Thursday 12 June 2014

एक तरफ सूरज की मार तो दूसरी तरफ बिजली कटौती की

समूचा उत्तर भारत पिछले कई दिनों से भीषण गर्मी के कराण त्राहि-त्राहि कर रहा है। सुबह उठते ही सूरज तपना शुरू करता है, दिन चढ़ने पर उसका सामना करना मुश्किल हो जाता है और उसके ओझल होने के घंटों बाद तक उसकी मौजूदगी का तीखा एहसास होता रहता है। चिलचिलाती धूप, आग उगलता सूरज और गर्मी से परेशान हैं लोग। रविवार के दिन राजधानी में कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला जब तापमान ने पिछले 62 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। रविवार को पालम में पारा 47.8 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया। तेज धूप और लू के कारण घर से बाहर निकलना भी मुश्किल हो गया है। जैसे-जैसे दिन चढ़ता है सड़कों पर जनजीवन मानों ठहर-सा जाता है। कपड़े से सिर ढके बिना सड़क पर चलना आफत को दावत देना है। माना जा सकता है कि गर्मी का मौसम आदिकाल से ही जीना मुहाल करता रहा है लेकिन जनसंख्या के बढ़ते दबाव और वातावरण में गर्मी पैदा करने वाले मानवजनित यंत्रों की वजह से साल-दर-साल स्थितियां बेकाबू होती जा रही हैं। गर्मी से  बचाव के साधन पंखा, कूलर, एसी, फ्रिज आदि बिजली की किल्लत के कारण बेमानी साबित हो रहे हैं। चढ़ते पारे के बीच बिजली कटौती ने दिल्लीवासियों के दिन का चैन और रात की नींद छीन ली है। पिछले 10 दिनों से चला आ रहा बिजली संकट खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। ज्यादातर इलाकों में दो से छह घंटे तक बिजली की कटौती हो रही है। कहीं लोड शैडिंग तो कहीं बिजली उपकरणों में आ रही तकनीकी खराबी से लोगों का जीना हराम हो रहा है। बिजली की मांग के लिए लोग सड़कों पर उतर आए हैं। जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे हैं, धरने दिए जा रहे हैं। वहीं बिजली वितरण कम्पनियों का कहना है कि पिछले शुक्रवार को आए आंधी-तूफान से खराब हुई ट्रांसमिशन लाइन और टॉवर गिरने से डिस्कॉम के नेटवर्किंग सिस्टम पर भी असर पड़ा है। बिजली की किल्लत से जूझ रहे दिल्ली के लोगों को राहत देने के लिए दिल्ली के तमाम मॉलों में रात 10 बजे के बाद बिजली आपूर्ति नहीं की जाएगी। इसके साथ ही सरकारी कार्यालयों में रोजाना एक घंटा एयर कंडीशनर बंद रखे जाएंगे। दिल्ली देश का दिल है, इसलिए इसके दिल से निकली आवाज देश के बाकी हिस्सों के लिए भी प्रेरक होनी चाहिए। तमाम राज्यों को इसी तर्ज पर बिजली की फिजूलखर्ची पर लगाम लगानी होगी। बिजली बचाने के उपायों पर गम्भीरता से विचार करना होगा। यह काम किसी खास मौसम या अवसर पर नहीं बल्कि पूरे सालभर करने होंगे ताकि गर्मी के मौसम में बिजली और पानी की भरसक सप्लाई हो सके। गर्मी में आग बरसाते सूरज पर तो मानव का वश नहीं, लेकिन जो उपाय उसने इन आपदाओं के निमित्त अपने दम पर जुटाए हैं उनका संतुलित उपयोग कर कहीं न कहीं राहत पाई जा सकती है। वैज्ञानिक अक्सर दलील देते हैं कि मौसम का स्वभाव ग्लोबल वार्मिंग के कारण बदल रहा है। यह भी कहा जाता है कि शहर सीमेंट के हो चुके हैं, पेड़ कटते जा रहे हैं इससे गर्मी बढ़ रही है पर 62 साल पहले न तो कोई ग्लोबल वार्मिंग थी, न शहर सीमेंट में तब्दील हो रहे थे और न ही जनसंख्या इतनी थी, तो फिर क्या कारण था कि 1952 में लगभग इतनी ही गर्मी पड़ी थी?

-अनिल नरेन्द्र

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