अपनी ताजपोशी पर पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की मुहर
लगने के हफ्ते भर बाद भाजपा के नए अध्यक्ष अमित शाह ने अपनी टीम का ऐलान कर दिया। 11 उपाध्यक्षों, आठ महासचिवों और 14 सचिवों की इस टीम में जहां पहले के
कई पदाधिकारियों को उनकी जगह बनाए रखा गया है वहीं कई नए चेहरे भी शामिल किए गए हैं।
अमित शाह की नई टीम को देखकर कुछ बातें बेहद साफ नजर आती हैं। पहली बात तो यह है कि
उनकी टीम में अपेक्षाकृत कम उम्र के नेताओं को बड़ी तादाद में मौका दिया गया है ताकि
संगठन का तेवर और धार दोनों मौका अनुसार आगे बढ़ें। नई टीम में हर दृष्टि से संतुलन
स्थापित करने का प्रयास किया गया है। आयु, भूगोल और सत्ता तीनों
स्तरों पर मध्य मार्ग अपनाया गया है। संगठन में ऐसे चेहरों को ज्यादा स्थान दिया गया
है जो उम्र की दृष्टि से न बहुत युवा हैं और न ही बूढ़े। इसके पीछे मंशा बहुत साफ है
कि संगठन का काम देखने वाले पदाधिकारी समाज की नई और पुरानी पीढ़ी के बीच संतुलन एवं
समन्वय स्थापित कर सकें। बुजुर्गों की परिपक्वता एवं युवाओं का जोश यदि मिला दिया जाए
तो एक अच्छा मिश्रण तैयार होता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं में ऐसे ही मिश्रण
का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह बात भी साफ नजर आती है कि अमित शाह की टीम पर आरएसएस
की छाप बेहद गाढ़ी है।
संगठन महासचिव पद पर जिस तरह रामलाल बरकरार रहे, मुरलीधर राव
भी अपनी जगह पर कायम रहे और हाल में संघ से भाजपा में आने वाले राम माधव और शिव प्रकाश
जैसों को अहम जिम्मेदारियां मिली हैं उससे स्पष्ट है कि भाजपा नेतृत्व और आरएसएस के
बीच रणनीतिक और राजनीतिक स्तर पर अच्छा सामंजस्य कायम है। कोई ज्यादा चौंकाने वाला
फैसला अगर कहा जा सकता है तो वह यही है कि वरुण गांधी को शाह की टीम में शामिल नहीं
किया गया। शायद यह इसलिए नहीं किया गया हो ताकि वरुण गांधी को और कोई महत्वपूर्ण पद
देने की योजना है। याद रहे कि उनकी मां मेनका गांधी ने जो केंद्र में मंत्री हैं यह
इच्छा जताई थी कि वरुण को उत्तर प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री के तौर पर पेश किया जाए।
हालांकि शाह की टीम के ऐलान के साथ ही पार्टी में कुछ विरोधी स्वर उठने लगे हैं। इसकी
शुरुआत लगातार चौथी बार अनुसूचित जाति मोर्चा का अध्यक्ष बनाए गए फग्गन सिंह कुलस्ते
ने की है। पांच बार से सांसद रहे कुलस्ते ने नई जिम्मेदारी संभालने से फिलहाल इंकार
कर दिया है। उनका कहना है कि पार्टी या तो उन्हें पदोन्नति दे या फिर वह बतौर सांसद
ही ठीक हैं। इस दौरान वह यह भी याद दिलाने से नहीं चूके कि वह नरेन्द्र मोदी के साथ
महासचिव पद की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं। बीएस येदियुरप्पा को उपाध्यक्ष बनाने
पर भाजपा की आलोचना हो रही है। भ्रष्टाचार से लड़ने का मुद्दा लेकर आई पार्टी खुद दागदार
व्यक्ति को उपाध्यक्ष बना रही है, विपक्षियों के लिए विरोध करने
का मुद्दा मिल गया है। विडम्बना यह भी है कि येदियुरप्पा ने भी यह कहकर परोक्ष नाराजगी
जताई है कि उनके क्षेत्र के लोग उन्हें मंत्री के रूप में देखना चाहते थे। कई अन्य
नेता भी नाराज हैं पर वह फिलहाल चुप्पी साधे हैं। दिल्ली से किसी भी व्यक्ति को नई
टीम में जगह न मिलने से भी दिल्ली भाजपा में थोड़ा रोष है। अमित शाह ने अपनी टीम के
गठन से साफ कर दिया है कि संगठन के विस्तार के साथ चुनाव प्रबंधन भी उनकी प्राथमिकता
है। शाह की नई टीम में जगह पाने वाले हर नेता ने लोकसभा चुनाव में अहम भूमिका निभाई
थी। लोकसभा में टिकट कटने वाले नेताओं को भी संगठन में एडजस्ट करने का प्रयास किया
गया है। टीम शाह का पहला सबसे बड़ा इम्तिहान महाराष्ट्र, हरियाणा,
झारखंड और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों में
होगा। दिल्ली में कब चुनाव होंगे, फिलहाल साफ नहीं है। बिहार
में राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल (यू)
और कांग्रेस के गठजोड़ से निपटना शाह की टीम के लिए अलग चुनौती है जिससे
निपटना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। भाजपा का लक्ष्य आने वाले विधानसभा चुनावों में
जीत दर्ज करने के साथ-साथ राज्यसभा में अपनी ताकत बढ़ाना है।
जहां वह अल्पमत में है। शाह भी जानते हैं कि अब वह लोकसभा चुनाव जैसे माहौल की उम्मीद
नहीं कर सकते। उत्तराखंड के तीन विधानसभा सीट के उपचुनावों ने यह साफ कर दिया है,
इसलिए वह दूसरे दलों में सेंध लगाने में जुट गए हैं। देखना यह है कि
अमित शाह की टीम पार्टी को कैसा कलेवर दे पाती है?
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