Thursday, 12 June 2014

क्या भारत-चीन के बीच नया अध्याय लिखा जाएगा?

नरेन्द्र मोदी सरकार के गठन के दो हफ्तों के भीतर चीन के विदेश मंत्री वांग यी का भारत आना अपने आप में एक बहुत बड़ा प्रश्न है। क्या वांग यी नई सरकार से महज सम्पर्प साधने की औपचारिकता पूरी करने आए या यह टटोलने आए कि नरेन्द्र मोदी सरकार का चीन के प्रति  क्या रुख है? भारत पहुंचने से पहले एक साक्षात्कार में वांग ने मोदी को चीन का मित्र बताते हुए इस यात्रा का खाका खींच दिया था। उन्होंने कहा कि भारत और चीन में काफी समानताएं हैं। चीन भारत के विकास का स्वागत करता है और उसमें सहयोग देने का उत्सुक है। चीन भारत की नई सरकार के साथ काम करने को उत्सुक है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा कार्यभार सम्भालने पर सबसे पहले चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग ने फोन पर बात की थी। चीन ने भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है तो उसका स्वागत है पर भारत चीन पर भरोसा नहीं कर सकता। पिछले 10 साल में डॉ. मनमोहन सिंह सरकार के जमाने में चीन की सेना जब चाहे सीमा पार कर हमारे इलाके में कैम्प गाढ़ कर बैठ जाती थी या सीमा पर बन रही हमारी सड़कों तक को महज बंदर घुड़की पर बंद करवा देती थी। जम्मू-कश्मीर या अरुणाचल के लोगों को अपने यहां आने की इजाजत ऐसे अपमानजनक शर्तों पर देती थी जो भारत की सप्रभुता पर सीधा हमला करता था। संबंध सुधारने के लालच में चीन को हमने सबसे बड़ी व्यापारिक साझीदारी दी लेकिन वहां भी उसकी मनमानी जारी रही। करीब 40 अरब डॉलर का सालाना व्यापार घाटा हम ऐसी ही मजबूरी के कारण झेल रहे हैं। इतना ही नहीं, चीन सागर के वियतनाम वाले हिस्से में जब हमने तेल और गैस की खोज शुरू की तो चीन के जंगी जहाजों ने हमें वहां से निकल जाने की सीधी धमकी दे डाली। चुनाव के दौरान एक प्रचार सभा में नरेन्द्र मोदी ने चीन की विस्तारवादी सोच से बाज आने की चेतावनी दी थी। इस पर चीन ने पलटवार करते हुए कहा था कि उसने किसी देश की एक इंच जमीन पर कब्जा करने के लिए कभी अपनी ओर से नहीं  उकसाया। चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से सोमवार शाम को बात करने के बाद कहा कि भारत और चीन के बीच बहुत लम्बी सीमा है जो निर्धारित नहीं है, इसलिए वहां पर अक्सर वारदातें हो जाती हैं। लेकिन इसका समाधान शांति और बातचीत से ही निकाला जाना चाहिए। हमारी कोशिश होगी कि इसका असर हमारे आपसी रिश्तों पर न पड़े। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बातचीत का हवाला देते हुए उन्होंने दोनों देशों के बीच पर्यटक आवाजाही बढ़ाने के लिए वीजा नियमों को और सरल बनाने पर जल्द ही एक नया वीजा समझौता करने का ऐलान भी किया। उन्होंने कहा कि वह भारत के साथ सीमा मसले के हल को तैयार हैं लेकिन जब तक यह नहीं होता तब तक भारत और चीन सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखने को प्रतिबद्ध है। भारत के साथ सामरिक साझेदारी के रिश्ते को मजबूत करने पर जोर देते हुए चीन के विदेश मंत्री ने कहा कि वह भारत के विकास में हर तरह के सहयोग की ओर अपना योगदान देने को  तैयार है। भारत और चीन के बीच अरुणाचल हमेशा विवाद का मुद्दा रहा है। चीन अरुणाचल पर अपना अधिकार जमाता है और यह विवाद वांग यी ने स्वीकार भी किया। चीनी विदेश मंत्री ने कहा हालांकि अरुणाचल को लेकर विवाद है लेकिन हमने वहां के लोगों को स्पेशल वीजा इसलिए देने की नीति बनाई है कि उन्हें चीन जाने में कोई कठिनाई न हो। चीन की इस नीति से उस इलाके की सप्रभुता को लेकर कोई समस्या नहीं होगी। हम इस मुद्दे पर बातचीत के लिए तैयार हैं। एक चीन की पारम्परिक नीति को अस्वीकारे बिना नरेन्द्र मोदी इस बिगड़ेल पड़ोसी को देश की तरफ से दो टूक संदेश देने में सफल रहे। अरुणाचल पर हक जताकर भारत को लगातार उकसाने वाली हरकतों का जवाब मोदी ने भी उसी तेवर में दे दियाöअरुणाचल के ही नौजवान सांसद किरण रिजिजू को गृह राज्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया गया और पूर्व सेनाध्यक्ष वीके सिंह को नॉर्थ-ईस्ट राज्यों की देखरेख की जिम्मेदारी दे दी गई। आने वाले महीनों में चीन के राष्ट्रपति जी जिनताओ भारत दौरे पर आ रहे हैं तो हमें जहां उनका दिल खोलकर स्वागत करना चाहिए वहीं यह भी पूछा जाए कि पाक के कब्जे वाले कश्मीर में जिस तेजी से वह अपनी सेना घुसा रहे हैं, उसका क्या मतलब है? हजारों वर्ग मील का भारत क्षेत्र चीन ने दबा रखा है उसके बारे में कोई चर्चा नहीं करते। चीन के नए रवैये का हम स्वागत करते हैं और उम्मीद करते हैं कि दोनों देशों के संबंध सुधरेंगे पर हमें चीन की कथनी और करनी पर कड़ी नजर रखनी होगी। चीन पर पूरी तरह से विश्वास भी नहीं किया जा सकता।

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