Thursday 28 August 2014

उपचुनाव परिणाम दर्शाते हैं कि मोदी लहर फीकी पड़ गई है

चार राज्यों की 18 सीटों पर हुए उप चुनावों के आधार पर कोई बड़ा निष्कर्ष निकालना ठीक नहीं है पर इन नतीजों से कुछ महत्वपूर्ण संकेत तो मिल ही रहे हैं। सामान्य तौर पर विधानसभाओं के उपचुनाव वहां के सत्ताधारी दल के पक्ष में जाते हैं लेकिन भारी बहुमत से केंद्र की सत्ता में आने के कारण हरेक चुनाव को नरेंद्र मोदी की हार-जीत के रूप में देखा जा रहा है। महज 100 दिन के ही कार्यकाल में मोदी को 2 उपचुनाव झेलने पड़े और दोनों के नतीजे उनके पक्ष में नहीं रहे। बिहार में लालू-नीतीश गठजोड़ भाजपा पर भारी साबित हुआ। कांग्रेस को सभी जगह राहत मिली है, आम आदमी पाटी सीन से लगभग गायब हो चुकी है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि भाजपा पर छाया सत्ता का नशा इन परिणामों से टूट गया है।  ब्यौरे में जाएं तो इन 18 सीटों में से सात भाजपा को, पांच कांग्रेस को, तीन आरजेडी को, दो जेडीयू को मिली हैं। इससे पहले उत्तराखंड के उपचुनावों में तीन की तीन सीटें कांग्रेस की झोली में गई थीं। उत्तराखंड के बाद बिहार से आए विधानसभा उपचुनाव के नतीजे जहां भाजपा के स्थानीय नेतृत्व के लिए आत्मावलोकन का विषय हैं वहीं भाजपा के विरोधी दलों और गठबंधनों के लिए ऑक्सीजन जैसे हैं। बीस साल बाद भाजपा के मुकाबले के लिए एक मंच पर आए धुर विरोधी लालू और नीतीश के महागठबंधन ने बिहार की दस सीटों में से छह पर सफलता हासिल करके यह साबित कर दिया है कि मोदी की हवा समाप्त हो गई है। 100 दिनों में ही धीमी पड़ गई है मोदी की आंधी। महागठबंधन के तीसरे घटक दल कांग्रेस की भी लाटरी खुली और भागलपुर की सीट उसे पाप्त हुई। कर्नाटक में कांग्रेस भारी पड़ी और भाजपा बेल्लारी जैसी पतिष्ठित सीट भी हार गई। पंजाब में मुकाबला बराबरी पर छूटा तो मध्य पदेश में जरूर भाजपा आगे रही है पर लोगों को सबसे ज्यादा दिलचस्पी बिहार के 10 विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनावों में थी जिन्हें अगले साल होने वाले राज्य विधानसभा चुनावो का सेमीफाइनल कहा जा रहा था। सबकी नजरें इस बात पर टिकी थीं कि नया गठबंधन (लालू-नीतीश) कितना कामयाब होता है। चुनाव के नतीजे बताते हैं कि इस गठबंधन को अच्छी खासी कामयाबी मिली है। जिन लोकसभा सीटों पर भाजपा उम्मीदवार जीते थे उन सीटों पर भी तीन महीने में भाजपा को हार देखनी पड़ी। वोट पतिशत में भी कमी आई है। बिहार में अस्तित्व की जंग लड़ रहे राजद, जदयू और कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनावों के लिए और मजबूती से लामबंद होंगे तो भाजपा को गहन आत्म अवलोकन से गुजर कर अपने अंतर्विरोधों को दूर करना होगा। बिहार भाजपा की बड़ी कमजोरी वहां एक सर्वमान्य नेता की कमी है। केंद्रीय नेतृत्व और अमित शाह को समय रहते इस  समस्या का अविलंब समाधान करना होगा अगर वह विधानसभा चुनावों में जीतना चाहते हैं। यह इसलिए भी जरूरी है कि तीन-चार महीने पहले मोदी की जो हवा चल रही थी वह अब समाप्त हो गई है। ताजा परिणामों से कांग्रेस में खासा उत्साह है। कांग्रेस का मानना है कि लोकसभा के बाद एनडीए सरकार के सत्ता में आने के महज 100 दिनों के भीतर ही मोदी लहर का असर खत्म होता दिखाई दे रहा है। सोमवार को सामने आए नतीजों के बारे में कांग्रेस महासचिव व पवक्ता शकील अहमद का कहना है कि इस उपचुनाव में जनता ने मोदी की लहर को न सिर्फ नकार दिया बल्कि उसकी हवा भी निकाल दी। लगातार दो उपचुनाव में भाजपा को लगे झटके को कांग्रेस आगामी चुनावों के मद्देनजर एक अच्छा संकेत मान रही है। इन उपचुनावों का अगर कोई बड़ा निष्कर्ष नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए निकलता है तो वह यह  है कि नरेंद्र मोदी ने चुनाव से पहले जो वादे किए थे लोगों में उम्मीदे ंजगाई थीं उन पर उन्हें पूरा खरा उतरना होगा। महंगाई एक मुद्दा है जो सारे देश को पभावित करता है। सारे आश्वासनों के बावजूद नरेंद्र मोदी 90 दिनों में इसे कम करना तो दूर रहा, कंट्रोल भी नहीं कर सके। देश में यह संदेश जा रहा है कि भाजपा की कथनी और करनी में बहुत अंतर आ रहा है और अगर यही रुख रहा तो आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ सकता है।

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