Friday, 29 August 2014

शीला की वापसी से क्या कांग्रेस को संजीवनी मिल सकती है?

केरल के राज्यपाल पद से इस्तीफा देने के बाद दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के सक्रिय राजनीति में उतरने की अटकलें तेज हो गई हैं। शीला दीक्षित ने मंगलवार को अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप दिया। गृहमंत्री राजनाथ सिंह के पद पर बने रहने के आश्वासन के बावजूद शीला जी ने मंगलवार को इस्तीफा देकर भाजपा की कोशिशों पर पानी फेर दिया। यूपीए के दौरान नियुक्त कांग्रेस के नजदीकी राज्यपालों की सूची में शीला एकमात्र ऐसी राज्यपाल थीं जिन्हें भाजपा फिलहाल हटाना नहीं चाह रही थी। भाजपा के रणनीतिकारों ने सरकार को इशारा कर दिया था कि शीला को त्रिवेन्द्रम राजभवन में काबिज रखकर दिल्ली की राजनीति से दूर रखा जाए। शीला के इस फैसले ने दिल्ली के 10 साल पुराने इतिहास को दोहराया है। 2004 में केंद्र में मनमोहन सरकार के गठन के बाद भाजपा नेता मदन लाल खुराना राजस्थान के राज्यपाल का पद छोड़कर दिल्ली की राजनीति में कूद पड़े थे। उस वक्त भी यूपीए सरकार खुराना को दिल्ली नहीं आने देना चाहती थी। दिल्ली की राजनीतिक नब्ज को बारीकी से समझने वाली शीला आने वाले विधानसभा चुनाव में  भाजपा के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती हैं। यही वजह थी कि सोमवार को राजनाथ से मुलाकात के दौरान शीला पर अन्य राज्यपालों की तरह इस्तीफा देने का कोई दबाव नहीं डाला गया था। लेकिन दिल्ली की लगातार 15 साल तक मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित ने आने वाले चुनाव के मद्देनजर इस्तीफा देकर अपना राजनीतिक कार्ड खेल दिया। शीला के अलावा अब तक इस्तीफा दे चुके कांग्रेस के नजदीकी राज्यपालों में कोई ऐसा नहीं था जो भाजपा को किसी राज्य में राजनीतिक स्तर पर चुनौती दे सके। सोमवार को 18 सीटों के उपचुनाव के नतीजों में धूमिल प्रदर्शन के बाद भाजपा आगे आने वाले चुनाव के प्रति सतर्प हो गई है। यही वजह है कि भाजपा दिल्ली चुनावी मैदान से शीला को दूर रखना चाह रही थी पर इसका एक दूसरा पहलू भी है। इस्तीफे के बाद शीला की मुश्किलें भी बढ़ सकती हैं। जब वह दिल्ली की मुख्यमंत्री थीं उस समय उनके कार्यकाल के दौरान कई तरह की गड़बड़ियां हुई थीं अब वह फाइलें खुल सकती हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले को लेकर पहले से ही उनकी सरकार पर आरोप लगते रहे हैं। जल बोर्ड में कई घोटालों को लेकर एसीबी, सीबीआई और सीवीसी जांच कर रही है। दिल्ली में दोबारा से चुनाव होने हैं। ऐसे में भाजपा चुनावों में शीला को टारगेट बनाएगी। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश उपाध्याय का कहना है कि वह शीला सरकार के समय में हुए घोटालों के मुद्दों को उठाएंगे। आने वाले दिनों में दिल्ली की सियासत में अगर शीला का दबदबा बढ़ता है तो यह कोई हैरान  होने वाली बात नहीं होगी। आखिर में यही कहा जाएगा कि शीला के अलावा और कोई विकल्प कांग्रेस के पास नहीं है। अगर ऐसा होता है तो देखना यह होगा कि कांग्रेस के लिए शीला संजीवनी का काम करेंगी? दिल्ली की जमीन पर काफी मुद्दे हैं और उन्हें पहचानना और भुनाना श्रीमती शीला दीक्षित अच्छी तरह जानती हैं।
-अनिल नरेन्द्र


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