Tuesday, 10 June 2014

मोदी की अमेरिकी यात्रा से दोनों देशों के संबंध सुधरेंगे

वह कहावत है न दुनिया झुकती है झुकाने वाला चाहिए। नरेन्द्र मोदी को अपनी जमीन पर पांव रखने की इजाजत तक नहीं देने वाला अमेरिका अब उन्हीं के लिए लाल कालीन बिछाने की तैयारी कर रहा है। राष्ट्रपति बराक ओबामा का न्यौता स्वीकारते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सितम्बर के आखिरी हफ्ते में अमेरिका जाने का मन बना लिया है। सितम्बर के इन्हीं दिनों में संयुक्त राष्ट्र की आम सभा भी न्यूयार्प में होनी है और संभावना है कि प्रधानमंत्री के रूप में मोदी भी इस मौके पर वहां मौजूद रहेंगे। संयुक्त राष्ट्र के इस सालाना जलसे के दौरान अमेरिका में तमाम विदेशी शीर्ष नेताओं की भीड़ होती है और विवादों से  बचने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति आमतौर पर किसी से अलग से मिलना पसंद नहीं करते। लेकिन मोदी के मामले में ओबामा यह परंपरा तोड़ते दिख रहे हैं। यह वही अमेरिका है जिसने पिछले कई वर्षों तक मोदी को वीजा तक देने से इंकार किया और बार-बार बेइज्जत किया। अब अगर ओबामा पलटी खा रहे हैं तो भी इसमें अमेरिका का स्वार्थ ज्यादा है। मामला सीधे अमेरिकी आर्थिक और सामरिक हितों से जुड़ा है। भारत का रिटेल बाजार, सुरक्षा सौदों और एटॉमिक रिएक्टरों का मामला अमेरिका को बेचैन कर रहा है। पिछले कुछ महीनों में अमेरिका और भारत के रिश्तों में गिरावट आई है और यह कहें कि तनाव की स्थिति बनी हुई है, गलत नहीं होगा। कुछ समय पहले अमेरिका में तैनात हमारी राजनयिक देवयानी खोबरागड़े के साथ जो व्यवहार हुआ था, उससे दोनों देशों के रिश्ते खटाई में पड़ते दिख रहे थे। भारतीयों के लिए एम-1 वीजा के मामले में भी अमेरिकी भेदभाव साफ दिखाई पड़ रहा था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के कार्यभार संभालते ही निर्माण क्षेत्र में सक्रिय अमेरिका के शक्तिशाली दबाव समूह ने भारत विरोधी रुख में परिवर्तन कर लिया है। इस दबाव समूह को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में भारत और अमेरिका पे व्यावसायिक रिश्ते न केवल मजबूत होंगे बल्कि आर्थिक विकास व सुधारों का नया युग शुरू होगा। अमेरिका के नेशनल एसोसिएशन ऑफ मैन्यूफैक्चरर्स के अध्यक्ष व सीईओ जय टिमंस ने कहा कि अमेरिकी मैन्यूफैक्चरिंग को उम्मीद है कि भारत-अमेरिका के बीच आर्थिक रिश्ते पटरी पर वापस आ जाएंगे। लम्बे अरसे से अच्छे चल रहे भारत-अमेरिका रिश्तों में हाल के दिनों में कुछ खटपट दिखने लगी थी। खासकर देवयानी खोबरागड़े विवाद ने खटास काफी बढ़ा दी थी। ऐसे में मोदी का सत्ता में आना दोनों देशों के कूटनीतिक अधिकारियों की नींद उड़ाने के लिए काफी हैं। अगर दोनों पक्षों ने पर्याप्त परिपक्वता दिखाई और आपसी रिश्तों को नई उंचाई देना जरूरी समझा तो दोनों देशों के हितों के लिहाज से यह जरूरी भी है कि भारत-अमेरिका पुरानी बातों को छोड़ आगे बढ़ने का प्रयास करें। नरेन्द्र मोदी जब अमेरिका जाएं और ओबामा से अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बारे में जरूर चर्चा करें। अमेरिका की नई अंतरिम राजदूत कैथलीन स्टीफेंस ने नई दिल्ली आकर कार्यभार संभाल लिया है। कैथलीन ने पूर्व अमेरिकी राजदूत नैंसी पावेल द्वारा 22 मई को भारत छोड़ने के बाद यह पदभार संभाला है। स्टीफेंस ने भारत के साथ मिलकर अफगानिस्तान में सफल  बदलाव, आतंकवाद-रोधी उपायों पर विचार और विस्तार, कानून प्रवर्तन सहयोग और लोगों के आपसी रिश्तों के विकास को आगे बढ़ाने पर काम करने की बात कही है। जिसका हम स्वागत करते हैं और उम्मीद करते हैं कि मोदी-ओबामा दोनों देशों में सद्भावना और हर संभव क्षेत्र में आपसी योगदान बढ़ाएंगे।

-अनिल नरेन्द्र

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