रिलायंस
फ्रेश ने हाल ही में अपने 100 स्टोर
बंद करने की घोषणा की है। कारण बताया गया है कि यह स्टोर ठीक से रिटर्न नहीं दे पा
रहे हैं। दो साल पहले आदित्य बिड़ला ग्रुप ने `मोर' के कुछ स्टोरों को बंद किया था यानि देश के दो सबसे बड़े औद्योगिक घरानों को
फूड और किराना रिटेल में कमाई नहीं मिल सकी है। रिलायंस इंस्डट्री के सीएफओ अलोक अग्रवाल
के मुताबिक हम अपने स्टोर्स को नए सिरे से आर्गेनाइज कर रहे हैं। इसके लिए कुछ सौ स्टोर्स
बंद करने के अलावा कुछ को आपस में मिलाया भी जाएगा। इसी प्रकार बिड़ला ने दो साल पहले
खाना-किराना कारोबार करने वाले अपने 36 स्टोर्स बंद किए थे। मोर स्टोर्स के प्रमुख प्रणब बरुआ ने बताया था कि रिटर्न
के मुकाबले स्टोर्स का किराया महंगा पड़ रहा था। आर्गेनाइज्ड रिटेल का बड़ा हिस्सा
मॉलों में है। चेन्नई, दिल्ली, बेंगलुरु,
मुंबई, कोलकाता, पुणे और
हैदराबाद में मॉल्स का एरिया 7 करोड़, 60 लाख वर्ग फीट है जो 2017 में बढ़कर 10 करोड़ 78 लाख वर्ग फीट हो जाएगा। लेकिन वहीं किराना कारोबार
से जुड़े स्टोर्स के
हाल खराब हैं। देश के किराना कारोबार में आर्गेनाइज्ड रिटेल का हिस्सा अब तक
5 फीसदी ही है। ब्रिसिल रेटिंग के प्रेसीडेंट राम राज पई कहते हैं कि
देश के हर कोने में किराना दुकानें हैं। लोगों को यह ज्यादा सुविधाजनक लगाती हैं। अधिकतर
कॉलोनियों में रेहड़ी पर सब्जी रखकर घर तक बेची जाती है जबकि रिटेल स्टोर्स के लिए
खास जाना पड़ता है। जहां स्टोर है उसके आसपास के इलाके वालों को तो सुविधा है पर दूरदराज
से आने वाले ग्राहकों को खासतौर पर जाना पड़ता है जो कभी संभव होता है, कभी नहीं। और अगर पेट्रोल का खर्चा जोड़ लिया जाए तो कीमतों में फर्प भी हो
जाता है। देश में फिलहाल किराना दुकानों की संख्या सवा करोड़ से एक करोड़
40 लाख के बीच है। किराना सामान की खरीद के लिए अब भी लोगों की बड़ी
तादाद मानसिक रूप से किसी मॉल में जाने के लिए तैयार नहीं है। हर कॉलोनी में अब मार्पिटें
हैं और उनमें किराने की दुकानें हैं। उपभोक्ता को ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ता। वॉलमार्ट
के सीईओ कृष अय्यर कहते हैं कि फूड में मार्जन बहुत कम रहता है। फायदा तभी होगा जब
पर्याप्त टर्नओवर मिल सके। भारत में ऐसा नहीं हो पाता। कम्पनियां अपने बिजनेस का
7.5 फीसदी किराया दे रही हैं जबकि दुनिया में यह खर्च 3 फीसदी ही है। बिड़ला ग्रुप ने मुंबई में अपने कई मोर आउटलेट्स केवल किराए की
वजह से बंद किए। फिर खाने-पीने की जो चीजों का रखरखाव होना चाहिए
वह यह मॉल्स के कर्मचारी ठीक से नहीं कर पाते। इससे नुकसान बढ़ता है। इसके अलावा मॉल
के शॉपिंग स्टोर्स से ऑनलाइन शॉपिंग से भी चुनौती मिल रही है। 2015 में इस मार्केट के 9026 करोड़ रुपए हो जाने का अनुमान
है। अगर हम स्टोर्स और फुटकर दुकानों से खरीददारी को मिलाएं तो 48 फीसदी लोग खाने-पीने और किराने पर खर्च करते हैं भारतीय,
यही आंकड़ा मॉल्स में 2.3 फीसदी है।
-अनिल नरेन्द्र
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