Saturday 9 August 2014

बम-बम भोले के नारों से गूंजती कश्मीर घाटी

बम-बम भोले और हर-हर महादेव के उद्घोष के साथ छड़ी मुबारक यात्रा अमरनाथ की पवित्र गुफा के लिए धूमधाम से श्रीनगर के दरानामी अखाड़ा से रवाना हुई। प्रतिवर्ष आयोजित की जाने वाली इस यात्रा के तहत भगवान शिव के चांदी के दंड को स्थानीय रामेश्वर मंदिर से अमरनाथ ले जाया जाता है। चांदी के दंड की रखवाली करने वाले महंत दीपेन्द्र गिरी समेत बड़ी संख्या में श्रद्धालु तमाम रह के जोखिम के बावजूद यात्रा में शामिल हुए। छड़ी मुबारक 10 अगस्त को पवित्र गुफा में पहुंचेगी। इसके साथ ही बाबा अमरनाथ की यात्रा का समापन हो जाएगा। हर-हर महादेव, जयकारा वीर बजरंगी और जय बाबा अमरनाथ बर्फानी, भूखे को अन्न प्यासे को पानी के नारों से जम्मू-कश्मीर की धरती पिछले डेढ़ माह से गूंज रही है। आने वालों की बाढ़ में बस एक जज्बा था उन आतंकियों के विरुद्ध भारतीय एकता को परिचय देना जो हमेशा यात्रा पर खतरे के रूप में मंडराते रहते हैं। पौने चार लाख के करीब लोग अभी तक वार्षिक अमरनाथ यात्रा में शामिल हो चुके हैं। न कोई धमकी, न कोई प्रतिबंध, न कोई हादसा और न ही कोई प्राकृतिक त्रासदी इन बढ़ने वालों के कदमों को रोक पाया है। जहां तक यात्रा प्रबंधों में प्रशासन की नीतियों के चलते फैलने वाली अव्यवस्था से वह दो-चार तो होते रहे लेकिन उन्हें यह अव्यवस्थाएं भी रोक नहीं पाईं जिन्हें पार कर 14500 फुट की ऊंचाई पर स्थित पवित्र अमरनाथ गुफा में दर्शानार्थ पहुंचने वालों के कदम नहीं रुके। इतना जरूर था कि पांव से न चल पाने वाले पालकी के सहारे अमरत्व पाने की चाह में उन दुर्गम पहाड़ों की ऊंचाइयों को नापने का प्रयास करते रहे, यहां के शिखर पर खड़े होकर सांस लेना भी दुर्भर था क्योंकि आक्सीजन की कमी से सभी दो-चार होते हैं। यात्रा में भाग लेना वैसे इस बार भी इतना आसान नहीं था क्योंकि श्राइन बोर्ड के निर्देशों के चलते पंजीकरण, स्वास्थ्य प्रमाण पत्र और आयु सीमा की बंदिशें भी थी। एक रोचक बात यह है कि अधिकतर भाग लेने वाले यात्री अनुमति पहलगाम यात्रा मार्ग की लेते हैं और चले जा रहे हैं बालटाल के उस रास्ते से  जो जोखिम भरा तो है लेकिन एक ही दिन में इस मार्ग का प्रयोग कर पवित्र शिवलिंग के दर्शन किए जा सकते हैं। वैसे यात्रा में होने वाले हादसे से अभी तक 40 की जानें भी जा चुकी हैं। सभी की जानें अस्वस्थता के कारण गई तो उनके उन प्रमाण पत्रों पर शंका हुई जो उन्होंने पंजीकरण करवाते समय अधिकारियों को देकर यही जताया था कि वह शारीरिक तौर पर यात्रा में भाग लेने के लिए स्वस्थ हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ बल्कि यात्रा में भाग लेने के लिए इस शर्त को अनिवार्य बना देने के बाद से ही झूठे चिकित्सा प्रमाण पत्र पर यात्रा में भाग लेने वाले गत वर्ष भी बहुत थे जिनमें से कई बाद में मृत्यु को प्राप्त हो गए थे। सच्चाई तो यह है कि अमरनाथ यात्रा दिनों के बीतने के साथ ही राष्ट्रीय एकता और अखंडता की यात्रा के रूप में भी सामने आ रही है। यात्रा में भाग लेने वाले किसी एक प्रदेश के नहीं थे बल्कि सारे देश के विभिन्न भागों से आने वाले रहे। कइयों के दिलों में यह भी जज्बा था कि कश्मीर भारत का है और वह अमरनाथ यात्रा में भाग लेकर इस जज्बे को प्रदर्शित कर सकते हैं। जय बर्फानी बाबा की, हर-हर महादेव।

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