Wednesday, 13 August 2014

क्या राजग पर भारी पड़ेगी लालू-नीतीश-कांग्रेस की नई दोस्ती?

राजनीति में न तो कोई स्थायी दुश्मन होता है, न दोस्त स्थायी होता है तो वह है स्वार्थ। परिस्थितियों के अनुसार नए-नए समीकरण बनते हैं। ताजा उदाहरण है बिहार में लालू प्रसाद यादव और उनके धुर विरोधी रहे नीतीश कुमार का। सोमवार को दो दशक तक एक-दूसरे के कट्टर राजनीतिक विरोधी ध्रुव के यह दो दिग्गजों ने एक साथ मंच साझा किया। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और जदयू नेता नीतीश कुमार ने न सिर्प सभा को संबोधित किया बल्कि गर्मजोशी से गले भी मिले। मन में भले ही झिझक रही हो लेकिन चेहरे के भाव मुलाकात के प्रति आशान्वित सफलता के संकेत देते हुए दोनों ने एक-दूसरे को बांहों में भरा और कई मिनट तक इसी भाव में फोटो खिंचवाए और मन की सारी मलिनता दूर करने का संदेश दिया। इस प्रकार से बिहार की राजनीति में करीब दो महीने से चल रही समान विचारधारा लेकिन विपरीत दिशा वाले राजद और जदयू के गठजोड़ की मुहिम परवान चढ़ गई। लोजपा अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के इलाके हाजीपुर के जमालपुर गांव में सोमवार को उपचुनाव के सिलसिले में आयोजित जनसभा में दोनों नेताओं ने केंद्र सरकार को जमकर कोसा। दोनों नेताओं ने रैली में महागठबंधन का शंखनाद करते हुए भाजपा के खिलाफ लड़ाई का ऐलान किया और ऐलान किया कि अगर यह महागठबंधन का प्रयोग विधानसभा के उपचुनाव में सफल रहा तो अन्य राज्यों में भी इसका विस्तार होगा और राष्ट्रीय आकार लेकर भाजपा को कड़ा मुकाबला पेश करेगा। बिहार में 10 सीटों पर उपचुनाव होना है और यह महागठबंधन इस उपचुनाव को लेकर ही बना है। लोकसभा चुनाव में बिहार में भाजपा के नेतृत्व वाली राजग से करारी मात खाने के बाद ही नीतीश कुमार और लालू प्रसाद ने 20 वर्षों के बाद राजनीतिक मजबूरी के तहत पुरानी दुश्मनी को भुलाकर हाथ मिलाया है। फिलहाल 21 अगस्त को राज्य की 10 विधानसभा सीटों पर जदयू-राजद-कांग्रेस गठबंधन की राजग के खिलाफ अग्निपरीक्षा होगी। ऐसे में सवाल उठता है कि लालू और नीतीश के एक साथ आने का सियासी मतलब क्या है? लोकसभा चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें तो इन ओबीसी नेताओं का वोट बैंक एक साथ होने की स्थिति में राजग पर भारी प्रतीत होता है। 2014 के आम चुनाव में बिहार में भाजपा और उसके सहयोगी लोजपा और रालेसपा को करीब 39 फीसदी वोट मिले। इसकी तुलना में राजद-कांग्रेस-राकांपा गठबंधन को 30 फीसदी और जदयू-भाकपा गठबंधन को 17 फीसदी वोट मिले। पिछड़े समुदाय के इन दिग्गजों के अब एक साथ आने से मोटे तौर पर वोटों का यह आधार 47 फीसदी बैठता है। हालांकि धुर विरोधियों के एक साथ आने से विधानसभा चुनावों में भी इस वोट बैंक के बने रहने पर सवाल जरूर उठता है? 21 अगस्त को बिहार में 10 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं, उनमें भागलपुर, बांका, छपरा, हाजीपुर, मोहनियां, नरकटियागंज, जाले, दरबत्ता, मोइली नगर और राजनगर शामिल हैं। आरजेडी और जदयू चार-चार सीटों  पर जबकि कांग्रेस दो सीटों पर खड़ी है। शनिवार को भाजपा की नेशनल काउंसिल की मीटिंग में पार्टी के नवनियुक्त अध्यक्ष अमित शाह  ने नीतीश-लालू-कांग्रेस महागठबंधन पर तीखा कमेंट किया और इसको राजनीतिक तौर पर खारिज कर दिया। अमित शाह का बयान संकेत है कि इसी चुनाव में भाजपा ने दोनों की चुनौती स्वीकारी है। साथ ही यह संकेत भी दिया कि पार्टी इस चुनाव को गंभीरता से ले रही है। बिहार की राजनीति में तूफान का इरादा रखते हुए लालू-नीतीश गठबंधन को हाजीपुर की जनता ने वह गर्मी नहीं दिखाई जिसकी उम्मीद दोनों को थी। दोनों नेताओं के इस बहुप्रतीक्षित मिलन समारोह में मुश्किल से दो हजार लोगों की भीड़ जुटी और मैदान खाली नजर आया। बिहार के भाजपा नेताओं की मानें तो जनता ने लालू प्रसाद-नीतीश कुमार और कांग्रेस गठबंधन को सिरे से खारिज कर दिया है। भाजपा विधान मंडल दल के नेता सुशील कुमार मोदी के अनुसार गले मिलने से लालू-नीतीश के पाप नहीं धुलेंगे। अगर लालू ने मंडल का झांसा देकर 15 साल तक बिहार को बंधक बनाए रखा तो  नीतीश कुमार ने धर्मनिरपेक्षता का बहाना बनाकर जंगलराज-2 की जमीन तैयार की है। दोनों की राजनीतिक मजबूरी पैदा करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को धन्यवाद देना चाहिए। इनका मिलन भरत मिलाप नहीं बल्कि कर्ण-दुर्योधन का मिलाप है। सभा को सुपर फ्लॉप करार देते हुए कहा कि दो माह से जंगलराज-2 का ट्रेलर चल रहा था आज जनता ने सामने भी देख लिया। विकास को पटरी से उतारकर विनाश की ओर ले जाने का ट्रैक रिकार्ड रखने वाली ताकतों ने नीतीश कुमार से हाथ मिलाया है।

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