Wednesday, 11 June 2014

सुशासन का एजेंडा

भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में जिन बातों का उल्लेख किया था और नरेन्द्र मोदी ने अपनी हर रैली में जिन उम्मीदों की झलक दिखाई थी उन्हीं सबको संग्रहित करके सरकारी तंत्र ने राष्ट्रपति को थमा दिया जिसे उन्होंने अपना संसदीय दायित्व निभाते हुए संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करते हुए निभाया। यह भारतीय लोकतंत्र की समन्वयवादी परम्परा की खूबसूरती ही है जिस सरकार में महामहिम राष्ट्रपति खुद वित्तमंत्री रहे हैं उसी की नाकामियों का विवरण पत्र प्रस्तुत करते हुए उन्होंने जिस नई सरकार का संकल्प पत्र पढ़ा उसे `मेरी सरकार' कहकर संबोधित भी किया।
बहरहाल अपने अभिभाषण के दौरान महामहिम ने अपनी सरकार के जिन संकल्पों का विवरण दिया उनमें से कुछ तो ऐसे हैं जिन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अति उत्साही समर्थकों को भी विश्वास नहीं हो रहा है। शायद ही कोई सपनों के संसार का वासी इस आश्वासन को सही मान ले कि 2022 तक देश के हर व्यक्ति को पक्का मकान मिल जाएगा चाहे वह शहरी हो या फिर देहाती। इस तरह की और तमाम घोषणाएं एवं उनके क्रियान्वयन का स्पष्टीकरण न होने से विरोधी उम्मीद  लगा सकते हैं कि वे `अच्छे दिन आने वाले हैं' का मजाक उड़ा सकेंगे यानि विरोधी भी अपने अस्तित्व की उम्मीद लगा सकते हैं। लेकिन इस बात से तो विरोधी इंकार नहीं कर सकते कि राष्ट्रपति के अभिभाषण में देश के समक्ष मुंह बाए खड़ी समस्याओं और चिन्ताओं को दूर करने के लिए विस्तृत एजेंडा प्रस्तुत किया गया है। इससे एक बात तो स्पष्ट हो ही जाती है कि देश की जनता को इस बात का एहसास हो गया कि यह सरकार पूर्ववर्ती सरकार से बिल्कुल भिन्न है जो खैराती लाल बनी हुई थी। देश की अर्थव्यवस्था की कीमत पर मुफ्त की रियायतों एवं सुविधाओं का कोई उल्लेख नहीं है। इससे यह बात समझ में आ जानी चाहिए कि मोदी सरकार का पूरा ध्यान जो बुनियादी ढांचों और स्थायी विकास पर केंद्रित होगा। मोदी सरकार से उम्मीद भी यही थी कि वे पिछली सरकार के लोकलुभावन वादों से बचेंगे और देश के विकास की बुनियादी जरूरतों पर ध्यान देंगे।
महामहिम के अभिभाषण में मोदी सरकार के इस नीयत से भी पर्दा उठ गया कि वे विकास के लिए राज्यों के प्रति क्या व्यवहार अपनाएंगे। मोदी ने टीम इंडिया के रूप में काम करने का जो संकल्पना व्यक्त किया है वह उनके मुख्यमंत्रित्व काल के अनुभव के कारण ही सामने आया है। मोदी को पता है कि विकास की गाड़ी तब तक आगे नहीं बढ़ सकती जब तक केंद्र व राज्य मिलकर काम नहीं करेंगे। संविधान के इसी संघीय ढांचे और भावनाओं को जो केंद्र सरकार नहीं समझती वह विकास की सही संकल्पना नहीं कर पाती। बदले की भावना से यदि राज्यों के साथ केंद्र का बर्ताव होता है तो विकास की तमाम परियोजनाएं स्वत ठप पड़ जाती हैं।
इस बात में तो कोई संदेह नहीं है कि नरेन्द्र मोदी बेजोड़ कम्युनिकेटर हैं इसलिए सुशासन की वह सारी बातें आम जनता तक पहुंचाने में कामयाब रहे हैं। महंगाई से निजात पाने के लिए जहां कृषि उत्पादन पर बल दिया गया वहीं कालाबाजारी पर रोक लगाने की बात कही गई। रेलगाड़ियों की गति बढ़ाने के लिए क्वालिड्रिलेटरल परियोजना का सहारा लेने की बात कहकर उन्होंने अपनी नीति का खुलासा ही नहीं किया बल्कि रेलवे के लोगों को भी रास्ता दिखाया है। इसी तरह महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण की  बात हो या सभी राज्यों में आईआईटी, आईआईएम और एम्स की सुविधा की बात करके उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि देश में विकास की यात्रा अभी बहुत करनी है। मोदी ने अपने उत्साहवर्द्धक सुझाव भी दिए हैं जैसे 5टी यानि ट्रेडीशन (परम्परा), ट्रेड (व्यापार), टूरिज्म (पर्यटन), टेक्नोलॉजी (तकनीक) और टैलेंट (कौशल)। इससे लगता है कि सरकार में देश के लोगों के लिए कुछ करने की तमन्ना है।
सरकार के एजेंडे की प्रमुख बात `सबका साथ सबका विकास' है। इस सन्दर्भ में अभिभाषण में दलितों और आदिवासियों के उत्थान के बारे में तो उल्लेख है ही साथ ही अल्पसंख्यकों को समान सहभागी बनाने की बात कहकर मोदी सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि समाज के किसी वर्ग को सरकार छोड़ने वाली नहीं है। विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय को यह एहसास कराने की कोशिश की गई है कि यह सरकार उन्हें छोड़ नहीं रही है। मुस्लिम समुदाय हो या ईसाई सरकार के लिए यह सभी अल्पसंख्यक समुदाय उतने ही महत्वपूर्ण  हैं जितने कि दूसरे धर्म एवं जाति के लोग, इसलिए मुस्लिम समुदाय को कम से कम इस बात पर गंभीरता से मंथन करने की जरूरत है कि वह जिन राजनीतिक दलों से अपने वर्ग के विकास की उम्मीदें लगाए बैठा रहा उन्हीं दलों की सत्ता देश में सबसे ज्यादा रहने के बावजूद उसकी ऐसी दुर्गति हुई है। मुस्लिम समाज को इस बात का भी मंथन करना होगा कि उनके नेता अपने समुदाय का नेतृत्व इस तरह करते हैं जैसे कि कोई सेनापति घोड़े पर पीछे मुंह करके बैठा हो और घोड़ा सरपट मनमर्जी से दौड़ रहा हो। मुस्लिम समुदाय को इस बात का एहसास होना चाहिए कि यदि उनकी संख्या भाजपा में भी होती तो उनके नेता भी शीर्ष पदों पर होते।

बहरहाल मोदी सरकार के संकल्प में समृद्धि और सुरक्षा का उल्लेख महामहिम के अभिभाषण में है। इसलिए कहा जा सकता है कि यह सरकार के सुशासन का एजेंडा है क्योंकि जब सभी वर्गों को अवसर, वंचित वर्गों को मुख्यधारा में जोड़ने और वर्षों से चली आ रही अन्यायपूर्ण रूढ़ियों पर प्रहार ही तो है सुशासन। और सुशासन भी वह जिसका एक निश्चित विजन हो।

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