Sunday 22 June 2014

इराक में फंसे भारतीयों को सुरक्षित निकालना सरकार के लिए चुनौती

नरेन्द्र मोदी सरकार को बने हुए अभी एक महीना भी नहीं हुआ कि इराक में फंसे भारतीय सरकार के लिए एक चुनौती बन गए हैं। इराक में 40 भारतीयों के अपहरण की घटना से पूरे देश में चिन्ता की लहर फैल गई है। अपहृत भारतीयों में ज्यादातर पंजाब के हैं। इन्हें इराक के मोसुल में संभवत उस वक्त अगवा किया गया जब इन्हें बाहर निकालने की कोशिश चल रही थी। दूसरी तरफ तिकरित के एक अस्पताल में 46 भारतीय नर्सें फंसी हुई हैं जिनमें ज्यादातर केरल की हैं। इराक में सुन्नी विद्रोही संगठन आईएसआईएस का अभियान शुरू हुए कई दिन हो गए हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन ने कहा है कि हमें इराक के विदेश मंत्रालय की ओर से बताया गया है कि कुछ भारतीयों को अन्य देशों के नागरिकों के साथ जहां बंधक बनाकर रखा गया है उस जगह की पहचान कर ली गई है। बंधक भारतीयों को सुरक्षित छुड़ाने की सरकार की दृढ़ इच्छा जताते हुए सुषमा स्वराज (विदेश मंत्री) ने कहा है कि वह सुरक्षित हैं और जो लोग गड़बड़ी वाले क्षेत्रों में कठिन परिस्थितियों में फंसे हैं उन्हें सुरक्षित वापस लाने में हम कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। अकबरुद्दीन ने कहा कि इराकी सरकार ने भी भारतीयों के अपहरण की पुष्टि की है। इन 40 अपहृत भारतीयों के साथ ही चरमपंथियों के कब्जे में आए इराक के अन्य शहर तिकरित में फंसी भारत की 46 नर्सों को लेकर भी चिन्ता बनी हुई है। इराक में 10 हजार से अधिक भारतीय विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं जिनके सिर पर एक पराए देश में छिड़े गृहयुद्ध की तलवार लटक रही है। इराक में भारतीयों सहित कई देशों के नागरिक इस छिड़े गृहयुद्ध में फंस गए हैं। लेकिन असल खतरा तो इससे भी अधिक भयावह है जिसका एहसास धीरे-धीरे दुनियाभर में गहराता जा रहा है। इराक को संकट में डालने वाले इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया के सुन्नी आतंकियों की निगाह केवल मध्य-पूर्व देशों पर ही नहीं है बल्कि वह पूरी दुनिया में कट्टर इस्लामिक साम्राज्य की स्थापना करना चाहते हैं और भारत पर अधिपत्य भी उनकी दूरगामी साजिशों में शामिल है। पहले यह गिरोह अलकायदा से जुड़ा था लेकिन इसकी महत्वाकांक्षाओं ने इसे अलग गुट बनाने पर मजबूर कर दिया। अभी हाल में इसने अपने भविष्य का खाका खींचने वाला एक नक्शा प्रसारित किया है जिसका नाम इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासन रखा गया है और इसमें गुजरात सहित भारत के तमाम उत्तरी-पश्चिमी इलाके शामिल हैं। ऐसी खबरें भी हैं कि भारत के अनेक नौजवान इस गिरोह के साथ तथाकथित जिहाद में शामिल हैं। इराक में अगवा 40 भारतीयों को छुड़ाने को लेकर चल रहे संकट के बीच भारत के कई शिया संगठनों का भर्ती अभियान भी चलने की खबर आई है। इस्लामिक सुन्नी आतंकी गुट आईएसआईएस के साथ चल रहे संघर्ष के बीच भारत के कई इस्लामी संगठन मजहब की मदद के नाम पर भारत से युवाओं को इराक भिजवाने की तैयारी में हैं। आईएसआईएस द्वारा भारतीय नागरिकों को बंदी बनाना सरासर गलत है। यह इसलिए भी गलत है कि भारत न सिर्प इराक का पुराना दोस्त है बल्कि वहां दखल देने का उसका दूर-दूर तक कोई इरादा नहीं है और न ही इराक में काम कर रहे भारतीय इस युद्ध में वहां के किसी धड़े के लिए चुनौती या खतरा हैं। हमारी सरकार के एजेंडे में तो फिलहाल इन बंदी लोगों समेत उन तमाम भारतीयों की सकुशल वापसी सबसे ऊपर होनी चाहिए जो कामकाज के सिलसिले में वहां लम्बे समय से रह रहे हैं। तिकरित में एक अस्पताल में 40 से ज्यादा भारतीय नर्सों के फंसे होने की कहानी भी कम दर्दनाक नहीं है जो कर्ज लेकर वहां गई हैं और अब बगैर वेतन के वहां से लौटने को बेताब हैं। पिछले तीन-चार दिनों में मोदी सरकार ने फंसे भारतीय नागरिकों को सुरक्षित लाने के लिए कई कदम उठाए हैं पर वहां की मौजूद जटिल स्थिति स्थिति को और बिगाड़ रही है। इराक की अल मलिकी सरकार का हुक्म बगदाद से बाहर नहीं चलता। जाहिर है इराक का यह घटनाक्रम केंद्र की नई नवेली मोदी सरकार के लिए एक विकट चुनौती की तरह है।

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