Thursday 21 August 2014

25 साल से लटका पड़ा है थलसेना के लिए एम-777 तोपों का सौदा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषणों में एक बात कही थी कि भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना पड़ेगा। इस विचार का स्वागत होना चाहिए। हम अरबों रुपए रक्षा सामान के आयात पर खर्च करते हैं और फिर भी दूसरे मुल्कों के मोहताज रहते हैं। हालत यह है कि थलसेना को बोफोर्स के बाद 25 सालों में नई तोपें नहीं मिली हैं। अब और इंतजार करना पड़ सकता है क्योंकि 145 अल्ट्रा लाइट होवित्जर तोपों की खरीद के मामले में अमेरिका ने लागत बढ़ा दी है। इसके बाद भारत ने उसे बता दिया है कि तोपों को खरीद पाना अब मुमकिन नहीं होगा। एम-777 होवित्जर तोपों का सौदा 2013 के शुरू में होना था। तब लागत 3600 करोड़ रुपए आने वाली थी। लेकिन मनमोहन सिंह की संप्रग सरकार ने कोई फैसला नहीं किया और अमेरिका ने अगस्त 2013 में सौदे के मूल्य में 300 करोड़ रुपए की वृद्धि कर दी। अमेरिकी खेमे की दलील है कि तोपों की उत्पादन यूनिट ऑर्डर न होने के कारण बंद कर दी गई है। ऐसे में उसे फिर शुरू करने में अतिरिक्त लागत लगेगी और इसका भार तोपों के खरीदार भारत को उठाना होगा। वहीं भारत का कहना है कि जब सौदे की बातचीत जारी हो तो लागत बढ़ा देना सही नहीं है। परिणामस्वरूप होवित्जर तोपों का सौदा 25 साल से लटका हुआ है। घरेलू रक्षा उत्पाद उद्योग को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार ने हाल ही में देश की निजी कम्पनियों को विदेशी साझेदारों से मिलकर वायुसेना के लिए 56 परिवहन विमान बनाने की अनुमति दे दी। वायुसेना के 40 साल पुराने एवरो विमानों की जगह इन्हें शामिल किया जाएगा। इसके साथ ही सरकार ने 21 हजार करोड़ रुपए के रक्षा खरीद प्रस्तावों को भी मंजूरी दी। इसमें जंगी पोतों, गश्ती जहाजों और स्वदेशी हेलीकॉप्टरों की खरीद शामिल है। परिवहन विमान बनाने की परियोजना से एचएएल और बीईएमएल जैसी सरकारी कम्पनियों को दूर रखे जाने पर तत्कालीन भारी उद्योग मंत्री प्रफुल्ल पटेल की आपत्ति पर पूर्व सरकार निर्णय नहीं ले पाई। नई सरकार के कानून मंत्रालय से हरी झंडी मिलने के बाद मूल प्रस्ताव को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया गया। रक्षामंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता में रक्षा खरीदारी परिषद (डीएसी) की तीन घंटे चली मैराथन बैठक में इन प्रस्तावों को मंजूरी दी गई। मोदी सरकार के इस फैसले का स्वागत होना चाहिए। हमारी सुरक्षा फोर्सेस को जरूरी हथियारों की बहुत भारी कमी से जूझना पड़ रहा है। मनमोहन सरकार को तो न जाने क्या हुआ यानि लकवा मार गया था। वह कोई फैसला ही नहीं कर सकी। एक अन्य खबर के अनुसार भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान (आईआईटी) के वैज्ञानिकों ने कम्प्यूटर नियंत्रित ऐसा मानव रहित छोटा एयर क्रॉफ्ट (ड्रोन) बनाने में सफलता पाई है जो सीमा की तो निगरानी करेगा ही, दंगा नियंत्रण में भी प्रशासन का सहयोग करेगा। विमान की खासियत उसका शक्तिशाली वीडियो कैमरा है जो नियंत्रण कक्ष में पूरे क्षेत्र की वीडियो फिल्म भेजता है। यह विमान कार में रखकर कहीं भी ले जाया जा सकता है।

-अनिल नरेन्द्र

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