर्मल बनाना आसान कार्य नहीं है। स्वर्गीय राजीव गांधी ने भी गंगा एक्शन प्लान बनाया था पर कुछ भी ठोस नहीं हो सका। पहली बार गंगा की सफाई के लिए नरेन्द्र मोदी की समयबद्ध नीति से गंगा मैया के श्रद्धालुओं में तो काफी खुशी है मगर गंगोत्री से गंगा सागर तक गंगा-भूमि का जमकर दोहन करने वाले माफियाओं में हड़कम्प जरूर मच गया है। यूपी, बिहार व पश्चिम बंगाल की हजारों एकड़ जमीन इन माफियाओं के कब्जे में है और राज्य सरकारों में उनकी पैठ अच्छी है। गंगा विशेषज्ञों का मानना है कि गंगा में अविरल धारा के सबसे बड़े बाधक यही गंगा-विरोधी तत्व हैं। गंगा की जमीन पर मजदूरों के छोटे-बड़े गांव बसा दिए गए हैं। बड़े शहरों के किनारे गंगा की जमीन पर स्थानीय नेताओं व उद्योगपतियों के आलीशान मकान, डेयरी फार्म बन गए हैं और इनसे निकलने वाली गंदगी गंगा में बहाई जाती है। इतना ही नहीं, यह भी पता चला है कि गंगा सफाई अभियान के नाम पर राज्य सरकारों के जो शपथ पत्र हैं वह भी वास्तविकता से परे हैं। गंगा सफाई के नाम पर देश ही नहीं, विदेशी संगठनों ने भी मोदी सरकार को अपना समर्थन दिया है जिसमें 80 देशों में फैला अखिल विश्व गायत्री परिवार सबसे आगे है जिसके मुख्यालय शांति पुंज हरिद्वार में गत वर्ष जून में मोदी स्वयं गए थे और गंगा पर किए जा रहे कार्यों के लिए गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ. प्रणव पांड्या की प्रशंसा भी की थी। सरकार ऐसे सभी संगठनों को भी गंगा अभियान में शामिल करेगी जो गंगा में अविरल निर्मल धारा के लिए काम कर रहे थे। इससे सरकार को गंगा माफियाओं के खिलाफ आम जनता का समर्थन भी मिलेगा। क्योंकि जब तक इन माफियाओं को गंगा-भूमि से निकाला नहीं जाएगा तब तक अविरल धारा की कल्पना पूरी नहीं हो सकती। गंगा एक्शन प्लान को अंतिम रूप देने से पहले मंत्रालय ने एक सैटेलाइट सर्वे कराने का भी फैसला किया है जिसके बाद राज्य सरकारों से गंगा माफियाओं के प्रति नरमी को लेकर जवाब-तलब किया जाएगा।

-अनिल नरेन्द्र

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