Saturday 21 June 2014

कुछ एनजीओ के गोरख धंधे

देश के विकास में रोड़ा बनने वाले गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) पर गाज गिर सकती है। गृह मंत्रालय ऐसे एनजीओ को विदेशी सहायता लेने के लिए दी गई इजाजत की समीक्षा करने में जुट गया है। प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी गई आईबी यानि खुफिया ब्यूरो की एक रिपोर्ट में विदेशी अनुदान प्राप्त करने वाले स्वयंसेवी संगठनों को देश की आर्थिक सुरक्षा के लिए खतरनाक करार देते हुए यहां तक कहा गया है कि जीडीपी में दो से तीन फीसद की कमी के लिए यह एनजीओ जिम्मेदार हैं। खुफिया ब्यूरो की इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने से हलचल मचना स्वाभाविक है। नई सरकार का गठन होने के बाद ही जिस तरह यह रिपोर्ट सामने आई उससे यह स्पष्ट है कि उसे पहले ही तैयार कर लिया गया होगा। आश्चर्य नहीं कि उसे जानबूझ कर दबाए रखा गया हो। एनजीओ को विदेशी सहायता लेने के लिए विदेशी सहायता नियामक कानून (एफसीआरए) के तहत गृह मंत्रालय से अनुमति लेनी होती है। इसके लिए एनजीओ को बताना पड़ता है कि विदेशी मदद का उपयोग सामाजिक कार्यों के लिए किया जाएगा। आईबी की रिपोर्ट से साफ है कि कुछ एनजीओ विदेशी सहायता का उपयोग सामाजिक कामों के लिए न कर देश के विकास में बाधा डालने के लिए कर रहे हैं। आईबी रिपोर्ट में जिन एनजीओ पर आरोप लगाए गए हैं उन्हें मिली एफसीआरए क्लीयरेंस की समीक्षा हो सकती है। इन एनजीओ को अपनी सफाई देने का मौका भी दिया जाएगा। आईबी की रिपोर्ट प्रधानमंत्री कार्यालय को तीन जून 2014 को सौंपी गई। हकीकत यह है कि अपने देश में गैर-सरकारी संगठन बनाना एक कारोबार  बन गया है। अधिकांश संगठन ऐसे हैं जो बनाए किसी और काम के लिए जाते हैं लेकिन वह करते कुछ और हैं। शायद उनकी ऐसी ही गतिविधियों को देखते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कुछ समय पहले यह कहा था कि 90 फीसद एनजीओ फर्जी  हैं और उनका एकमात्र उद्देश्य पैसा कमाना है। खुफिया ब्यूरो की रिपोर्ट एक और गंभीर बात कह रही है। उसके मुताबिक कई गैर-सरकारी संगठन विदेश से पैसा लेकर विकास से जुड़ी परियोजनाओं का विरोध करते हैं। ग्रीन पीस इंटरनेशनल की भारतीय शाखा ग्रीन पीस इंडिया को कोयला और परमाणु ऊर्जा आधारित परियोजनाओं के विरोध के लिए ही जाना जाता है। इसी तरह कुछ और गैर-सरकारी संगठन ऐसे हैं जो हर बड़ी परियोजना का विरोध करते हैं। इन संगठनों की मानें तो न तो बड़े बांध और बिजली घर बनाने की जरूरत है और न ही अन्य बड़ी परियोजनाओं पर काम करने की। पर्यावरण की रक्षा की आड़ में गैर-सरकारी संगठन जिस तरह हर बड़ी परियोजना के विरोध में खड़े हो जाते हैं वह कोई शुभ संकेत नहीं है। यह सही है कि पर्यावरण की रक्षा जरूरी है लेकिन उसके नाम पर औद्योगिकीकरण को ठप कर देने का भी कोई मतलब नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सात ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हें लक्षित कर यह एनजीओ आर्थिक विकास दर को नकारात्मक दिशा में ले जाएंगे। करीब 24 पेज की इस रिपोर्ट के मुताबिक जातिगत भेदभाव, मानवाधिकार उल्लंघन और बड़े बांधों के खिलाफ लामबंध यह एनजीओ सारा जोर विकास दर धीमी करने में लगे हैं। इनमें खनन उद्योग, जीन आधारित फसलों, खाद्य, जलवायु परिवर्तन और नाभिकीय मुद्दों को हथियार बनाया गया है। राष्ट्रहित से जुड़ी परियोजनाओं का विरोध करने वाले इन एनजीओ को अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, नीदरलैंड के अलावा नार्वे, स्वीडन, फिनलैंड और डेनमार्प जैसे देशों या उससे जुड़ी संस्थाओं से अनुदान मिलता है। इस धन का उपयोग तमिलनाडु में कुडनकुलम परमाणु बिजली घर, कोयला व बाक्साइट  खदान व नदियों को जोड़ने की योजनाओं के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने में किया जा रहा है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि एक एनजीओ के विदेशी कार्यकर्ता के लैपटॉप में भारत का नक्शा मिला है जिसमें मौजूदा व प्रस्तावित 16 परमाणु संयंत्रों और पांच यूरेनियम खदानों को चिन्हित किया गया है। गृह मंत्रालय के विदेशी प्रकोष्ठ ने ग्रीन पीस को विदेशी चन्दे और उसे खर्च करने के उद्देश्यों से जुड़ी प्रश्नावली भेजी है। इस मामले में सच्चाई जितनी जल्दी सामने आए उतना ही बेहतर है। क्योंकि हमारे देश को एक बड़ी संख्या में गैर-सरकारी संगठनों के विकास विरोधी रवैये की भारी कीमत चुकानी पड़ रही है।
-अनिल नरेन्द्र


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